किताब में जो लिखो वो मिलता था.. लेकिन।। रहस्यमयी किताब - 2।।Suspens story in hindi।।Suspense Thriller stories।।hindi kahaniya।।


करण का केवल एक ही मकसद था उसका प्यार नैना। जो की उस किताब ने पूरा किया। लेकिन करण ने किताब का सम्मान नहीं  किया और फिर...।।Suspense stories in hindi।।


किताब में जो लिखो वो मिलता था.. लेकिन।। रहस्यमयी किताब - 2।।Suspens story in hindi।।Suspense Thriller stories।।hindi kahaniya।।


आज वो दिन था जिसका इंतजार कर रही थी नैना। चहेरे पर एक अलग ही चमक है। हसीं है की थमने का नाम नहीं लेती होंठ से आँखों से हर जगह से झलक रही है।


नैना को 3 महीने लगे यह सोचने में की आखिर वो किस कलर कॉम्बिनेशन के साथ जायेगी। फिर करीब 8 महीने के बाद हैंड मेड गांवन में परी से खूबसूरत लग रही है।


एक्सेट सेम नहीं पर लगभग तो मान ही लों उसी कलर का सूट है राजवीर का। आँखों की चमक नैना को आँखों से कुछ नहीं है।


आज  है ग्रेड इंगेजमेंट सेरेमनी नैना और राजवीर की। ग्रेंड सिर्फ बोलने के लिये थी यह सच में बड़ी है।सबसे बड़े एक आलीशान होटल के बड़े खूबसूरत हाल जिसमे तारो और सूरज की तरह चमचामते बेशकीमती झूमर भी जैसे सलामी दें रहें हो मेहमानों को । हर टेबल पर कोई ना कोई जानी मानी हस्ती इंतजार कर रही थी आज के स्पेशल कपल का।



और फिर राजवीर अपने अंदाज में स्टेज की तरह आ रहा है। चार पांच दोस्तों ने उसे घेरा हुआ है लेकिन यह साथ में जब तक ही होंगे तब तक नैना ना आये। स्टेज पर आकर बस अब राजवीर को भी नैना का ही इंतज़ार है।


जो घुसर फुसर हो रही है वो अचानक से रूकती है और एक सन्नाटा छा जाता है। हाल पूरा भरा है लेकिन आज हर कोई सिर्फ नैना को देख रहा है। वो धीरे धीरे नजरों को ऊपर करके अपने इस स्पेशल पल को एन्जॉय करते हुऐ आगे बड़ रही है।


सबकी तो बोलती बंद थी। लेकिन ऐसा भी कोई था जिसकी सांसे भी बंद हो जाती, करण। भीड़ मै खड़ा एक टक नैना को निहार रहा है। आँखों को झपकाना भी शायद भूल गया वो। उस पल वो खो गया।


एक पल में उसने पास्ट से फ्यूचर की पूरी यात्रा कर डाली। पास्ट उसका बडा था वो चाहता था ऐसा ना हो और फ्यूचर वो चाहता था की ऐसा हो। लेकिन अभी उसमे से कोई भी नहीं था।


करण वो था जो नैना को बेइंतहा प्यार करता था। करण और नैना की दोस्ती स्कूल के समय की है। लेकिन करण अपनी मन की बात नैना को बता नहीं सकता था।


करण के पास दिल था प्यार था पर वो नहीं था जो नैना को चाहिये। नैना के सपने बड़े थे। वो जिस तरह के राजकुमार के सपने सजाये बैठी थी ऐसा राजवीर था। सच का राजकुमार। सिर्फ दिल का नहीं।


जैसे जैसे नैना के पैर स्टेज पर खड़े राजवीर की तरफ बड़ रहें थे वैसे वैसे करण के पैर उसे कह रहें थे की चल अब तो चल बस कर। अभी भी रुकेगा क्या यह सब देखने के लिये।


आखिरकार करण के पैर वहाँ नहीं टिक पाये और वो वहाँ से दरवाजे के और बढ़ने लगा। आखिर क्या चाहिये था उसे।  इतने बड़े फंक्शन में वो पहली बार आया था। ऐसा उसने ज़िन्दगी में पहली बार देखा था।

उसे नैना चाहिये थी।


करण अपनी कार में बैठा जो उसकी नहीं थी लाया था मांग कर अपने दोस्त से खास इस फंक्शन के लिये। कार स्टार्ट कर निकल गया। आँखों के आँसू तो सूख गये थे पर आज नैना को इस तरह देख कर वापस आ गये।


