500 रूपये की गुड़िया (हिन्दी कहानी )।। Emotional story in Hindi।। Hindi kahani।। Hindi Story।।Hindi Emotional kahani।। Kahaniyaa।।


नंदिनी ने साहस जुटाया और दुकान वाले से बोला, "अंकल, मुझे यह खिलौना चाहिए।" दुकानवाले ने उसकी फटी हुई चप्पल देखकर उसे नजरअंदाज कर दिया।।Emotional story in Hindi।।Hindi kahani।।Hindi Story।।Hindi Emotional kahani।। Kahaniyaa।।


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छोटे छोटे हाथ लगे है मिट्टी को पीटने, मन में है की आज तो अच्छी सी एक गुड़िया बना कर रहूँगी, गुड़िया बहुत पसंद है नंदिनी को, स्कूल के कपडे अभी भी पहने है, दादा स्कूल से सीधा यहॉ लेकर ही आ जाते है। स्कूल के बाद यही दादा की सब्जी की टोकरियों के साथ बैठी रहती है, आते जाते लोगों को देखा करती है और अपनी गुड़िया बनाती रहती है अभी कुछ दिनों से गुड़िया का भूत सवार है। 



दादाजी इसे जानभूझ कर दूसरी गली से लेकर आते है। वहाँ एक नयी मुसीबत है एक नयी दुकान खुली है खिलोनो की। एक बार नंदिनी नें वो देख ली थोड़ी देर वही ख़डी हो गई थी। आंखे बंद करने वाली गुड़िया आयी है वहाँ, बोलो तो बात भी करती है, सुलाओ तो सो जाती है। तब से दादाजी ध्यान रखते है उस गली से नहीं लेकर आते। दाम भी नहीं पूछा। 

आखिरकार नंदिनी दादाजी से छिप कर खेलते खेलते उस गली में चली गई। मन में था की उस गुड़िया को एक बार हाथ लगा कर देख लूँ। जाकर उस दुकान के सामने खड़ी हो गई और गुड़िया को निहारने लगी। वह गुड़िया बहुत सुंदर थी, रंग-बिरंगे कपड़े पहने हुए, और उसकी आँखों में चहक थी। नंदिनी ने उसे कुछ देर तक देखा और फिर सीधे दुकान के अंदर चली गई। दुकान के मालिक, अंकल, ने उसे देखकर नज़रें घुमा ली। उसकी आँखों में तिरस्कार और दया दोनों थे। वह चुपचाप बैठी रही और खिलौने को हाथ से छूने का मन ही मन सपना देखने लगी।



आखिरकार, नंदिनी ने साहस जुटाया और दुकान वाले से बोला, "अंकल, मुझे यह खिलौना चाहिए।" दुकानवाले ने उसकी फटी हुई चप्पल देखकर उसे नजरअंदाज कर दिया और बोला, "तुम्हारे जैसे बच्चों को ऐसे खिलौने नहीं मिलते। जाओ, यहाँ से।"


नंदिनी थोड़ी देर के लिए चुप रही, फिर वह वापस अपनी जगह पर खड़ी हो गई और फिर से वह खिलौना देखती रही। दुकान में कोई आया उसकी तरह ही कोई बच्ची लेकिन साथ में थे पापा। उसके पापा नें उसे वो गुड़िया दिलवा दी।वो भी सोच रही थी कि अगर उसे पापा मिल जाएं, तो उसे भी यह खिलौना मिल सकता है।


नंदिनी के पापा नहीं थे, वो उन्हें और उसकी माँ को हादसे में खो चुकी थी, और उसके दादा और दादा, दादी ही उसका पालन-पोषण करते थे। दादा जी की उम्र बहुत हो चुकी थी, और वह एक छोटी सी सब्जी की दुकान चलाते थे, जिससे किसी तरह परिवार का गुज़ारा चलता था। नंदिनी कभी-कभी घर के कामों में भी उनकी मदद करती थी, लेकिन एक बच्ची के लिए उस मेहनत और संघर्ष को समझना और सहना बहुत मुश्किल था।



उस दिन नंदिनी का दिल बहुत दुखी था। उसे उस खिलौने के लिए बहुत ख्वाहिश थी, लेकिन उसे पता था कि उसके पास उसे खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं। वह दुकान से थोड़ी दूर जाकर एक बेंच पर बैठ गई और सोचने लगी। तभी उसके दादा जी उसे ढूंढते हुऐ वहाँ पहुंच उन्होंने देखा कि नंदिनी चुपचाप बैठी थी और उसकी आँखों में कुछ था जो आमतौर पर नहीं होता था।


"क्या हुआ बेटा?" दादा जी ने प्यार से पूछा।

नंदिनी कुछ देर तक चुप रही और फिर बोली, "दादा जी, मुझे पापा चाहिए।"

दादा जी चुप हो गए। वह कुछ समझ ही नहीं पाए कि उनकी पोती आज क्यों ऐसा महसूस कर रही है। उन्होंने फिर से पूछा, "तुझे दादा प्यार नहीं करते?"

नंदिनी ने सिर झुका लिया और कहा, "दादा, आप मुझसे बहुत प्यार करते हो, लेकिन वो खिलौना मुझे चाहिए, और उसे सिर्फ पापा ही खरीद सकते थे। आप मुझे वह नहीं दिला सकते।"

दादा जी को नंदिनी की बातों ने आहत किया। उन्होंने कुछ पल के लिए विचार किया और फिर कहा, "बेटा, वो दुकान वाला किसी को भी खिलौना दे सकता है, अगर उसके पास पैसे हों।"


नंदिनी ने थोड़ा झिझकते हुए पूछा, "तो फिर हमारे पास पैसे क्यों नहीं हैं, दादा?"

दादा जी की आँखों में एक गहरी उदासी और थकान थी, लेकिन उन्हें समझ नहीं आ रहा था की नंदिनी को कैसे समझाये। दादाजी नें कहाँ की 

"अच्छा ठीक है तू यही रुक में आया "

दादाजी थोड़ी देर बाद आये और नंदिनी को उस दुकान में लेकर गये और उन्होंने उसे वो गुड़िया दिला दी, 500 रूपये जो करीब 2 दिन की मेहनत थे उन्होंने अपनी लाडली के लिये दे दिये।

दादाजी नें अपनी पोती से कहा, "तुम्हें यह खिलौना बहुत पसंद आया है?" नंदनी ने खुशी से कहा, "हां, 


नंदिनी खुश थी लेकिन दादाजी अब हिसाब किताब में लगे थे की कैसे इन 500 रूपये जो गुड़िया में चले गये उसकी भरपाई कैसे होगी। यह उनके लिये ज्यादा पैसे थे। वो मन में सब योजना बनाने लगे, साथ ही दादी को भी कैसे समझायेंगे यह भी सोचने लगे।



इन सब के साथ वो अपनी पोती को देख रहें थे जब उनकी पोती खुश हुई तो उनके दिल में एक अलग शांति मिल रही थी। वो चाहते थे की उनकी पोती कभी अपने माता पिता को कमी महसूस ना करें। उसकी खुशी उनके लिये सबकुछ वो समझ गये थे की आज समझाने से काम नहीं चलेगा आज बच्ची को ख़ुश करना होगा।



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यह कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है। इसके पात्र घटनाये स्थान नाम भी काल्पनिक है। इसका किसी के भी जीवन से मेल खाना महज एक सयोंग होगा। कहानी का उद्देश्य केवल मनोरंजन करना है। कृपया इसे उसी तरह से लिया जाये। पाठक अपने विवेक का इस्तेमाल करें।


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