मिश्री थोड़ा मनाने पर मान गई, लेकिन एक शर्त रख दी।
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लाली बकरी के जूते( हिन्दी कहानी )।। Emotional story in hindi।। Hindi kahani।। Emotional Kahani hindi।। Hindi Story।। Hindi Kahaniyaa।।Hindi Emotional Kahani।। Emotional stories।।
आज सुबह फिर वही तमाशा, मिश्री फिर वही जिद पर अड़ गई। स्कूल भेजना ना हुआ कोई कर्जदार हुआ जिसे रोज मनाना पड़ता हो।
"मिश्री फिर वही रोज का नाटक कितनी बार तुझे बोलू की वो तेरे साथ स्कूल नहीं जा सकती।"
"क्यूँ नहीं जा सकती? "
"तू कल उसे स्कूल लेकर कक्षा में लें गई मैडम मुझे बता रही थी, उसने सारी कक्षा को गन्दा कर दिया 4 बातें सुनाई की यह स्कूल बच्चों के लिये है या बकरी के लिये।"
"पर कक्षा तो पहले से ही गन्दी थी उसने थोड़ा सा ओर कर दिया उसमे क्या हुआ।वो स्कूल जायेगी तो अब बाहर ही रहेगी में उसको खाने का दे दूंगी।"
"नहीं वो स्कूल नहीं जायेगी वहाँ जाकर तू सिख लें यही अच्छा है उसे कुछ थोड़ी समझ आयेगा।"
"क्यूँ नहीं समझ आयेगा उसके भी दो कान मेरे भी, उसके भी दो आँख मेरी भी फिर उसको भी तो समझ आता है।"
माँ जानभूझ कर ऐसी बातें उससे करती है जिसके वो अपने जवाब दे। अभी छोटी है तो उसकी बातें, उसके तर्क सुनने में अच्छा लगता है। एक बार बड़ी हो गई तो फिर कहा ऐसी बात करने वाली है। माँ भी फिर उसे उसकी भाषा में समझाती है।
"अच्छा तू मत मान स्कूल गई और उसे कोई खा गया तो मुझे मत कहना फिर मत आना रोते रोते मेरे पास.."
बस अब यह तर्क काफ़ी था उसे समझाने के लिये कम से कम आजके लिये तो काफ़ी था।लाली, मिश्री की छोटी सी बकरी है। लाली यह नाम भी मिश्री नें रखा है। उठते बैठते लाली, लाली। स्कूल जायेगी तो लाली सोयेगी तो लाली।
छोटी उम्र में क्या करना बड़ी बातों से बस अपनी मस्ती में मस्त रहना यही तो वो बात है जो हमें बड़े होने पर याद आती है। कोई दौड़ नहीं कोई दुनियादारी नहीं, किसी से बैर नहीं।
बस स्कूल की छुट्टी की घंटी बजी और दौड़ कर आयी, लाली की रस्सी खोलने। बस्ता ऐसे फेका जैसे की कल फिर से स्कूल जाना ही नहीं यह आखिरी दिन हो स्कूल का।
6 नन्हे पैर निकल पड़े गाँव भर में दौड़ लगाने के लिये। गाँव की ऊँची पहाड़ी पर आजकल ताज़ा घास आयी हुई है। यह घास लाली को खूब भा रही है। दौड़ कर अपनेआप ही मिश्री के आगे आगे निकल जाती है।
मिश्री हाथ में एक डंडा होता है जिस कारण थोड़ा समय उसे लगता है लाली को पकड़ने में। डंडा उनके लिये जो लाली को परेशान करेगा उसकी खैर नहीं। पर किसकी मज़ाल की मिश्री से पन्गा लें, गाँव के कुत्ते देखकर अपनी अपनी गली में दूम दबा कर भाग जाते।
लाली का भोजन तब तक चलता जब तक मिश्री को भूख नहीं लगती, जब भूख लगती तब माँ और घर की याद आती।
"अरे तू रोज ऐसे ही बस्ता फेक कर जाती है देख आज तुने क्या किया दाल के पतिले में फेख कर गई सारी दाल गिरा दी। अब फिर तुझे कांदे से रोटी खाना होगा।देख गिला हो गया मुझे धोना पड़ा"