करण को अकेले में बैठ कर रोना था। इस लिये गाड़ी ना घर की तरफ गई ना किसी दोस्त की तरफ करण गाड़ी को दूर लें जा रहा था। एक सुनसान जगह पर जंगल के पास उसकी गाड़ी पर ब्रेक लगा।


बाहर दरवाजे पर के निचे बैठ गया। अपनी किस्मत पर रो रहा था। आवाज सुनने वाला दूर दूर तक कोई नहीं था। ना कोई आँसू पोंछने वाला। 


कुछ देर बाद बहते आंसू अपने आप ही सूख गये। सोचा उसने की अब कुछ फायदा नहीं है। भूल जाता हूँ आगे बढ़ता हूँ अपनेआप को समझा रहा था।


उठा और दरवाजा खोला। लेकिन कुछ था जो उसे गाड़ी में बैठने से रोकने वाला था। उसने कुछ देखा था जिससे वो रुक गया। एक बार फिर मुड़ा देखने के लिये।


दूर झाड़ियों में कुछ चमक रहा था। यह कोई साधारण चमक नहीं थी सतरंगी उजाला था। उस चकचौध भरी महफिल में ऐसा कुछ नहीं देखा था, शायद जो उसने अभी देख लिया।


खुद को रोक नहीं पाया। पास गया उस अजीब सी खींचने वाली चमक के। झाड़ियों में पड़े एक छोटे से संन्दुक से वो चमक आ रही थी।



एक सुनसान जगह और वहाँ पर पड़ा हो कोई छोटा सा संन्दुक, वो भी साधारण नहीं, सतरंगी चमकता हुआ। शुरुवात में उठाने में हर किसी को संकोच होगा।ऐसा ही कुछ करण के साथ हो रहा था।


मन में पहले से बहुत कुछ ऊपर से यह चमचमाता नया कुछ। फिर भी करण ने उसे उठाने का मन बनाया। धीरे धीरे डरते डरते उसके हाथ वहाँ तक गये।



कपकपाते हाथो से उसने उसे उठाया हाथ लगाते ही ऐसा लगा जैसे शरीर की सारी नसो का खून दौड़ते दिखाई देने लगा हो। एक नया उजाला उसके अंदर से आ रहा हो। धड़क - धड़क, धड़कन किसी भागती ट्रैन से कम नहीं थी।



हाथ में उठाया वो संन्दुक तो उसे पता चला की चमक संन्दुक के अंदर से आ रही है। संन्दुक खोला तो उसके सामने था उसकी किस्मत चमकाने वाली किताब।


रहस्यमयी किताब।।



घर आकर उसने सबसे पहले जो काम किया वो था उस किताब को खोल कर पढ़ना। पहला पन्ना उस किताब का खोला 


लिखा था यह किताब आपकी किस्मत बदल सकती है। आप ख़ुशक़िस्मत है जो इस किताब के अधिकारी बने। आपको यकीन नहीं होगा लेकिन  आप इसमें जो भी लिखेंगे वो पूरा होगा। सबकुछ मिलेगा आपको इस किताब के जरिये।



बदले में आपको इसकी एक शर्त मानना होगा। वो यह की आपको इसे सम्मान देना होगा। आप को इसे याद रखना होगा। अगर आप ने इसे याद नहीं रखा तो... तो यह किताब आपकी मालिक बन जायेगी।


आप को 24 घंटे में एक में एक बार इसे खोलकर कुछ लिखना होगा। बस एक यही शर्त है। आप जो लिखेंगे वो मिलेगा। बस इस शर्त को ना भूले।


अगर आप इस बात से मान लेते है तभी किताब का दूसरा पन्ना पलटीये। अगर आप का जवाब ना है तो इसे जहाँ से लिया है वही वापस रख दें।


एक बार पन्ना पलटने के बाद यह किताब आपकी हो जायेगी। 


कोई भी इस बात को एकदम से मानने को तैयार नहीं होगा। लेकिन उस किताब से आती रोशनी यह बयां कर रही थी की यह कोई साधारण चीज तो हरगिज़ नहीं है।


फिर भी कुछ देर वो वही बैठा रहा। मन में यही लग रहा था की शायद ही ऐसा कुछ होता होगा। लेकिन फिर भी करण ने वो लिख दिया जिसके वजह से उसका मन भरा हुआ था नैना।


करण ने लिखा की नैना सुबह उसके घर पर आये उससे मिलने। उसे पता था की यह हो नहीं सकता क्यों की आज ही नैना की इंगेजमेंट हुई है और नैना राजवीर के साथ ही रहेगी। लेकिन फिर भी उस लिख दिया।



