Romantic love story : अनकही फीलिंग्स। Best Hindi story। Hindi kahani। Online hindi stories।


जब उसने हिम्मत करके मुझे प्रपोज़ किया, तो मैं घबरा गई। समझ नहीं आया क्या करूँ, कैसे रिएक्ट करूँ। मैंने उसकी बहन को यह बात बता दी, शायद उसने घर पर बता दी होगी। फिर अचानक सब बदल गया।Best Hindi story। Hindi kahani। Online hindi stories।

Romantic love story : अनकही फीलिंग्स। Best Hindi story। Hindi kahani। Online hindi stories।





प्यार ऐसे जाग जायेगा मुझे पता नहीं। चोरी छिपे आ गया पता भी नहीं चला। वो लड़का मुझे पसंद करता था, मैं यह जानती थी, पर जब उसने हिम्मत करके मुझे प्रपोज़ किया, तो मैं घबरा गई। समझ नहीं आया क्या करूँ, कैसे रिएक्ट करूँ। मैंने उसकी बहन को यह बात बता दी, शायद उसने घर पर बता दी होगी। फिर अचानक सब बदल गया।




अब उसका मुझे देखना, रास्ते में मुस्कुराना, हल्की-सी शरारत करना सब बंद हो गया। जैसे वो अपनी दुनिया से मुझे निकाल चुका था। पहले तो यह सब नॉर्मल लगा, लेकिन कुछ दिनों बाद दिल में एक अजीब-सी बेचैनी होने लगी। शायद मैंने गलती कर दी थी। उसे खोने का एहसास होने लगा।




पर अब क्या करूँ? जब भी उसे देखती, वो नजरें चुराकर गली बदल लेता। जैसे अब मैं उसके लिए कोई मायने ही नहीं रखती। उसकी वो बेरुखी, वो अनदेखी अब मुझे परेशान करने लगी। जैसे अब उसकी दुनिया में मेरी कोई जगह ही न रही हो।




फिर कुछ दिनों तक तो वो दिखाई ही नहीं दिया औऱ जब कुछ हफ्तों बाद, मैंने उसे देखा, तो मेरा दिल धड़क उठा। लेकिन यह धड़कन खुशी की नहीं, एक अजीब-सी तकलीफ की थी। वो किसी और के साथ पार्क में घूम रहा था। मुस्कुराते हुए, हँसते हुए। शायद वह आगे बढ़ चुका था, उस पर बहुत गुस्सा आया। उससे ज्यादा खुद पर आया।




पार्क में उसकी मुस्कान देख मैं सहम-सी गई थी। वो किसी और के साथ था, और मेरा दिल जैसे बुझ सा गया। लेकिन फिर उसकी नज़र मुझ पर पड़ी। कुछ पल के लिए वो ठिठका, फिर मेरी तरफ बढ़ने लगा।




"सुनो, वो लड़की बस मेरी अच्छी दोस्त है," उसने जल्दी से सफाई दी, जैसे मैं कोई फैसला सुनाने वाली हूँ। "तुम गलत मत समझो। और... इस बार प्लीज़ मेरी बहन को मत बताना। पिछली बार बहुत डाँट पड़ी थी।"




मैंने आँखें सिकोड़कर उसकी ओर देखा, "तुम सच बोल रहे हो?"




उसने सिर हिलाया, "हाँ, बिल्कुल!"




वो जाने ही वाला था कि मैंने हिम्मत जुटाकर कहा, "अगर अब तुम मुझे कुछ कहोगे, तो मैं तुम्हारी बहन से नहीं बोलूंगी।"




उसने अजीब-सी शक भरी नज़रों से मुझे देखा, जैसे कुछ समझने की कोशिश कर रहा हो। कुछ मिनट लग गए उस बेवकूफ को समझने में। फिर जब समझ आया, तो उसके चेहरे पर जो मुस्कान आई, वो देखने लायक थी।

वो ठहरा, कुछ सेकंड के लिए मेरी आँखों में देखा, फिर हल्के से मुस्कुराया। "सच में?" उसने पूछा, जैसे यकीन ही ना हो।




मैंने हल्के से सिर हिलाया, नज़रें झुका लीं। मुझे खुद पर हैरानी हो रही थी। मैं ऐसा क्यों कह रही थी?




वो कुछ कदम और करीब आया। "मतलब अब अगर मैं कुछ कहूँगा, तो तुम चुप रहोगी?"




मैंने उसकी आँखों में देखा। हल्की-सी शरारत थी वहाँ, लेकिन कहीं ना कहीं, एक उम्मीद भी थी।




"हाँ," मैंने धीरे से कहा, "इस बार तुम्हारी बहन से नहीं कहूँगी।"




वो हँस पड़ा, "अच्छा! तो अब मेरी शिकायत नहीं करोगी? पर ऐसा क्यूँ अब ऐसा क्या हो गया भला।




मैंने कुछ नहीं कहा, बस हल्की मुस्कान दी। शायद उसे अब भी पूरी तरह से यकीन नहीं हुआ था। लेकिन वो वहीं खड़ा था, जैसे कुछ और सुनना चाहता हो। शायद कुछ ऐसा, जो मैं अब तक नहीं कह पाई थी।




"तो... क्या अब मुझे तुम्हें कुछ कहने की इजाज़त है?" उसने धीरे से पूछा।




मेरा दिल तेज़ी से धड़कने लगा। कुछ कहने को लफ्ज़ ही नहीं मिल रहे थे।




"बोलो ना," उसने फिर से कहा,




मैंने गहरी सांस ली, जैसे खुद को हिम्मत देने की कोशिश कर रही हूँ। फिर हल्के से मुस्कुराते हुए कहा, "अबकी बार कहोगे, तो शायद जवाब भी मिलेगा।"

बस इतना बोल कर में वहाँ से चली गई। उसकी आँखों में वो चमक फिर से लौट आयी थी।



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यह कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है। इसके पात्र घटनाये स्थान नाम भी काल्पनिक है। इसका किसी के भी जीवन से मेल खाना महज एक सयोंग होगा। कहानी का उद्देश्य केवल मनोरंजन करना है। कृपया इसे उसी तरह से लिया जाये। पाठक अपने विवेक का इस्तेमाल करें।


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