लिफ्ट में वो ऐसे खडे थे जैसे की कोई चोरी कर रहें हो। उनकी मज़बूरी बेचैनी और डर देखकर शायद समाज के कुछ वर्ग को अच्छा भी लगता होगा।Emotional story in hindi।।Hindi story।।Moral story in hindi।।Hindi Kahani।।Hindi Emotional kahani।।
अमीरों की लिफ्ट( हिन्दी कहानी ) ।। Emotional story in hindi।।Hindi story।।Moral story in hindi।।Hindi Kahani।।Hindi Emotional kahani।।
बचपन में हम सब कितने मासूम रहते है। कोई भेद नहीं रहता सबको देखकर एक सा रिस्पॉन्स देते है। कौन अमीर है कौन गरीब यह सब का भेद नहीं, जिसने भी हँसाया उसके सामने हॅस दिये। जिसने लाड लड़ाया उसकी गोदी में चले गये।
बड़े होने पर ऐसा नहीं होता। अक्ल आते ही सब दिखने लगता है। कौन गरीब है कौन अमीर, कौन ऊंचे पोस्ट पर और कौन निचे। चाह कर भी आप किसी के साथ अच्छा चाहे चाहे तो कुछ ऐसा होता है जो आपको रोकता है।
रोकते है आपके और दूसरों के अनुभव, आपकी दौड़, आपका काम, तो कभी आपकी मज़बूरी।बुरे लोग कुछ होते है, लेकिन उनके द्वारा किये गये का असर समाज के एक बड़े वर्ग पर पड़ता है। वो कहते है ना गेहूं के साथ घुन भी पिसाता है।
में एक कंपनी के ऑफिस में काम करती हूँ। ऑफिस की बिल्डिंग में बहुत सारे दुसरे ऑफिस भी है। अभी कुछ दिन हुऐ मुझे ज्वाइन करें। यह मेरा पहला जॉब ही है इसके पहले भी काम करती थी लेकिन वो इतने बड़े ऑफिस में नहीं था।
मेरा ऑफिस पांचवे माले पर है। जानें लें लिये अच्छी लिफ्ट है। ऑफिस में चाय पानी की भी अच्छी व्यवस्था है। 9 से 5 का जॉब है, ऑफिस में कुछ ज्यादा काम भी नहीं है सब कुछ अच्छा है।
लेकिन सब कुछ अच्छा होने के बाद भी कुछ ऐसा था जिसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया। ऑफिस का पानी, जब भी पानी पीती मुझे कुछ विचार उठते। उसका कारण यह नहीं था की पानी अच्छा नहीं था या वो अच्छी जगह नहीं रखा था।
पानी का अच्छा छोटा फ़िल्टर था जिसके ऊपर पानी के केन उल्टी रखी जाती थी। मुझे उस केन को देखकर विचार आते थे।
वो पानी के केन एक बुजुर्ग करीब 55 साल के हमारे ऑफिस लाते है। पानी की केन उठा कर लाना और बिल्डिंग के सभी फ्लोर के सभी ऑफिस में देना उनका काम था।
वो दुबले पतले वो बुजुर्ग पसीने में लठपथ रहते। आंखे हमेशा निचे सीढ़ियों पर रहती। आंखे ऐसी जैसे अब दुनियाँ को देखना ही नहीं है। मैंने उन्हें कभी किसी से बात करते नहीं देखा।
बस उनको देखकर हमेशा यही ख्याल आता की आखिर उन्हें यह काम लिफ्ट से क्यूँ नहीं करने दिया जाता।
पानी वाले और दूसरे ऐसे काम करने वालों के लिये लिफ्ट में जाना मना था। इसलिये उन्हें पानी रखने का काम सीढ़ियों से करना पड़ता था। सीढ़ी चढ़कर एक से 5 फ्लोर तक जाते और बारी बारी सभी ऑफिस में पानी रखते है।
