बुढ़ापा ।। Emotional story in. hindi। hindi stories। हिन्दी कहानी। Hindi kahaniyaan।।

मेरा एक लड़का था लेकिन वो अभी मेरे साथ नहीं रहता तुम्हारी तरह बडा हो गया ना तो अब उसको माँ की जरुरत नहीं।  अब दिन ही कितने बचे है, और ज्यादा भूख भी नहीं लगती तो मेरा गुजारा चल जाता है। 


बुढ़ापा ।। Emotional story in. hindi। hindi stories। हिन्दी कहानी। Hindi kahaniyaan।।



इंसान अपना बचपन कभी नहीं भूलता। यही तो वो समय होता है जब वो बिना कुछ सोचे सिर्फ अपनी छोटी सी दुनियाँ में मस्त रहता है। बारिश का सड़क पर जमा पानी काफ़ी होता है हमारे मन को लुभाने के लिये। छोटी छोटी बातों में बड़ी ख़ुशी मिलती है।


ऐसी कई बाते होती है बचपन की जो हमारे मन में बसी रहती है उम्र भर। पेड़ पर से गिरना, साइकिल का टायर पुरे मोहल्ले में घूमाना, किसी की डांट खाना स्कूल टीचर, गली मोहल्ले सब बसा रहता है। 


मैंने 7 वी तक पढ़ाई एक गाँव में की पिताजी की सरकारी नौकरी थी। उसके बाद उनका तबादला किसी शहर में हो गया। उन्होंने उसके लिये कोशिश भी की वो चाहते थे की मेरी और मेरी बहन की शिक्षा उसके बाद किसी अच्छे स्कूल में हो। खैर उनकी मेहनत का परिणाम उनको मिला और तबादला हो गया।


मुझे याद है बीच सत्र में स्कूल को छोड़ कर हमें जाना पड़ा था। उस समय बचपन में मुझे इस बात का पता नहीं था की बाद में उस जगह उस गाँव को इतना याद करूँगा। तब में में इसी बात से खुश हो रहा था की हम नये घर बड़े शहर जायेंगे।


कई साल बीत गये लेकिन फिर वहाँ जाना नहीं हुआ। जाते समय पापा और मम्मी ने आस पड़ोस को यह वादा तो किया था की हम आएंगे मिलेंगे लेकिन वो कभी हुआ नहीं। 


आज में 20 साल बाद फिर उसी गाँव से होकर गुजर रहा था तो मुझसे रहा नहीं गया। मैंने अपनी गाड़ी उधर घुमा ली।


इन सड़को पर में इतने साल बाद आया लेकिन अभी भी मुझे लग रहा है जैसे यह मुझे जानती है और में इन्हे जैसे की खुद ही ख़ुश होकर रास्ता बता रही है। स्वागत कर रही हो।


मुझे सबसे पहले अपना स्कूल देखने का मन किया। इसलिये में वही गया। स्कूल आज भी वैसा ही था कई बार शायद सिर्फ रंगाई पुताई हुई होगी लेकिन एक बाथरूम के अलावा नया कुछ भी नहीं बना शायद।


थोड़ी देर में अपनी आँखों से स्कूल को देखता रहा। आधी छुट्टी के समय बच्चों को देख कर मुझे अपना बचपन याद आ गया। 


बच्चे को भीड़ स्कल के गेट के बाहर जमा हुई। एक अम्मा अपना टोकरा लिये वहाँ बैठी थी। हमारे समय में भी यही होता था।


हम लोग भी ऐसी ही जमा हो जाते थे। टोकरा लिये हमारे समय पर कोई आता था। टोकरे में खट्टे मीठे बहुत सी तरह तरह की चीज होती थी। उन्ही यादो को फिर से एक बार जीने के लिये मैंने भी उस अम्मा के टोकरे से कुछ लेने को सोचा।


में फिर एक बार बच्चा बन उस अम्मा के टोकरे के ओर चला। बच्चों के हाथो के बीच मैंने भी अपना हाथ उस अम्मा की और किया। 


