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शांति तो अब सपने भी नहीं देखती। उसे पता है की वो पुरे नहीं होंगे। फिर एक दिन आया कोई, और उसने एक सपना देख ही लिया, लेकिन...। Hindi kahani।।Emotional heart touching stories।।


10 मिनट मेरे मनचाहे।। Emotional story in hindi ।।Hindi story।।Hindi kahaniya।।Sad stories।।Hindi kahani।। हिन्दी कहानियाँ।।


घर के आँगन में आज गोबर का लेप हो रहा है। शांति अपनी मामी का हाथ बटा रही है। मामा रमेश अपनी छोटी सी रेडी को तैयार कर रहें है।

मामा गाँव गाँव घूम कर वो छोटा मोटा प्लास्टिक का समान बेचते है। बस उसी को लटकाये जा रहें है। कहीं कुछ छूट ना जाये नहीं तो अगर किसी ने माँगा औऱ होते हुऐ भी ना दें पाये तो उन्हें दुख होता है।


मामा के 2 लड़कियां औऱ एक लड़का है तीनो शांति से छोटे है। कोई मामा की मदद कर रहा है तो कोई शांति औऱ माँ की।


दरवाजे पर किसी की आवाज़ आती है, आजकल इनका करीब महीने में एक बार शांति के घर आना हो ही जाता है।


शांति उनको आते देख काम को छोड़ कर  घर के अंदर चली जाती है।


रमेश ( शांति के मामा ) उनको देखते ही। बेमन से उन्हें आने का न्योता देते है।


मामा - अरे करुणा भाई आइये। आज सुबह सुबह कैसे आना हो गया।


करुणा - अरे वो पास ही किसी से उधार लेना था कम्बख्त लेने के बाद देने का नाम ही नहीं लेते। उनको लगता है की मुझे पैसे की क्या जरुरत। मेरे पास तो बहुत है। अरे बहुत है तो क्या लुटाने के लिये है। क्यूँ भाई रमेश।


रमेश - हाँ बिलकुल सही बात।


करुणा बात बात में हर बार अपने धनी होने का बखान करना नहीं भूलता। एक शादी पहले ही कर चूका है। पत्नी अब इस दुनियाँ में नहीं रही। उसकी नज़र शांति पर है वो उससे शादी करना चाहता है। यह बात का इशारा वो कई बार कर चूका है। बात बात में अपनी बात छेड़ता है लेकिन शान्ति के मामा को वो बिलकुल भी पसंद नहीं शांति से उम्र में दोगुने से भी बडा है। 



थोड़ी देर बाद फिर वो घूम फिर के वो उसी बात पर आ ही जाता है, जिसके लिये वो आता है।



करुणा - अरे रमेश तुम कुछ सोच विचार कर रहें हो क्या कोई लड़का देखा शांति के लिये। तुम तो दिन भर घूमते हो कुछ खबर है की अब क्या बातें उड़ने लगी है।


रमेश - अरे कैसी बातें ?


करुणा - अरे भाई मैंने सुना अब यह बात उड़ गई है शांति शुभ नहीं है कोई दोष है। एक तो माँ गुजर गई दूसरा जब से यहाँ है यब से तुम भी परेशान हो कोई तरक्की नहीं हुई है।


मामी यह बात सुण रही है औऱ उनके चहेरे के हाव भाव इस बात का सबूत देते है की वो भी इस बात को कहीं ना कहीं ना मानती है।


रमेश - अरे ऐसा कौन फैला रहा है ऐसा तो कुछ नहीं है।


करुणा- फिर 2 बार पहले बात बनते बनते कैसी रह गई।


रमेश - वो तो ( थोड़ा हड़बड़ाहट )..


करुणा-  अरे बात कुछ भी हो लेकिन बात की बात सब लोग बना ही लेते है। अब तुम ज्यादा देर मत करो वरना मुश्किल होगी। लोग यही बोलेंगे की अगर माँ ज़िंदा होती तो ऐसा होता क्या। तुम क्या मुँह दिखाओगे फिर अपनी बहन को।



रमेश गरीब औऱ फिर उसकी बहन की जवान बेटी की ज़िम्मेदारी उसके ऊपर। पिता तो जानें कहाँ छोड़ गया माँ के जानें के बाद।


उसने कोशिश की लेकिन कहीं बात बन नहीं रही थी। शांति दिखने उठने की बहुत अच्छी थी। भली लड़की थी। लेकिन कुछ था जो आड़े आ रहा था।



