माँ का लाडला।। बेटे को पता चला क्या होती है भूख। Hindi kahaniya ।। Moral story in hindi।। Hindi story।। Hindi kahani।। Moral kahani।।


यह पहली बार था जब उसे पता चला की भूख क्या होती है। मोरल कहानी।। Hindi kahani।। Hindi kahaniya।। Moral story in hindi।।Hindi story।। Shikshaprad kahani।। Hindi kahaniyaa।।




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रवि अपनी माँ का एक लौता बेटा है। उसके पिता का निधन बचपन में जब वो 5 साल था तब हो गया था। तब से उसकी माँ ने ही उसकी परवरिश की है।


एक ही बेटा है बडा लाड प्यार से माँ ने पाला है। हालांकि आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ा। लेकिन माँ ने कभी किसी के आगे हाथ फैलाये नहीं। जिन्होंने कभी बहुत जरुरत पड़ने पर मदद की, जो भी पैसा दिया। उन्हें भी समय के साथ वापस कर दिया।



रवि की मौसी ने उनकी मदद की थी। सिर्फ एक वो ही जो उनके यहाँ आती जाती रहती है। हाल, चाल जानती रहती है। फ़िक्र करती है।



माँ खाना बनाने जाती है। कभी इस घर में तो कभी किस घर में। आज रवि 22 साल का हो गया। औऱ माँ को काम करते करते 17 साल हो गये है। ऊपर वाले की कृपा रही है की इस दौरान उनकी गाड़ी चलती रही।



माँ ने रवि के लिये जितना हो सकती थी किया। रवि को डिप्लोमा की पढ़ाई करवा दी। रवि को पढ़ाई पूरी किये 1 साल हो गया है। लेकिन अभी तक नौकरी नहीं लगी।



माँ को अभी भी आराम नहीं है अभी वो खाना बाना रही है दूसरों के घर में। माँ ने कभी रवि पर दबाव नहीं डाला ना ही कभी किसी विषय पर उससे बात की।



एक दिन रवि जब शाम को अपने घर में आया तो माँ नहीं थी। उसने थोड़ा इंतजार किया तब तक भी माँ नहीं आयी। तो वो सीधा मौसी के घर गया।



रवि - माँ कहाँ है आप के यहाँ है क्या?


मौसी - हाँ. वो गाँव में हमारे एक दूर के भाई का निधन हो गया है वही गई है में भी वही जा रही हूँ। तू कुछ दिन अपना ख्याल रखना।



रवि - माँ को कितनी बार बोला था की एक फोन लें लें। लेकिन हर बार यही कहती है की चलाना नहीं आता।




रवि कुछ मिनट बाद रुक कर फिर कहता है।


रवि - मौसी कुछ खाने का है तो दें दो बड़ी भूख लगी है। माँ कुछ बाना कर नहीं गई।



मौसी - अरे बेटा मेरे यहाँ भी ख़तम हो गया है। औऱ मुझे अभी रात वाली गाड़ी से निकलना है। तू कुछ बाहर से लेकर खा लेना।



इतना कहकर मौसी जल्दी से निकल गई।


रवि ने उस दिन बाहर से खाना खा लिया। उसे लगा था की माँ एक दो दिन में माँ आ जायेगी इसलिये जो मन किया वो खाया औऱ उसके पास जितने थे उसमे से आधे रूपये उसमे से खर्च कर दिये।



अगले दिन, फिर दिन में ही उसके पास जितने पैसे थे वो सारे ख़त्म हो गये। उसने घर आकर सभी जगह जहाँ माँ पैसे रखती थी टटोला, डिब्बे में कबाट में लेकिन कहीं से कुछ नहीं मिला।



पैसे कहीं मिलें नहीं रात होते होते भूख लगने लगी तो, उसने कुछ बनाने के लिये डब्बो में हाथ डाला तो किसी में कुछ भी नहीं था ना चावल ना दाल ना ही दूसरा समान। उसने यह पहली ही बार था जब राशन के डब्बे खोले होंगे।



कुछ नहीं मिलने पर उसने दोस्त के यहाँ जाकर कुछ खा कर आ गया। लेकिन उसे पता था की पैसे चाहिये क्यूँ की रोज उसे कोई खिला नहीं सकता।


उसने मौसी को फोन किया। 


रवि - मौसी कहाँ है आप औऱ माँ कहाँ है जरा बात करवा तो।


मौसी - में अभी ज़रा दूसरे गाँव आ कुछ काम से गई बेटा, माँ तो वही है थोड़ा समय लग जायेगा मुझे जानें में।



रवि - मौसी आप लोग कब तक आयेंगे। 4 दिन हो गये अभी तक माँ से बात भी नहीं हुई।



मौसी - हाँ बस एक दो दिन की बात है आ जायेंगे।


रवि के दोस्त भी रवि की तरह थे। उसने बिना पैसे के भी कभी किसी दोस्त के घर खा लिया कभी किसी के। लेकिन अब करीब 8 दिन हो गये। अब वो कहीं जा नहीं सकता था।


रवि ने फिर फोन किया मौसी को।



रवि - मौसी आप फोन उठाते नहीं है कहाँ है आप लोग मुझे बताये में आ जाता हूँ। माँ ने भी कभी कुछ बताया नहीं ऐसा भी कोई रिश्तेदार है किसी गाँव में।


मौसी - अरे हम लोग आने ही वाले थे लेकिन अभी यहाँ कोई नहीं है हम लोग को थोड़ा समय लगेगा। कुछ परेशानी हो गई है।