अम्मा ने ऊपर मुँह कर मुझे देखा और पूछा की क्या चाहिये। चहरे पर छुर्रिया आंखे को मीच कर बार बार वो देखती थी। चहेरा मुझे जाना पहचाना लगा।


मैंने पहचाना की यह वही है जो हमारे समय पर भी आती थी। पहले से ज्यादा बूढ़ी हो गई थी। इसलिये मुझे पहचानने में थोड़ा समय लगा। 


इतना समय बीत गया लेकिन आज भी यह उसी स्कूल के बाहर अपना टोकरा लिये आती है यह सोच कर मुझे थोड़ा आश्चर्य हुआ। समय जैसे उनके लिये रुक गया हो।


बचपन में उनसे बात नहीं की बस जो चाहा वो लिया और खाया। आज उनको देख कर उनसे बात करने को मन किया। वो मुझे नहीं पहचानती शायद लेकिन मुझे लगता है में उन्हें अच्छे से जानता हूँ।


कुछ देर में इन्ही ख्यालो में तब तक स्कूल की घंटी बजी और उनके आस पास मंडराते बच्चे वापस अपनी क्लास की ओर भागे। 


अम्मा भी अपना समान समेट रही थी। मैंने उनसे कहाँ अम्मा आप अभी तक आती है हमारे समय में आप आती थी। उन्होंने अपनी हिलती गर्दन और झपकाती पलकों से मेरी और देखा।


कान से कम सुनता था शायद इतना कहने पर भी उन्होंने फिर एक बार मुझसे पूछा क्या कहाँ। माफ़ करना थोड़ा कम सुनाई देता है।


मैंने फिर वही बात दोहराई अम्मा को सुनकर बहुत अच्छा लगा। बहुत खुश हुई मुझसे कहाँ खुश रहो बेटा। ऐसे ही तररकी करते रहो। इतना कहकर उन्होंने मेरे सर पर हाथ रखा।


फिर वो अपने काम में लग गई। समान समेटने में। मैंने पूछा अम्मा आप अभी तक आती है आपके घर में कोई ओर नहीं है।


अम्मा बोली नहीं है अभी। मेरा एक लड़का था लेकिन वो अभी मेरे साथ नहीं रहता तुम्हारी तरह बडा हो गया ना तो अब  उसको माँ की जरुरत नहीं। लेकिन मुझे को दिक्कत नहीं वो खुश रहें बस। 


मेरे अब दिन ही कितने बचे है, और ज्यादा भूख भी नहीं लगती तो मेरा गुजारा चल जाता है। कभी स्कूल के बाहर कभी पास के बाजार में जितना होता है करती हूँ।और फिर यहाँ आती हूँ तो इन बच्चों को देखती हूँ तो मुझे अच्छा लगता है।


अपनी बात खत्म करते ही उन्होंने कहाँ अच्छा बेटा खुश रहो। इतना कहकर वो जानें लगी।


इस उम्र में उन्हें देखकर मुझे ऐसा लगा की उन्हें उन्हें कोई उम्मीद नहीं है, ना ही किसी से कोई शिकायत वो।
उनके बेटे के बारे में मैंने सोचा की और पूछूं लेकिन फिर मैंने यह सोच कर नहीं किया की क्या पता उन्हें तकलीफ हो।


मैंने उन्हें रोका और उन्हें कुछ रुपये देना चाहा। पहली बार उन्होंने बेमन से ना कहाँ। मुझे पता था उन्हें इसकी जरुरत है। कुछ देर बाद मानी और उनके आँखो से अब आंसू आने लगे।


इस उम्र यह सब देखना कितना पीड़ादायक होगा। अगर हमारे माँ बाप हमारे बचपन में हमें ना सँभालते जब हम बेबस थे। तब शायद कोई बडा ही ना हो पाता। 


लेकिन जब उन्हें जरुरत होती तब अगर हम ना उनके साथ ना हो या उन्हें दो वक्त का खाना भी ना दें सके तो इससे बड़ी कोई शर्म की बात नहीं।


मुझे यह सोच कर सुकून आया की अच्छा हुआ में अपने बचपन के स्कूल गया। में कोशिश करता हूँ हर महीने उन्हें कुछ रूपये भिजवाने की।

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