रमेश को भी अब लगने लगा था की उसे जल्द से जल्द कुछ करना होगा।


शांति की मामी का भी व्यहार कुछ बदला बदला सा था। यह बात शांति को भी दिखाई दें रही थी। मामा औऱ मामी की बातें भी उस बारे में होती थी। खुसर फुसर ही सही लेकिन शांति को पता था की उसकी वजह से परेशानी अब ओर बढ़ने लगी है।



शांति की मामी ने एक सुबह शांति को उसकी बहनों के साथ बाजार कुछ लेने के लिये भेज दिया। मामा सुबह फिर जानें की तैयारी कर रहें थे, सजा रहें थे अपनी रेडी।



मामी - अरे कुछ विचार करो। क्या बस रेडी में ही लगे रहोंगे।


मामा - औऱ कुछ है क्या खजाने में। अपना खाना पीना बीच, अनाज इसी से तो चलता है।


मामी - में भी वही कह रही हूँ. तुम कहीं के राजा तो हो नहीं औऱ यह तुम्हारी भांजी भी कहीं की राजकुमारी तो नहीं, तो जब उसे वो आदमी पसंद तो क्यूँ मुँह घुमाये बैठे हो। ठीक ठाक रुपया पैसा भी है।


मामा - रिश्ता कौन सा?


मामी - अच्छा करुणा की बातें तुम्हे समझ नहीं आती की वो शांति को जोरू बनाना चाहता है।


मामा - तुम पागल हो कहीं बडा है वो शांति से..ऐसे ब्याह करा दिया तो लोग क्या कहेँगे, और काहेका पैसा है उसके दिखावा ज्यादा है।


मामी - अरे तुमसे तो ज्यादा है। कुछ भी करके कम से कम बसर कर ही लेता है।तुम सारी ज़िन्दगी भी रेडी पर चप्पल घिसो फिर तुम उसके जैसा मकान नहीं बाना पाओगे । फिर उम्र निकल गई तो, जो आया है वो भी नहीं मिलेगा।


मामा - क्या उम्र है 20 की होगी अभी तो समय है।


मामी - ठीक है फिर करो मनमानी देखती हूँ की कौन सा राजकुमार लाते हो इसके लिये। खुद की 2 बेटियां है उनकी परवाह भी नहीं है।


मामा को यह सारी बातें सोचने पर मजबूर तो कर रही है लेकिन फिर भी अभी उसने सोचा है की लड़की के लिये जो अच्छा होगा उसकी पसंद का होगा वही करूँगा।


शांति के मन को बात कोई नहीं समझता। लगता है जैसे उसे सपने देखने का अधिकार भी ऊपर वाले ने छीन लिया। वो सबकी मर्जी मे राजी है। हालांकि किसी कोने में उसे भी इंतज़ार में है। वो जानती है जो सोचा वो पूरा नहीं होगा लेकिन फिर भी एक छोटी सी आशा का दीप जला कर बैठी है। कहीं कुछ हो जाये।



और एक दिन कुछ ऐसा ही होने जा रहा था। एक दिन सुबह सुबह ही उनके दरवाजे पर कोई आया। जो पास के गाँव का था उनका परिचित।



बातचीत में उसने बताया की एक परिवार को आपकी लड़की की तस्वीर दिखाई परिवार अच्छा खाता पिता है। लड़का भी मेहनती है। बस एक आखिरी लड़का है उनके परिवार में शादी की बात चलाऊ आप कहे तो।


रमेश तो जैसे ज़िंदा हो गया हो। आँखे चमक गई।

रमेश - अरे हाँ क्यूँ नहीं जब वो आना चाहे आ सकते है। कुछ छिपाना नहीं। हमारी स्थिति बता देना। हम लड़की दें सकते है बस। कुछ भी देने की हमारी हैसियत नहीं है।


परिचित - अरे वो सब में बात कर लूंगा।



तय किये दिन पर लड़के औऱ उसके परिवार के लोग आये। शांति के दिल में फूल खिल रहें थे। जैसे सपने खुद पूरा होने आए गये हो अपनेआप। उसने तो छोड़ दिया था सब भाग्य के भरोसे पर जैसे कोई राजकुमार ही आए गया हो उसे अपनाने।



शांति ने उसे सिर्फ कुछ सेकंड के लिये ही झलकियो में हो देखा था। औऱ फिर बड़ो ने बात को तय करना शुरू कर दिया था।


शांति अब चुपचाप कमरे में बैठी मंद मंद मुस्कुरा रही है। 


उनके जानें के बाद जैसे मामा को एक अलग तरह का सुकून मिला हो वो। शांति के पास गये औऱ उसे सिर्फ देखा। उसके देखने भर से वो समझ गये की शांति को लड़का पसंद है। वो ऊपर वाले से अब यही दुआ कर रहा है की अब उसका घर बस जाये कोई मुश्किल ना हो।



