वहाँ एक दर्पण था जिसमे उसे राजा दिखाई दिये। राजा को देखकर वो अचंभित जो गया वो, यह कैसा दर्पण था जिसमे उसका प्रतिबिम्ब नहीं बल्कि राजा थे।Suspense story in hindi।Hindi kahani।।Hindi Suspense kahani।।Hindi story।।Hindi Suspense Thriller story।।
दर्पण में कैद राजा।। Suspense story in hindi।। Hindi kahani।।Hindi Suspense kahani।।Hindi story।।Hindi Suspense Thriller story।।
आज फिर एक बार राजा की विशाल सभा लगी है। इस बार पहले की सभा से भी ज्यादा लोग उपस्थित हुऐ है। ना सिर्फ इस राज्य के बल्कि आस पास के राज्य के भी लोग उस सभा को देखने आये है। कुछ विशेष था इस सभा में, विशेष था इस सभा में जिसको दंड मिलने वाला था वो दोषी।
दोषी ओर कोई नहीं बल्कि इस राज्य की रानी थी। राजा की पत्नी रानी, जिसे आज दंड मिलने वाला था।उनका अपराध था राजद्रोह, राजा की आज्ञा ना मानना। जानबूझ कर इस दोषी का निर्णय भरी सभा में खुले स्थान पर किया जा रहा है, ताकि राज्य के सभी लोगों के साथ राजा के मित्र और शत्रुओं को भी यह ज्ञान हो जायेगा की राजा किसी को छमा नहीं करता।
दंड देने का समय आया तब राजा नें वही दंड सुनाया जो उनके नये मंत्री और वजीर करुवा नें बताया। उसके बताने के बाद राजा का स्वर गूंजा
"रानी को राजद्रोह के लिये हमें मृत्युदंड देना था, परन्तु वो स्त्री है इसलिये हम पर कृपा कर रहें है और उन्हें आजीवन कारावास का दंड दे रहें है।"
भीड़ में सिपाहियों के साथ खड़े रानी के छोटे भाई नें अपनी आँखों से बहने वाले आँसुओ को किसी तरह से रोका। दंड के मिलने के बाद सिपाहियों के साथ रानी जाते हुऐ अपने भाई की ओर भरी आँखों से देखते हुऐ गई।
अभी रानी को महल में स्थित एक कारावास में रखा गया है कुछ दिनों के बाद उन्हें महल से दूर बने कारावास में रखा जायेगा जहाँ दूसरे बंदी भी है रानी को उन्ही के साथ आजीवन अपना दंड भुगतना पड़ेगा।
अब कुछ ही दिवस है रानी के छोटे अनुज सूर्यदेव के पास की वो रानी से भेंट करके यह पता लगा पाये की आखिर रानी से प्रेम विवाह करने के बाद अचानक से यह महाराज को क्या हो गया है। उनमें इतना बदलाव वो भी कुछ दिवस के अंदर कैसे आया।
सूर्यदेव के साथ इस बात से अचंभित बाकि सभी सिपाही और मंत्रीगण भी थे। इसलिये जब सूर्यदेव नें रानी से एकांत में बात करने के लिये सिपाहियों से विनीति की तो वो मान गये।
रात्रि में रानी नें कारावास में मिलने पहुँचा सूर्यदेव बच्चों की भांति फूट कर पहले रोया। फिर रानी से इस परिवर्तन के विषय में पूछा। रानी के पास भी इसका सटीक उत्तर तो नहीं था फिर भी जो उन्हें लगता था उन्होंने बताया।
"यह सब तब से आरंभ हुआ जब वो झोला लेकर आया"
कौन ( सूर्यदेव नें अचंभित हो प्रश्न किया )
"वो जो अभी राजा का प्रिय है मंत्री करुवा। ना जानें उसके एकांत में मिलने के पश्चात राजा को क्या हो गया है। उस कक्ष में ना वो किसी को जानें देते है ना ही उस कक्ष से रात्रि में बाहर आते है। बस वो, उनका यह नया मंत्री ही वही उस कक्ष में समय व्यतीत करते है।
