कुत्तो नें तोड़ा राजा का अहंकार ( हिन्दी प्रेरक कहानी )।। Hindi kahani।।Hindi Story।। Hindi kahaniyaa।।प्रेरणादायक कहानियाँ।। Hindi short story । Hindi moral story ।।



जानिए राजा हर्ष और साधु की प्रेरक कहानी, जो हमें सिखाती है कि सच्चा दान केवल प्रेम और करुणा से किया गया कार्य है। पढ़ें, यह अद्भुत प्रेरक कथा।"हिन्दी प्रेरक कहानी ।। Hindi kahani।।Hindi Story।। Hindi kahaniyaa।।प्रेरणादायक कहानियाँ।। Hindi short story।। Hindi moral story ।।


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राजा हर्ष सूरज की पहली किरण के साथ अपने रथ पर भोजन सामग्री लेकर निकलते। रास्ते में मिलने वाले कुत्तों और अन्य पशुओं को वह भोजन कराते और जरुरतमंद इंसानों व साधुओं की भी मदद करते। उनके इस कार्य की चर्चा पूरे राज्य में होती थी।

एक दिन, जब राजा कुत्तों को भोजन खिला रहे थे, उनका एक चापलूस मंत्री उनके साथ था। मंत्री ने उनकी प्रसंशा में कहा,


"महाराज, आप जैसा दयालु और महान व्यक्ति नहीं होता, तो इन गरीब जीवों का क्या होता? आप ही इनकी भूख मिटाते हैं। आपके बिना तो ये मर ही जाते।"


मंत्री की यह बात सुनकर राजा के चेहरे पर हल्की मुस्कान आई, लेकिन पास में बैठे एक साधु ने इस पर ठहाका लगाया। राजा ने आश्चर्य से पूछा,
"महाराज, आप हंस क्यों रहे हैं?"



साधु ने सहजता से कहा,
"राजन, मंत्री जी की बात सुनकर हंसी आ गई। सच तो यह है कि इन जीवों को और हम सभी को पालने वाला वह परमात्मा है। हम सब तो केवल माध्यम हैं। देने वाला असली मालिक ऊपर बैठा है। हमें यह कभी अहंकार वश नहीं सोचना चाहिए कि हम ही सब कुछ हैं। जो भी दें, वह प्रेम और करुणा से दें, न कि स्वयं को बड़ा साबित करने के लिए। प्रेम हम लुटा सकते है प्रेम की भाषा सभी समझते है।



राजा हर्ष ने साधु की बात सुनी, लेकिन उनका अहंकार आहत हुआ। उन्हें लगा कि साधु उनकी निःस्वार्थ सेवा पर प्रश्न उठा रहे हैं। साधु की हंसी और उनके शब्द “अहंकार वश नहीं, प्रेम वश बांटना चाहिए” राजा के मन में घर कर गए।

राजा ने मन ही मन ठान लिया कि वे यह सिद्ध करेंगे कि उनके न देने से इन पशुओं और जरूरतमंदों का क्या होता है। अगले दिन राजा ने भोजन सामग्री तो रथ में रखी, लेकिन किसी को कुछ नहीं दिया।

रास्ते में कुत्ते उनके रथ के पीछे दौड़ते रहे, लेकिन राजा ने उनकी ओर ध्यान नहीं दिया। भूखे इंसान और साधु की ओर भी राजा नें ध्यान नहीं दिया।


उन्होंने यह ठान लिया था कि बिना किसी को खिलाए वापस लौटेंगे, ताकि यह सिद्ध कर सकें कि उनके न देने से पशु और मनुष्य कैसे परेशान होते हैं।

अगले दिन भी ऐसा ही हुआ। कुत्तों ने रथ का पीछा किया, लेकिन राजा ने मन को कठोर बनाए रखा।

कुछ दिन बीतने के बाद, राजा ने देखा कि कुत्ते अब कमजोर और थके हुए दिखने लगे थे। 


फिर एक दिन, जब राजा रथ पर निकल रहे थे, उन्होंने देखा कि साधु उसी मार्ग पर बैठे हुए थे। राजा ने सोचा कि अब साधु से सामना किया जाए और उन्हें दिखाया जाए कि उनकी बात गलत है। राजा रथ को साधु के पास रोककर बोले,


