दीपावली पर जिद पर अड़ी वृद्धाआश्रम की अम्मा। Emotional story in hindi।।Hindi kahaniya।।Hindi story।।Emotional hindi kahani।।

 

दीवाली के 4 दिन पहले ही उन्होंने खाना छोड़ दिया। खुद को बीमार कर लिया। उनका मानना था की अगर वो ऐसा करेंगी तो उनका बेटा जरूर आयेगा।Emotional story in hindi। Diwali की heart touching story।


दीपावली पर जिद पर अड़ी वृद्धाआश्रम की अम्मा। Emotional story in hindi।।Hindi kahaniya।।Hindi story।।Emotional hindi kahani।। 





वृद्धाआश्रम में कई बुजुर्ग महिला थी। जिन्हे उनके बेटे या कोई ना कोई परिवार वाले छोड़ गये थे। ऐसी ही एक बुजुर्ग महिला को यहाँ आये 3 साल हो गये थे। वो अभी भी यह यकीन नहीं कर पा रही थी की उनका बेटा उनके साथ ऐसा करेगा।


अपना काम करती थी कभी रोती तो कभी उदास बैठी अपने बेटे और पोते को याद करती। वहाँ उनकी जैसी बहुत महिलाये थी। लेकिन उन सभी ने अब यह मान लिया था की उनका यही घर है।


कहते है की बचपन और बुढ़ापे में कुछ समानता होती है। कभी कभी बुजुर्ग भी बच्चों की तरह ज़िद पर अड़ जाते है।


ऐसे ही उन्होंने एक ज़िद पकड़ ली की। उनके बेटे को बुलाये। इस बार वो दीपावली अपने बेटे और पोते के साथ मनाना चाहती है। कम से कम उन्हें देखना ही चाहती है।



दीवाली के 4 दिन पहले ही उन्होंने खाना छोड़ दिया। खुद को बीमार कर लिया। उनका मानना था की अगर वो ऐसा करेंगी तो उनका बेटा जरूर आयेगा उन्हें देखने। अब उन्हें क्या पता था, अगर उनके बेटे को उनकी परवाह होती तो वो उन्हें यहाँ ही क्यूँ छोड़ कर जाता।



आश्रम की देख रेख करने वाले, राजीव ने उन्हें बहुत समझाया। यह नहीं था की राजीव यह पहली बार कर रहा है। कभी कोई माँ अपने बैट के लिये रोती तो कभी कोई वो सबको संभालता दिलासा देता, कोशिश करता की क़ौम जिससे मिलना चाहते है मिलवा दे। लेकिन उसकी यह कोशिश कभी कभी ही सफल हो पाती। उसने अभी भी अम्मा को हर तरह से बोला की क्या में आपका बेटा नहीं। क्या में आपका ख्याल नहीं रखता।



अम्मा कहती रखता है। लेकिन मुझे अपने पोते को देखना है। फिर अम्मा ने उनके यहाँ आने की बात बताई, जब में यहाँ आयी तब एक दीवाली पर उसने मुझसे पैसे मांगे थे, छोटा था, ज़िद करने लगा था। उसके माँ बाप घर नहीं थे। तो मैंने उसकी माँ के कबाट से पैसे निकाल कर उसके लिये दीवाली की खिलौने वाली बन्दुक उसे दिला दी। बस यही गलती मुझसे हो गई।



घर आकर जब बहूँ ने देखा तो उसने चोरी का इलज़ाम लगा दिया मुझ पर। मुझ पर लगाया वो तो ठीक मेरे पोते को मारा मेरे सामने उसकी बन्दुक तोड़ दी। बस मेरा बेटा उसके कुछ दिन बाद मुझे यहाँ छोड़ गया।



अब मैंने यहाँ काम करके कुछ पैसे जमा किये है। मुझे मेरे पोते को इससे कुछ लेकर देना है। वो बडा खुश होगा। मेरा बेटा इतना बुरा नहीं है, कहना माँ बीमार है पोते को देखना चाहती है वो जरूर आयेगा।



राजीव ने माँ की ज़िद के बाद उनके बेटे को यहाँ बुलाना चाहा। लेकिन पता चला की वो यह शहर छोड़कर चले गये। उनका कोई नंबर नहीं था। जो नम्बर दिया था वो भी नहीं लग रहा था। राजीव अब यह बात जाकर कैसे उस अम्मा को बताये। यह उसे समझ नहीं आ रहा था।