सीपाहियों का कड़ा पहरा है वहाँ, जो किसी को भीतर प्रवेश नहीं करने देते। मैनें उस कक्ष में जानें का प्रयास किया बस यही मेरा राजद्रोह है जिसका दंड मुझे आजीवन भुगतना है।
सूर्यदेव के मन में असीमित प्रश्न थे और उन सभी का उत्तर था वह कक्ष जहाँ पर सख्त पहेरा है। उस कक्ष में रात्रि में जाना तो सम्भव नहीं था। इसलिये सूर्यदेव नें उस कक्ष में तब जानें के निर्णय किया जब राजा अपनी सभा सजाये बैठे हो।
अगले ही दिवस उसे यह अवसर मिल गया लेकिन चुनौती थी पहरेदार। उन सभी को चकमा देना था। कक्ष के भीतर क्या था यह वो पहरेदार भी नहीं जानते थे।
सूर्यदेव नें एक योजना बनाई उस योजना में अगर वो सफल हो जाता तो उस कक्ष में जाकर उसके रहस्य का पता लगा सकता था। उचित समय देखकर उसने अपनी योजना को प्रारंभ किया। वो दौड़ता हुआ उन सिपाहियों के समीप गया।
"अरे तुम सभी धूर्त बन कर यहाँ मेरा मार्ग रोके खडे हो मुझे भीतर जानें दो। राजा का आदेश है उनकी बहुमूल्य वस्तु को मुझे सुरक्षा देने ही।"
सिपाहियों नें पहले उनकी बात पर विश्वास नहीं हुआ उन्होंने सूर्यदेव का मार्ग नहीं छोड़ा। तब सूर्यदेव नें अधिक ज़ोर देते हुऐ फिर से कहा।
"महाराज का आदेश अगर तुम नहीं मान रहें तो इसमें मेरी कोई हानि नहीं है। बहुत सारे डोकुओं नें अचानक हमला कर दिया है, मुझे उस कक्ष में जाकर उनकी बहुमूल्य वस्तु को सुरक्षा देनी है। साथ ही तुम्हे भी यही खड़े होकर द्वार की रक्षा करनी है।"
पर आपको भीतर क्यूँ जाना है यही रहकर भी आप वो कर सकते है। ( सिपाही नें पूछा )
"उस कक्ष के गुप्त द्वार के विषय में तुम्हे पता है। उसका ज्ञान यह तो महाराज को है या मुझे। महाराज को भय है की कहीं उसका भेद उन लुटेरों को पता लग गया तो। इसलिए मुझे वहाँ उसकी सुरक्षा करना है।"
सिपाहियों को अभी भी पूर्ण रूप से भरोसा नहीं था। लेकिन अब सूर्यदेव नें उन्हें समझाने का प्रयास नहीं किया उसने शक्ति के साथ वो द्वार खोल लिया और प्रवेश कर उन्हें आदेश दिया की अब द्वार बंद कर उसकी सुरक्षा करें।
भीतर तो उसने प्रवेश किया परन्तु उस कक्ष में कुछ भी ऐसा नहीं था जो उसे भयभीत या अचंभित करें। पूरा कक्ष रिक्त था। उसने पूरा ध्यान देकर देखा तो सिर्फ एक काला पर्दा उसे दिखाई दिया।
सूर्यदेव उस पर्दे की ओर गया उसे लगा था की उसके भीतर कोई छुपा द्वार होगा जो किसी ओर कक्ष में जानें का होगा, इस भाव से उसने उस काले पर्दे को हटाया।
पर्दा हटाते ही उसे वो मिला जिसको उसने कभी अनुमान भी नहीं लगाया था।
वहाँ एक दर्पण था जिसमे उसे राजा दिखाई दिये। राजा को देखकर वो अचंभित जो गया वो, यह कैसा दर्पण था जिसमे उसका प्रतिबिम्ब नहीं बल्कि राजा थे, राजा उस दर्पण में कैद थे। राजा नें सूर्यदेव को देखते ही कहा।
"सूर्यदेव तुम यहाँ तक आ गये। देखो उसनें कैसे इस दर्पण में हमें कैद कर दिया।"
"किसने महाराज आप यहाँ से कैसे स्वतंत्र हो पायेंगे बताये हमें क्या करना।"