लिख कर उसने किताब यों बंद कर दिया और फिर ख्यालों में खो गया और वही सो गया। 


रात को कब सोया दरवाजा बंद था या खुला उसे कुछ पता नहीं अपने छोटे से कमरे के फर्श पर वो पड़ा था। उसकी आँख खुली तो सामने चेयर पर नैना बैठी थी।


उसने देख कर पहले अनदेखा कर दिया और फिर अपनी आँख बंद कर के सो गया। उसे लगा की यह उसका एक ख्याल मात्र है।


लेकिन जब नैना ने उसे पुकारा तब उसने अपनी आंखे वापस खोली।

करण हें करण। नैना की आवाज उसके कान में पड़ी 
करण - नैना तुम यहाँ.

कल तुम कहाँ गायब हो गये थे। मुझे दिखाई नहीं दिये मैंने कितना पूछा तुम्हारे लिये।

करण - लेकिन अभी तुम यहाँ क्या कर रही हो।

नैना - अरे राजवीर को अचानक बाहर निकलना पड़ा। कहाँ की शाम तक वापस आए जायेगा और तुम जानते हो की उसके बाद मुझे अगर किसी से बात करने का मन करता है तो वो हो तुम।

करण, नैना से बात कर रहा था और साथ में उस किताब के बारे में भी सोच रहा था।


रात में वो भी उस किताब के सामने था। फिर कुछ लिखने को इस बार उसने लिखा की नैना उसके साथ कल का डिनर करें। यह बात का होना ना के बराबर था। लेकिन शायद अभी वो किताब पर पूरा यकीन नहीं कर पा रहा था इसलिये एक बार फिर उसने लिखा टेस्ट करने के लिये।


अगली शाम को इंतजार कर रहा था की नैना फिर उसके पास आये। लेकिन नैना घर पर नहीं आयी उसने फोन किया और कहाँ की आज मेरे साथ डिनर कर सकते हो मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।


करण की आँखे चमक उठी उसे यकीन नहीं हुआ अपने कानो पर। उसने किताब को उठा कर चूमा और झूमने लगा उसके साथ अब उसको यकीन होने लगा था उस किताब के जादू पर।


शाम को करण, नैना की बुलाई जगह पर गया उसके साथ डिनर करने उसे मन में एक विश्वास आए गया था की अब नैना उसकी होने वाली है।



नैना, ने करण को कहाँ की मैंने तुम्हे इसलिये यहाँ बुलाया है की राजवीर चाहता है की शादी 1 महीने हो जाये। पहले उसने कहाँ था की 2 साल पर पता नहीं अब उसका मन क्यों बदल गया। करण मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा तुम बताओ क्या करना है।



करण थोड़ा सा घबराया यह बात सुनकर लेकिन फिर उसे ख्याल आया किताब का और वो धीरे धीरे मुस्कुराते हुऐ जोर से हॅसने लगा। 


नैना को समझ नहीं आया की करण क्या कर रहा वो बोल रही थी में तुमसे इतनी बड़ी प्रॉब्लम डिस्कस कर रही हूँ और तुम हॅस रहें हो।



रात करण आया और उसने किताब खोली। अब वो किताब को चेलेंज करने की सोच रहा था। उसने सोचा की अभी तक उसने किताब को कोई बडा काम नहीं दिया। 


अब किताब को बडा काम देने वाला था। उसने लिखा नैना की सगाई टूट जाये कल की कल। इतना लिख कर उसने किताब बंद की और आईने के सामने जाकर खुद को निहारने लगा। और करने लगा कल का इंतजार।



सुबह से इंतजार में था फोन के लेकिन इंतजार करते करते शाम हो गई और शाम से फिर रात  9 बज गये थे लेकिन अभी तक उसका फोन नहीं बजा ना ही नैना आयी। 



जब घड़ी के कांटे 11 बजने की तरफ जानें लगे तब उसने आस छोड़ दी। किताब की तरफ देखा जो दूर पड़ी। उसने मन बना लिया था की उसे उठा कर वो खिड़की के बाहर फेक देगा।


यह करने के लिये वो अपने बिस्तर से उठा और किताब की ओर जानें लगा। किताब को हाथ से उठाया और तभी पास पड़ा फोन बजा और कॉल था नैना का 



उसने किताब को रखा और फोन रिसीव करके कुछ नहीं कहाँ। करीब 10 सेकेंड के बाद नैना ही वहाँ से रोते हुऐ बोली, करण।