"अरे माँ गिला हो गया तो मुझे और लाली को दो में इसके गले में बाँध देती हूँ हवा यह खूब तेज दौड़ने लगी है मेरे हाथ भी नहीं आती थोड़ी देर में ही सूखा कर ला देंगी।"
मिश्री को क्या पता की यह माँ का एक बहाना है, घर में राशन नहीं है। अब क्यूँ नहीं है क्या नहीं, उसे कुछ पता नहीं की उसके बाबा घर में क्यूँ रहते है। माँ कैसे खाना बनाती है। खाना आता कहाँ से है। बस भूख लगी तो माँ नें जो खिलाया खा लिया, जो बोला वो मान लिया। अभी उसकी दुनियाँ ही कुछ ओर है।
सुबह होते ही वही परेशानी मिश्री को स्कूल के लिये राजी करना, पर आज बात कुछ ओर है। आज उसे याद आया की वो कितने दिनों से चप्पल में स्कूल जा रही है।
"मिश्री तुझे रोज कुछ नया बहाना चाहिये मुझे परेशान करने का। "
"बाबा दिन भर घर रहते है उनको जूते लाने को क्यूँ नहीं कहती।"
"मुझे कुछ नहीं पता जाना है तो जा वरना वो रहें तेरे बाबा जाकर उनसे बात कर "
मिश्री की माँ, घर की हालत से आज ज्यादा परेशान लग रही है वरना वो खुद ही उसे कुछ बोल कर समझा देती है। बाबा बाहर खटिया पर सोये थे। मिश्री नें जाकर पूछा
"बाबा जूते कब लेकर आओगे।"
मुरझाया हुआ चेहरा लिये बाबा किसी सोच में डूबे थे। मिश्री के 3 बार कहने पर उनका ख्याल टूटा। टूटते ही बोले की कल लाकर दूंगा पक्का।
मिश्री थोड़ा मनाने पर मान गई, लेकिन एक शर्त रख दी।
बाबा मेरे जूते के साथ लाली के जूते भी लाना इसके भी पैर में कांटे चुभते है। बार बार में इसके कांटे निकाल देती हूँ। इसको भी दर्द होता। बाबा मुस्कुरा दिये बोले हाँ ऐसा ही करेंगे।
अगली सुबह मिश्री की नींद खुली तो उसकी आँखों के सामने थे उसके जूते। "माँ नये जूते बाबा लें आये।"
धीमे से माँ बोली हाँ,।
उठने के पहले हो दूसरा सवाल "और लाली के जूते कहाँ है।" माँ नें पलक झपकाते हुऐ कहाँ "हाँ उसके भी है अभी तू जा जल्दी उठा तैयार हो जा वरना स्कूल की घंटी बाज जायेगी।"
सारा ध्यान अब जूते पर, जल्दी जल्दी जूते पहनकर निकल गई स्कूल के लिये। चल कर देखा,दौड़ कर भी देखा सब तरह से परख करके देखा। कक्षा के बाहर भी वहाँ रखें जहाँ से उसकी नज़र उनकी रखवाली करते रहें। गंदे होने पर हाथ से पोछ पोछ कर फिर से उन्हें साफ करती रही। बस मन में यही सोचती की लाली के जूते कैसे होंगे।
छुट्टी होते ही दौड़ कर घर आयी। माँ कहीं कोने में बैठी सूबसूबा रही थी। उसे देखते ही आंसू पोछकर खड़ी हो गई। माँ के आँसू दिखाई तो दिये मिश्री को, मन में सोचा भी की पूछूं क्या हुआ, पर मन नें तुरंत पलटी मार दी बोला पहले लाली के जूते देख।
"माँ लाली कहाँ है उसके जूते कैसे है देखना है मुझे पीछे बाँधा है क्या।"
अब माँ उसे क्या समझाती की बकरी जूते नहीं पहनती, उसके जूते, घर के राशन के डब्बे, लाली को बेच कर भरे है। माँ मिश्री को समझाने के लिये मन में कोई उपाय सोच रही है। पर पहले वो अपने आप को समझा लें फिर मिश्री को भी समझा देंगी। छोटी है इसलिये सवाल करती है। जैसे जैसे बड़ी होगी समझदार हो जायेगी। इसे ही तो कहते है समझदार होना और बचपना छोड़ देना।
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