शादी वाला दिन आ ही गया। शांति सज़ धज़ के तैयार बैठी है, राजन के लिये उसके होने वाले पति से सात फेरे लेने के लिये।



अचानक उसके कमरे में राजन आ जाता है। जिसको देखकर वो घबरा जाती है। घबराहट कुछ सेकंड की रहती है फिर वो शर्म बन जाती है।


शांति - अरे आप यहाँ क्यूँ आये है। पता है शादी के पहले देखना शुभ नहीं होता है।


राजन - तुम्हारी आवाज तो जैसा मैंने सोचा था उससे भी ज्यादा अच्छी है।


शांति कुछ नहीं कहती चूप रहती है। बस अंगूठे को मोड़ लेती है।


राजन - पहले क्यूँ मुझसे बात नहीं की तुमने।


शांति -पहले में कैसी करुँ, मुझे लगा आपको बात नहीं करनी है करना। होता तो कुछ प्रयास करते मुझसे बात करने का। मुझे तो आपसे बहुत कुछ बोलना है। लेकिन...


राजन - अच्छा बोलो क्या बोलना है।


शांति - मेरी बात आप मानोगे।


राजन - अब तो सिर्फ तुम्हारी मानूँगा बोलो क्या है?



शांति - सपने मैंने देखें नहीं डर लगता था को पुरे होंगे नहीं पर कहीं ना कहीं आप जैसा ही पति चाहिये था. में जब भी थोड़ा बहुत किसी कोने में सोचती थी ऐसा ही कुछ सोचती थी.. जो मेरा ख्याल रखें मुझे प्रेम करें... बचपन से ही अभाव है। माँ का प्यार नहीं मिला पिता कहीं चले गये छोड़ के।  ऐसा नहीं है की मामा औऱ मामी ने ख्याल नहीं रखा लेकिन कभी अपनी छोटी छोटी मनमानी नहीं कर पाई, कभी रूठ कर अपनी बात नहीं मना पाई। में चाहती थी की ऐसा कुछ हो जहाँ मुझे कुछ सोचना ना पड़े।



राजन- हाँ में जनता हूँ की तुम्हारे दिल की आज तक किसी ने ना सुनी लेकिन अब ऐसा नहीं होगा।


राजन ने शांति का हाथ पकड़ा। शांति के आँखों से आँसू की बून्द टपकी। जैसे कब से रोक रखी थी।


तभी दरवाजे पर ज़ोर से दस्तक होती है। बाहर मामी है जो उसे बुला रही है फेरो के लिये। वो हड़बड़ा कर उठती है और दरवाजा खोलती है।



मामी उसे लें जाती है आँगन में बने छोटे से विवाह पंडाल में जहाँ उसका दूल्हा बैठा है। शांति वहाँ जाकर बैठती है। और पंडित जी अपना काम शुरू कर देते है।


मामा बैठे है अपना मुरझाया चेहरा लेकर। पगड़ी जो बँधी थी उसका होश नहीं है की अब कहाँ है। आस पास थोड़े बहुत लोग भी है।



शांति का दूल्हा अब सेहरा हटा कर शांति को देखता है दूल्हा और कोई नहीं बल्कि करुणा है। शांति को भी यह पता है।



राजन और उसके घरवालों ने भी यह रिश्ता तोड़ दिया। वो भी शादी वाले दिन ऐसा क्या इसका कारण उन्होंने नहीं बताया। कहाँ की उनके घर में कुछ अनहोनी हो गई अभी हमें माफ़ करें।



शादी की तैयारी हो गई थी सभी लोग आए गये अबकी बार अगर शादी ना हुई तो शायद फिर होना मुश्किल है।


करुणा वही था उसने इस बात में अपने लिये एक अवसर देखा और सभी के सामने फिर अपनी बात रखी।


गाँव वालों ने उसका साथ दिया। और मामी ने भी फिर उसके मामा को सुनना ही पड़ा।



शांति को यह बात पता चल गई थी उस समय कमरे में वो कल्पना कर रही थी अगर सब ठीक होता तो वो राजन से किस तरह बात करती।



वो 10 मिनट की कल्पना उसकी मन की थी।  वो उसके मनचाहे 10 मिनट थे। उसके बाद एक बार फिर वो चल पड़ी अपनी किस्मत के साथ लड़ने।



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यह कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है। इसके पात्र घटनाये स्थान नाम भी काल्पनिक है। इसका किसी के भी जीवन से मेल खाना महज एक सयोंग होगा। कहानी का उद्देश्य केवल मनोरंजन करना है। कृपया इसे उसी तरह से लिया जाये। पाठक अपने विवेक का इस्तेमाल करें।





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