करण- अरे नैना क्या हुआ रो क्यों रही हो।
नैना - राजवीर ने सगाई की रिंग वापस भेज दी कहाँ। मेरा फोन भी नहीं उठा। बोला की उसे अब रिलेशन में नहीं रहना।



थोड़ी देर बाद करण को नैना की आवाज सुनना बंद हो गई। वो सिर्फ किताब को निहारे जा रहा था। और फिर फोन काटने के बाद ज़ोर ज़ोर से हॅस रहा था। उसकी सबसे बड़ी ख़्वाहिश पूरी होने वाली थी।



फिर रोज वो किताब में लिखने लगा। उसकी ज़िन्दगी का एक ही मकसद था नैना, नैना की ख़ुशी नैना की पसंद।



धीरे धीरे करके उसने किताब से सब माँगा पैसा, नैना का प्यार, नैना राजवीर को भूल जाये, नैना उससे बहुत प्यार करने लगे। घर, गाड़ी बिज़नेस सबकुछ।



बहुत कम समय में वो ऊपर जानें लगा। उसकी तरक्की देख कर हर कोई हैरान था। कई लोग थे जो उसके पीछे भी लगे। लेकिन वो जानता था की उसका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता। किताब जो है उसके पास।



करीब 2 साल बाद। उसने वो किया जो वो करना चाहता था। सगाई नैना से बिलकुल उसी जगह जहाँ नैना और राजवीर की हुई थी। पहले यह सोचना मुश्किल था लेकिन अब किताब की बदौलत यह सच हो रहा था।



नैना तो चाहती थी वो शादी करें। लेकिन करण ने 10 दिन की लम्बी वेडिंग का प्लान बनाया था। जिसमे सगाई पहले थे। 



करण सोच रहा था की यह सपना सच हो गया ठीक 2 साल पहले उसने नैना को ऐसे ही देखा लेकिन किसी ओर के बनते और आज नैना उसकी होने वाली थी।



धूम धाम से सगाई हुई। बहुत गेस्ट आये। पूरा हाल भरा था उनको बधाई देने में। मिडिया न्यूज़ सभी लोग थे उस सगाई को कवर करने के लिये। और बस यही था वो वक्त जब करण चूक गया।



अचानक भीड़ में खड़े हुऐ उसको याद आयी किताब की। 24 घंटे के ऊपर हो गये थे। वो एक दम से घबरा गया। सबकुछ छोड़ कर वो कमरे में भागा। फटाफट जाकर उसने अपना बेग निकाला और किताब को खोला। 



और उसने लिखना चाहा। लेकिन वो कुछ भी नहीं लिख पाया। अब किताब ने लिखा आपने मेरा अपमान किया है। अब आप को वो करना होगा जो में लिखूँगी। 
मालिक तू नहीं अब में हूँ।



करण को यकीन था की उसके साथ अब जरूर कुछ बुरा होने वाला है। किताब ने उसके लिये इतना कुछ किया। लेकिन अब किताब क्या करेंगी यह सोच कर वो बुरे हाल था।



किताब ने उसके लिए पहला काम लिखा की। तुमको नैना को एक तमाचा मारना है। यह पढ़कर उसने समझ आ गया था की आगे और क्या क्या होने वाला है।



उसने उस किताब को बंद कर दिया। और बेग में डाल के अलमारी के अंदर बंद कर दिया। घबराते हुऐ उसने सोचा की अब वो इस किताब को कभी नहीं खोलेगा।



उसने नैना को मारने का सोचा भी नहीं था। लेकिन अगले दिन नैना सुबह से घर पर नहीं थी। ना ही उसका फोन लगा। उसके मन में तरह तरह के ख्याल आने लगे। शाम होकर रात हो गई लेकिन नैना का कोई अता पता नहीं।



उसे पता था की यब सब कौन कर रहा है। उसने बेग से किताब निकाली और ज़ोर से कहाँ क्या चाहिये तुम्हे बोलो। किताब खोली तो किताब नई लिखना शुरू कर दिया।



मैंने हर वो काम किया था जो तुमने कहाँ वो भी सिर्फ 24 घंटे में। तुम्हे भी वो करना होगा। और अगर तुमने मुझसे पीछा छुड़ाने की कोशिश की तो याद रखना अंजाम बुरा नहीं बहुत बुरा होगा।



उसके किताब खोलते ही नैना घर आ गई। उसको आते ही देखकर करण ने उसे ज़ोरदार तमाचा मार दिया। बोला कहाँ थी में कब से तुम्हारा फोन लगा रहा हूँ.