तब राजा नें करुवा और इस दर्पण के रहस्य से पर्दा उठाया।
जब करुवा उस दिन सभा में आया था, तब साथ में एक झोला लिये हुऐ था। मैंने उसके पहले उस विषय में सुना था की कोई है जो राजा को अपनी बहुमूल्य वस्तु देना चाहता है। वस्तु ऐसी थी जिसे किसी नें नहीं देखा था। उसकी बातों में आकर मैंने उसके कहे अनुसार यह कक्ष रिक्त करवाया। कक्ष में आकर उसने मुझे कहा की वो मेरे लिये एक ऐसा चमत्कारिक दर्पण लाया है जिसमे हम भविष्य देख सकेंगे। उसने मुझे यह दर्पण दिखाया, और कहा की जब वो ना कहे तब तक में उस दर्पण में निरंतर देखता हूँ रहूँ। मेरे निरंतर देखते समय उसने ना जानें क्या गुप्त विद्या की जिसके परिणाम स्वरुप में इसमें कैद हो गया।
सूर्यदेव यह सुन ही रहा था की कक्ष में उस मंत्री ओर प्रतिबिम्ब राजा नें प्रवेश किया।
"तुम्हे क्या लगा की तुम इस दर्पण का पर्दा उठाओगे और मुझे ज्ञात नहीं होगा। अब तुम भी सदा के लिये अपने इस महाराज के साथ रहोगे इस दर्पण में।"
सूर्यदेव भयभीत था। वो राजा का हर्ष देख चूका था, इस समय वो खुद को बड़ा कमजोर महसूस कर रहा था। फिर हड़बड़ाहट में उसने छिपायी हुई छोटी तलवार निकाली ।
"करुवा देखकर ज़ोर से हँसा अच्छा तुम इससे हमारी हत्या करोगो मारो।"
में तुम्हे नहीं इस दर्पण को नष्ट करूँगा। यह भी सूर्यदेव की एक योजना थी, दर्पण के नष्ट होने का सुनने से करुवा में क्या परिवर्तन होता है वो यह देखना चाहता था। वो अपनी इस योजना में सफल हुआ। मंत्री भयभीत हुआ।
"ऐसा सोचना भी मत में तुम्हे यहाँ से जीवित जानें देता हूँ तुम बस उस दर्पण को नष्ट मत करना।"
सूर्यदेव नें देखा की सिर्फ मंत्री करुवा ही वार्ता कर रहा है राजा का प्रतिबिम्ब कुछ भी प्रतिक्रिया नहीं दे रहा है। वो सिर्फ उस मंत्री की कठपुतली है।सूर्यदेव नें उस दर्पण को नष्ट करने का मन बनाया और दर्पण में कैद राजा को कहा "महाराज अब आप स्वतंत्र है।"
यह कहकर उसने दर्पण पर अपने हाथ में पकड़ी तलवार से ज़ोर से मारा। दर्पण बहुत कच्चा था हाथ लगते ही चूर चूर हो गया।उसके चूर होते ही निकली एक चीख जो की मंत्री करुवा की थी।
सुबह फिर एक सभा सजाई गई। आज भी किसी को दंड देना है। दंड पाने वाले एक नहीं दो यक्ति थे। एक मंत्री और दूसरा सूर्यदेव।
मंत्री और सूर्यदेव को बंधक बनाकर बेड़ियों में जकड़ा हुआ था। विवश मंत्री नें सूर्यदेव को कहा।
"यह था तुम्हारे दर्पण तोड़ने का परिणाम तुमने एक दर्पण से कई जीवन समाप्त कर दिये एक दर्पण में कैद राजा का, तुम्हारा और मेरा। दर्पण के नष्ट होने से राजा नहीं यह प्रतिबिम्ब स्वतंत्र हो गया है। पहले यह मेरी आज्ञा का पालन करता था लेकिन अब इसे कोई नहीं रोक पायेगा।
सूर्यदेव नें राजा के प्रतिबिम्ब को देखा। अहंकारी आंखे और मुस्कान लिये वो तन कर सिंहासन पर बैठा था। उसके मुँह से अंतिम वचन जो उन दोनों नें सुना था, वो था... मृत्युदंड।
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