आप अब ऐसी पोजीजिशन पर है की आप उनके लिये सिर्फ दया भाव रख सकते है। बस देखकर यह बोल सकते है की अरे यार बेचारे कितनी मेहनत करते है और फिर ऐसा बोल कर अपनी जगह पर वापस बैठ कर अपना काम करनें लग जाते है। यह भी सही है और इसके अलावा हम अब कर भी क्या कर सकते है।
एक दिन निचे जब पानी के लिये ऊपर आ रहें थे तब में वहाँ खड़ी थी। मैंने देखा लिफ्ट मेन लिफ्ट में नहीं है, तो मैंने उन्हें कहाँ की आप लिफ्ट में आ जाओ। पहले तो वो माने नहीं फिर मैंने थोड़ी देर उन्हें मनाया कहाँ की मेरा नाम लें लेना आप आ जाओ।
यह पहली बार था जब मैंने उन्हें बोलते देखा वरना हम सब नें तो उन्हें गूंगा ही बना दिया था। और बोले भी तो डर से बोले, उन्होंने कहाँ की "मैडम आप जानती नहीं, किसी नें देखा तो बहुत डांट पड़ेगी शायद नौकरी भी चली जायेगी।"
लिफ्ट में वो ऐसे खडे थे जैसे की कोई चोरी कर रहें हो। उनकी मज़बूरी बेचैनी और डर देखकर शायद समाज के कुछ वर्ग को अच्छा भी लगता होगा। क्यूँ की डरा हुआ इंसान तो छोटा बना रहेगा, और वो बड़े किसी को छोटा बनाकर ही बनते है।
मुझे उन्हें देखकर उनकी प्रति सहानुभूति आयी, और फिर दूसरा विचार यह की आया की भगवान कभी ऐसी मज़बूरी में किसी को ना फ़साये। हम सब इसी बात को धन्यवाद देते है की चलो हमें भगवान नें ऐसा नहीं बताया। और जिन्हे बनाया उन्हें देखकर आगे बढ़ते है।
लिफ्ट के 5 फ्लोर पर जब लिफ्ट रुकी तो लिफ्टमेन को देखकर उनके जैसे प्राण निकल गये। लिफ्टमेंन कुछ बोलता उसके पहले मैंने बोला की "भैया इनको मैंने बोला था लिफ्ट में आने के लिये।" वो लिफ्ट मेन बिना कुछ बोले सर हिलाकर उनकी ओर ऐसे देखकर गया जैसे वो इंसान नहीं हो । वो भी सर झुकाये निकल गये।
ऑफिस में जाकर बैठी तो थोड़ी देर बाद बॉस नें बुला लिया। बात वही थी, लिफ्ट में पानी वाले को क्यूँ आने दिया।
मुझे बोला की आप यहाँ के रूल मत तोड़िये इस बिल्डिंग में और भी ऑफिस है सभी को वही लिफ्ट यूज़ करना है। लिफ्ट ख़राब हुई तो आपको उसका मेंटेनेंस चार्ज देना होगा।
बस इतना तो काफ़ी था मेरी अच्छाई और सहानुभूति को दबाने के लिये। अब में भी औरो की तरह बन जाऊंगी। लिफ्ट में आने के लिये उन्हें कभी गलती से भी ना बोलूंगी।
समाज हमें कठोर बनाता जाता है। यह कठोर उन बुजुर्ग जैसे अच्छे इंसानों की वजह से नहीं बनाता। उन्हें तो यह बेवजह सहना पड़ता है। उन लोगों की वजह से जो ऐसी व्यवस्था लाने के लिये मजबूर कर देते है। हमको यह सब देखना होता है। अभी तो मन में सहानुभूति दया भाव है क्या पता आगे जाते जाते यह खत्म हो जाये। एक लाइन अक्सर लोग कहते है
"भलाई का जमाना नहीं है।"
यह लाइन ऐसी ही नहीं बोली होगी। पहले भलाई करके देखी होगी ओर उसके परिणाम जो मिलें होंगे तब यह लाइन बनी होगी।
लेकिन बात तो यह भी सच है।
"जाके पैर न फटी बिवाई, सो क्या जाने पीर पराई'।।
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