अम्मा ज़िद पर अड़ी थी। कहती थी की अब अगर वो नहीं आया तो मुझे नहीं जीना। वैसे भी क्या है मेरे इस जीवन में ऐसा। 



राजीव ने आकर अम्मा से कहाँ की अम्मा तुम्हारा पोता दीवाली वाले दिन यानि कल आयेगा । अब तुम खाना खा लों। अम्मा ने कहाँ नहीं वो आयेगा तब ही खाना खाऊँगी। मुझे वो खिलायेगा।



दीपावली की रात भी आ गई। अम्मा इंतजार कर रही थी। तभी राजीव एक 7 साल के बच्चे को लेकर उनके सामने आया। अम्मा से कहाँ -अम्मा देखो तुम्हारा पोता आया है।



अम्मा ने ख़ुशी से अपना चश्मा लगाकर उसकी ओर देखा। देखकर बोली यह तुम किसे लें आये हो यह मेरा पोता नहीं है। माना की मैंने उसे 3 साल से नहीं देखा फिर भी तुमने ऐसा कैसे सोच लिया की तुम किसी को भी लें आओगे ओर में उसे अपना पोता मान लुंगी। में उसकी दादी हूँ उसे अच्छे से पहचानती हूँ। यह मेरा पोता नहीं है।



राजीव ने कहाँ अम्मा तुमने ठीक कहाँ यह तुम्हारा पोता नहीं है पता है यह कौन है। राजीव ने उससे पूछा बेटा तुम्हारा नाम क्या है। लड़का बोला सोनू। बेटा तुम्हारे मम्मी, पापा कौन है। लड़का बोला पता नहीं। 
अच्छा तुम कहाँ रहते हो। लड़का बोला की यहाँ से थोड़ी दूर पर सबके साथ।



राजीव ने आगे की बात बताई। अम्मा यह भी अनाथ आश्रम में रहता है। तुम तो बहुत किस्तम वाली हो अम्मा की तुमने अपने माँ, बाप, पति, बेटे, पोते  सबको देखा है। इसे तो कोई छोड़ गया बस ऐसे ही। देखो फिर भी ज़िन्दगी जीना चाहता है। कभी ज़िद नहीं करता। और इसके जैसे कई है जो वहाँ है।



अम्मा जो हो गया में जानता हूँ भूलना मुश्किल है। लेकिन इस तरह कमज़ोर मत बनो। खुश रहो सोचो ऐसा ही होना था। तुम्हारे पास अच्छी यादे है चहेरे है उनको याद करो। 



अम्मा समझ गई की राजीव उसे क्या समझाना चाहता है। उसने बच्चे की ओर देखा। मासूम सा बच्चा चुपचाप अम्मा की ओर देख रहा था। 



राजीव ने खाने की थाली मंगवाई और कहाँ की तुमने कहाँ था की तुम अपने पोते के हाथो से ही खाना खाओगी। देखो यह तुम्हारा पोता ही तो है।



अम्मा ने उस मासूम बच्चे के हाथ से खाना खाया। और उसने जो भी पैसे जोड़े थे उस बच्चे को दिये। कहाँ की जो पसंद हो वो लें लेना।



अम्मा ने जीवन की कड़वी सच्चाई को स्वीकार कर लिया। अब वो उस समय को याद करके दुखी नहीं बल्कि उस समय की अच्छी यादो को याद करके खुश रहती है।



राजीव के एक सहयोगी ने उससे कहाँ की तुम बडा अच्छा काम कर रहें हो। तब राजीव ने कहाँ की में नहीं चाहता हूँ ऐसा काम करना। में नहीं चाहता की यहाँ कोई भी बेसहारा माँ यहाँ आये। कोई बच्चा किसी अनाथ आश्रम जाये। किसी को मेरी जरुरत ना पड़े। मेरे पास माँ नहीं है मुझे उसकी इतनी कद्र है। यह कद्र सभी को हो ऐसा मेरा मानना है।


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यह कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है। इसके पात्र घटनाये स्थान नाम भी काल्पनिक है। इसका किसी के भी जीवन से मेल खाना महज एक सयोंग होगा। कहानी का उद्देश्य केवल मनोरंजन करना है। कृपया इसे उसी तरह से लिया जाये। पाठक अपने विवेक का इस्तेमाल करें।



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