रवि - क्या परेशानी माँ तो ठीक है ना


मौसी - माँ ठीक है।


रवि - तो आप मेरी बात क्यूँ नहीं कराते।


मौसी - करवाती हूँ में अब में पक्का करवाती हूँ समय मिलने पर।


रवि - मौसी मेरे पास खाने का कुछ बचा नहीं है पैसे भी नहीं है कल शाम से कुछ खाया नहीं। आप पैसे थोड़े किसी को देने को कहो। माँ से बोलो।



मौसी - अच्छा तो तू एक काम कर फोन मै केटरिंग वाले भैया का नंबर है। उनसे बात करले माँ का नाम लें लेना।


रवि ने फोन रखते ही। केटरिंग वाले भैया को फोन किया उन्होंने कहाँ की उनसे आकर मिलें। रवि बुलायी गई जगह पर गया।



वहाँ जाकर देखा तो छोटे ट्रक में समान लोड हो रहा था। रवि ने जाकर केटरिंग वाले भैया से बात की।


रवि - वो मैंने फोन किया था आपको पैसे के लिये।


भैया - पैसे मिलेंगे तुमको क्या आता है। खाना बनाना आता है। 


रवि - नहीं। में काम के लिये उधार लेने आया हूँ। माँ को जानते होंगे आप वापस लौटा देंगी।


भैया - अरे उधार नहीं मिलता। अभी जाओ मुझे काम पर जाना है जल्दी है।



रवि को लगा की आज भी उसे भूखा सोना पड़ेगा। उसने सोचा काम पर जाता हूँ वहाँ खाना भी मिलेगा औऱ पैसा भी।


रवि - अच्छा ठीक है में काम करूँगा।


भैया - ठीक है एक दिन का 350 दूंगा तुम्हे खाना बनाना आता नहीं। यह बर्तन लोड करो औऱ वहाँ धोने औऱ इनको बराबर लाने का काम तुम्हारा। ठीक है समझ गये। एक भी कम हुआ तो पैसे नहीं मिलेंगे। जो गुम हुआ वो देना पड़ेगा।



रवि ने हाँ किया औऱ सामन गाड़ी में लोड करने लगा।
शादी के जगह पहुंच कर उसने सारे बड़े छोटे बर्तन मांझे। अभी खाना तैयार नहीं हुआ था वो भूखा था लेकिन काम करता रहा।



वहाँ उसने काम करते सभी लोगों को देखा। महिलाओ को देखा। उसे लगा की वो अकेला नहीं है। जैसे उन्हें देख कर उसने कुछ सिखा।



शाम हो गई खाना तैयार होते होते। उसके बाद भी खाना पहले मेहमानों को खाने को था। करीब रात 10 बजे उसने अपने लिया खाना निकाला।



थाली भरी देखी तो उसके आँखों से आँसू आ गये। पहला निवाला मुँह में लिया। एक अजीब सी शांति उसके अंदर आयी जो भूख की आग थी धीरे धीरे शांत होने लगी।


बर्तन लोड करके अपनी जगह वापस सभी वापस आ गये। रवि को 350 रूपये मिलें। इन पैसो को लेकर वो घर गया। उस रात बिस्तर पर गिरते ही सो गया। पता नहीं चला कब आँख लग गई।



सुबह उठकर वो तैयार होने लगा। अपनी सर्टिफिकेट की फ़ाइल उठायी औऱ घर से निकला नौकरी की तलाश में। पैसे थे लेकिन अब खर्च करने का मन नहीं कर रहा था। क्यूँ की उसे पता चल गया था की कितनी मेहनत से आया है।



शाम को जब वो घर पहुँचा तो। माँ घर आ गई थी। उसने देखते ही माँ को गले लगाया। माँ भी रोने लगी कभी इतने दिनों तक दूर जो ना रही थी।


माँ - कैसा है कहाँ गया था खाना खाया की नहीं।


रवि - ठीक हूँ। तुम्हारे लिये एक खुशखबरी है। मुझे एक छोटी नौकरी मिल गई। 


यह सुनकर माँ बहुत खुश हुई।

मौसी आयी तो माँ ने उसे देखते ही कहाँ।


माँ - देख तुने बेवजह ही नाटक कर के इसे परेशान किया देख में ना कहती थी, मेरा बेटा सब कर लेगा। देख काम ढूंढ लिया।


रवि सब समझ गया। उसे पता चल गया की मौसी ने यह सब क्यूँ किया। उसकी आंखे खोलने के लिये। उसे यह बताने के लिये की उसकी माँ ने कितनी मेहनत की उसे पढ़ाया ताकि वो यह सब ना देखें। कभी उसे भूख क्या होती यह पता भी नहीं चलने दिया। 


उसने जाकर मौसी के पैर पड़े।


मौसी - बस..मुझे फ़िक्र थी पर अब तेरी आँखों में यह आंसू देखकर मुझे संतोष मिला। तेरी माँ जहाँ काम करती थी वो भी छूट गया था परेशान थी। तुझे बताया नहीं। इतने सालो से कभी पैसे नहीं मांगे लेकिन माँगने आयी तो मुझे लगा की यह सब करना जरुरी है। 



रवि अब काम करने लगा। धीरे धीरे आगे भी बड़ रहा है। माँ को उसने काम करने को बिलकुल मना कर दिया है। मौसी के छोटे से नाटक से ज़िन्दगी की उसे एक बड़ी सिख मिली।



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यह कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है। इसके पात्र घटनाये स्थान नाम भी काल्पनिक है। इसका किसी के भी जीवन से मेल खाना महज एक सयोंग होगा। कहानी का उद्देश्य केवल मनोरंजन करना है। कृपया इसे उसी तरह से लिया जाये। पाठक अपने विवेक का इस्तेमाल करें।




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