नैना को करण का यह रूप समझ नहीं आया। वो रोते हुऐ अपने कमरे में भाग गई। 


करण ने सोचा की कल उसे कुछ बोल कर मना लूंगा। लेकिन उसे नहीं पता था की किताब अब ऐसा कुछ लिखने वाली है। किताब ने लिखा की करण उसके सामने 20  घंटे तक बिना हिले डूले सिर्फ बैठा रहेगा।



करण को पता था की वो अब फस गया है। उसने ऐसा ही किया। वो वही बैठा रहा। बीच में उसे नींद की झपकी आ रही थी लेकिन उसने अपनी आँखों पर पानी मारा।



अगला काम था उसे 200 km दूर जाकर एक घाटी से निचे अपनी कार गिरानी है और वापस 24 घंटे के पहले आना है वरना अंजाम बुरा।


करण गाड़ी लेकर गया। बारिश की वजह से गाड़ी खराब हो गई लेकिन उसने जैसे तैसे किताब का काम किया। उसे गिराया। वापस आना लगभग ना मुमकिन था।


सड़क सुनसान थी। कोई नहीं था अँधेरी रात और मूसलाधार बारिश में। उसे सिर्फ नैना दिखाई दें रही थी जाते हुऐ।


करण ने भागना शुरू किया। वो पागलो की तरह भागता रहा। और एक पेड़ से टकराकर गिर गया। 


आँख खुली तो वक अस्पताल में थी। और नैना उसके सामने थी। 


नैना - करण तुम्हे क्या हुआ है। कितने अजीब बन गये हो तुम कुछ दिनों से क्या कर रहें थे तुम वहाँ। चलो तुम आराम करो। बाद में बात करेंगे।


करण ने कुछ देर के लिये आँख बंद की। उसे ख्याल आया किताब का। उसने नैना को कहाँ की उसे घर जाना है। नैना ने उसे समझाने की कोशिश की। लेकिन करण ने ज़िद की वो बेड पर से उठ कर चलने लगा।


नैना उसे घर लें आयी। घर आते ही वो अपने कमरे में गया और उसने किताब को ढूंढा। लेकिन उसके सारा घर छान लेने के बाद भी उसे किताब कहीं नहीं मिली।



उसने इसके बारे में किसी से कुछ नहीं कहाँ था। नैना को भी नहीं। इसलिये नैना के कई बार पूछने पर भी उसने कुछ नहीं कहाँ की वो क्या ढूढ रहा है।



आखिर कार उसे पता चल गया था की। किताब इस घर से गायब हो गई थी। उसे अब कुछ समझ नहीं आया की अब क्या होगा।



वो बड़बड़ाते हुऐ सो गया। अगली सुबह जब उसकी आँख खुली तो उसके सामने थी नैना और उसके साथ था राजवीर।


करण उन दोनों को देखकर जैसे हक्का बक्का रह गया। जैसे ही वो उठा नैना ने उसे ज़ोरदार तमाचा मारा। 


तुम इतने बड़े धोकेबाज हो मैंने नहीं सोचा था। तुमने राजवीर को फोन किया की में तुम्हारी गर्लफ्रेंड हूँ। में तुमसे प्यार करती थी। राजवीर के पीछे में सिर्फ पैसो के लिये थी।



में सोच भी नहीं सकती की तुम इतने गिरे इंसान हो मुझे पाने के लिये इतने बड़े बड़े झूठ बोलोगे। में तुम्हारी शक्ल भी नहीं देखना चाहती।



दोबारा अगर दिखाई दिये तो फिर किसी को भी नहीं दिखाई दोगे। राजवीर ने जाते जाते एक तमाचा और टिका दिया।


करण एक बार फिर हँसा। अब उसकी हसीं पहले वाली हसीं की बिलकुल उल्टी थी अब यह हसीं बर्बादी को देख कर थी।



करण ने  जितना जल्दी नाम बनाया था। उससे कहीं जल्दी उसका नाम मिट रहा था। ना सिर्फ नैना बल्कि उसके सारे रूपये पैसे शोहरत मिट्टी में मिल गई।



झूठ, धोखाधड़ी के उस पर 36 मामले दर्ज हुऐ। जिसकी सजा बहुत लम्बी होने वाली थी। हवालत में बैठा करण यही सोच रहा था की 


किताब आखिर कहाँ गई और उसने करण को ज़िंदा क्यों छोड़ दिया।


नैना अपने कमरे में बैठी थी। कुछ सोच रही थी। उसके हाथ में पेन था। और उसने लिखना शुरू किया। सामने वही शतरंगी चमकती किताब थी.......।

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