"देखो, मैंने कई दिनों से इन कुत्तों को कुछ भी नहीं खिलाया। क्या अब यह नहीं प्रमाणित करता कि मैं ही इनका पालन-पोषण करता था? तुम्हारी बात कि सब कुछ ऊपर वाला करता है, गलत साबित हुई।"


साधु मुस्कुराए और बोले,
"राजन, क्या आपने यह देखा कि इन दिनों इन कुत्तों का पेट कैसे भरा?"


राजा बोला "यह तो आप ही देख सकते है की यह कितने दुर्बल हो गये है। कुछ दिन और भरपेट भोजन ना मिला तो इनकी मृत्यु तय है।"


साधु ने शांत स्वर में कहा, मृत्यु और जीवन भी उसी परमात्मा के हाथो में है। अगर इस तरह से इनके प्राण जानें है तो यह भी उसका लिखा होगा। में फिर कहता हूँ आप प्रेम बाँटे।राजा नें ठान लिया की वो साधु की बात को गलत साबित करेगा।


अगले दिन, राजा हर्ष अपने रथ पर भोजन सामग्री लेकर निकले। मार्ग में, अचानक रथ का एक पहिया टूट गया, और राजा समेत पूरी भोजन सामग्री उसी स्थान पर गिर पड़ी। राजा घायल होकर जमीन पर गिर गए। उनके पीछे-पीछे चल रहे कुत्ते यह देखकर तुरंत राजा के पास आकर खड़े हो गए।


कुत्तों ने भोजन को देखकर भी उसे छुआ नहीं। वे राजा के चारों ओर खड़े होकर उसकी चिंता में घबराए से लग रहे थे। यह दृश्य देखकर राजा चकित हो गए।


उसी समय, साधु धीरे-धीरे चलते हुए वहाँ पहुंचे। राजा को देखकर उन्होंने कहा,
"राजन, देखो, भोजन गिरा देखकर भी इन कुत्तों ने इसे छुआ तक नहीं। इसके बजाय, ये सभी तुम्हारे पास आकर खड़े हो गए हैं, क्योंकि ये तुम्हारी चिंता कर रहे हैं। आज तुम्हारी मृत्यु हो सकती थी, लेकिन तुम्हारे द्वारा किया गया भोजन दान और इन जीवों का प्रेम तुम्हारे लिए रक्षा बन गया।"



साधु ने आगे कहा,
"तुमने अब तक अहंकार वश इन्हें खिलाया, परंतु देखो, इन जीवों ने तुम्हें सच्चे प्रेम से अपनाया। ये तुम्हारे प्रति वफादार हैं और तुम्हारी परवाह करते हैं। लेकिन जान लो, जब तक तुम इन्हें प्रेमपूर्वक नहीं खिलाओगे, ये उस भोजन को ग्रहण नहीं करेंगे। प्रेम से दिया गया दान ही सच्चा दान होता है।"


राजा को साधु की बात गहराई से समझ आई। उन्हें यह एहसास हुआ कि उनके अहंकार ने उनके कर्मों की पवित्रता को दूषित कर दिया था। उन्होंने साधु से क्षमा मांगी और प्रण लिया कि अब से वे हर किसी को प्रेम और करुणा के साथ सहायता करेंगे।


उस दिन के बाद राजा का व्यवहार पूरी तरह बदल गया। उन्होंने प्रेम और निस्वार्थ सेवा को अपना धर्म बना लिया। उनके इस परिवर्तन ने पूरे राज्य में प्रेम और सद्भाव का संदेश फैलाया।


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यह कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है। इसके पात्र घटनाये स्थान नाम भी काल्पनिक है। इसका किसी के भी जीवन से मेल खाना महज एक सयोंग होगा। कहानी का उद्देश्य केवल मनोरंजन करना है। कृपया इसे उसी तरह से लिया जाये। पाठक अपने विवेक का इस्तेमाल करें।



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