Romantic Hindi Story : खडूस मेंडम जी ( हिन्दी कहानी )। Best Hindi Story। Hindi story।



"क्या सख्त रवैया हमारी असली भावनाओं को छुपा सकता है? पढ़ें एक महिला की दिल छू लेने वाली कहानी, जहां कठोरता के पीछे छिपी नर्म भावनाएं सामने आती हैं। जानें कैसे एक अनदेखा रिश्ता और पछतावा दिल को बदलने पर मजबूर कर देता है।" Romantic Hindi Story। Online Hindi Story। Best Hindi Story। Best Hindi kahaniya।




Romantic Hindi Story : खडूस मेंडम जी ( हिन्दी कहानी )। Best Hindi Story। Hindi story।






हमेशा से लोग मुझसे डरते आए हैं। मेरे स्वभाव में एक अनकहा रुखापन है, जो शायद मेरी आदत बन गया है। गिने-चुने दोस्त हैं, और वो भी जब मुझसे बात करते हैं, तो हर शब्द तौलकर।



बचपन से ही यह आदत मेरे साथ है। स्कूल में, फिर कॉलेज में, और अब ऑफिस में भी यह सिलसिला जारी है। किसी लड़के की तो कभी हिम्मत ही नहीं हुई कि मुझसे बात कर ले।



ऑफिस में तो बात और भी अलग है। यहां लोग मुझे "खडूस मेंडम जी " कहकर बुलाते हैं। मैं जानती हूं कि वे पीठ पीछे यही कहते हैं। पर मैंने कभी इसे दिल पर नहीं लिया। मुझे लगा, चलो ठीक है, काम से काम रखो, यही सही है।


लेकिन, ऑफिस में एक इंसान ऐसा था जो मुझे पसंद करता था। मुझे उसकी नजरें महसूस होती थीं। हालांकि उसकी भी हिम्मत नहीं थी कि सामने आकर कुछ कह सके।


ऑफिस की खुसर-पुसर से मुझे पहले ही पता चल चुका था कि वह मुझे पसंद करता है। लेकिन मैं हमेशा उसकी अनदेखी करती रही।


शायद मुझे यह जताना आता ही नहीं था कि कोई मेरे करीब आ सकता है। फिर एक दिन उसने अपनी झिझक तोड़ने की कोशिश की। शायद उस दिन उसके अंदर का मर्द जाग गया।


उस दिन मैं ऑफिस के कॉरिडोर में अकेली थी। वह अचानक मेरे सामने आकर खड़ा हो गया। मैंने उसे देखा और अपने उसी सख्त अंदाज में कहा,


"क्या है? बोलो ना।"


वह थोड़ा घबरा गया। हड़बड़ाते हुए बोला,


"न-नहीं, कुछ नहीं... बस कुछ काम था, भूल गया।"


मैंने उसे घूरते हुए कहा, "कुछ ऐसा-वैसा बोलने से पहले दस बार सोचना, समझे?"


वह बेबस-सा वहां से चला गया। उसके बाद तो उसने मुझसे दूर से देखना भी छोड़ दिया।बेचारे की हिम्मत मैंने तोड़ दी।


लेकिन यह पहली बार नहीं था, जब मुझे लगा कि मैं ऐसी क्यों हूँ।
क्यों हर बार कठोरता मेरा पहला जवाब होती है?
क्यों मैं हर किसी से खुद को दूर रखने की कोशिश करती हूँ?


अब, जब मैं उस दिन को याद करती हूं, तो खुद पर गुस्सा आता है। क्यों मैंने उसे ऐसा महसूस कराया? क्यों मेरी सख्ती ने उसे और दूर कर दिया?


सच कहूं तो अब मुझे उसकी नजरों का इंतजार होता है। लेकिन वह तो अब दूर-दूर रहता है, जैसे मैं कोई इंसान ना हूं कुछ ओर ही हूँ।


शायद मैं ही गलत हूं। मेरी यह सख्ती अब मुझे बोझ-सी लगने लगी है। दिल में सवाल उठता है—क्या सच में मैं इतनी खडूस हूं कि कोई मुझसे अपने दिल की बात भी न कह सके? या फिर मैं अपनी ही दीवारों में कैद हो गई हूं?


अब मैं सोचती हूं, काश उस दिन मैंने उसे थोड़ा आराम से सुना होता। शायद कुछ और कहने की हिम्मत कर लेता। अब मुझे अपनी खडूसियत पर गुस्सा आता है, लेकिन शायद अब देर हो चुकी है।


ऑफिस में मैंने उसे कभी इधर-उधर की बातें करते या दूसरों की तरह टाइम पास करते नहीं देखा। वह हमेशा अपने काम में डूबा रहता था, जैसे उसे दुनिया से कोई मतलब ही नहीं। यह बात मुझे पहले कभी नहीं खली, क्योंकि मेरी आदत ही ऐसी थी।


मैं भी गिनी-चुनी लड़कियों से काम की बातें करती थी, और बाकी सब मुझसे दूरी बनाए रखते थे।


लेकिन अब, जब उसके बारे में सोचती हूं, तो दिल में अजीब-सी बेचैनी होने लगी है। मैं चाहती हूं कि कोई उसकी बात करे, कोई मुझे बताए कि उसने उस दिन के बाद क्या सोचा, क्या महसूस किया। क्या उसने मेरे उस सख्त लहजे को दिल पर ले लिया? या फिर उसने मुझे पूरी तरह से नजरअंदाज करना ही बेहतर समझा?


अब मुझे यह भी जानने की बेचैनी है कि वह इंसान अंदर से कैसा है। क्या वह सच में उतना अच्छा लड़का है, जितना मुझे लगता है? मैंने कभी उसके बारे में ज्यादा सोचा नहीं, लेकिन अब हर बार उसकी याद आती है। मैं चाहती हूं कि कोई मुझे बताए कि वह कैसा इंसान है।


हर बार जब उसकी शांत नजरें और झिझकता चेहरा याद आता है, तो लगता है कि मैंने एक अनमोल रिश्ता खो दिया। काश उस दिन मैंने अपनी आवाज़ को थोड़ा नरम कर लिया होता, काश मैंने उसे सुनने की कोशिश की होती। अब ये सोचकर दिल और भारी हो जाता है कि क्या वह मुझे अब भी उसी तरह देखता है, जैसे कभी देखा करता था।


मैं अपने इस खडूस रवैये से खुद तंग आ चुकी हूं। पर ये इमेज मेरी खुद की बनाई हुई है, और इससे बाहर निकलना इतना आसान नहीं।


हर दिन जब मैं उसे देखती हूं, तो उसका चेहरा मेरे दिल को धक्का देता है। वो अब मुझसे नजरें चुराते हुए गुजर जाता है। मैं उसे रोकना चाहती हूं, उससे बात करना चाहती हूं, लेकिन जैसे ही मौका आता है, मेरे होंठ बंद हो जाते हैं।


एक दिन मैंने तय किया कि अब और नहीं। मैं अपने घमंड और झिझक को किनारे रख दूंगी। मैंने उसे ऑफिस के कॉरिडोर में देखा। वो फाइलों में उलझा हुआ था। मैंने अपनी धड़कनें शांत कीं, खुद को साहस दिया, और धीरे-धीरे उसके पास जाकर मुस्कुरा कर कहा, "हाय।"


वो चौंक कर मुझे देखने लगा। कुछ पल के लिए तो ऐसा लगा जैसे समय ठहर गया हो। फिर उसके होंठों पर एक हल्की मुस्कान आई,


और उसने जवाब दिया, "हाय।"

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