बेईमानी ।। Hindi story।।Inspirational story।।Motivational story।। Short story in hindi ।। Hindi kahaniyaa।।


ट्रैन की सीट के निचे मुझे एक बेग मिला। जिसमे बहुत रूपये थे। जल्दी से बेग को बंद किया और भागा। में सोच रहा था कहीं जिसका बेग है वो वापस ना आ जाये। Inspirational story।


बेईमानी ।। Hindi story।।Inspirational story।।Motivational story।। Short story in  hindi ।। Hindi kahaniyaa।।



में आज बहुत खुश हूँ।क्यों की आज मेरी पहली सैलरी आयी है । अपने छोटे से शहर से में यहाँ अपनी पढ़ाई पूरी करने आया था। 


पापा तो चाहते थे की में अपनी पढ़ाई पर ही ध्यान दूँ। लेकिन मैंने घर की हालत देखी है। पढ़ाई के साथ मैंने नौकरी भी की। घर का लोन भी है और पढ़ाई पूरी के करने के बाद भी तो यही करना है।



पार्ट टाइम एक जॉब ज्वाइन कर लिया। जिसमे मुझे 12 हज़ार रूपये मिल रहें थे। पहले महीने की सैलरी लिये रक्षाबंधन मनाने में अपने घर के लिये रवाना हुआ।



घर जाने में मुझे 6 घंटे लगते है। ट्रैन का सफर रहता है। सैलरी के पैसे मैंने अपने पर्स में रखें थे। त्यौहार का समय है ट्रैन में जगह मिलना मुश्किल की बात है।



लेकिन इन सब बातो को अब में मुसीबत नहीं मान रहा था। बल्कि इन सब के बावजूद मेरा मन खुश था। जेब में पैसे जो थे। पैसा पास में हो तो खुशी होती ही है। इस बात का मुझे आज अहसास हो गया था।



ट्रैन का लोकल डब्बा पूरा भरा था। मेरा स्टॉप लास्ट स्टॉप था। कई स्टेशन पर रूकती ट्रैन मज़े से चल रही थी। प्लेटफार्म पर उतर कर में भी मज़े लेते कुछ खाते पीते हुऐ अपनी यात्रा कर रहा था।



थोड़ी देर बाद ट्रैन में कुछ जगह हुई और एक सीट मुझे बैठने को मिल गई। खिड़की के पास की सीट थी। तो बाहर की ठंडी, गरम हवा में, मेरी आँख कब लग गई मुझे पता भी नहीं चला।



करीब 2 घंटे बाद शोर के कारण मेरी आँख खुल गई। अभी मैंने समय देखा तो मेरा स्टेशन करीब 1 घंटे दूर ओर होगा। प्यास लगी मैंने पानी की बोतल लेने के लिये के अपने पेंट की पीछे वाली जेब में हाथ डाल कर पर्स निकालना चाहा।



मेरी तो जैसे जान ही निकल गई। मेरा पर्स मेरी पॉकेट में नहीं था। मैं एकदम से खड़ा हो गया और निचे ऊपर अपनी सारी पॉकेट को चेक करने लगा।



सीट के निचे, बेग में हर जगह देखा। लेकिन मेरा पर्स कहीं नहीं था। आस पड़ोस में खड़े और बैठे सब को भी पता चल गया था की मेरा पर्स खो गया। मैंने सब से पूछा भी लेकिन सभी का जवाब ना था।



सोने के पहले जिस प्लेटफार्म पर भी ट्रैन रुकी थी लगभग हर प्लेटफार्म पर में ट्रैन के निचे उतरा था। कुछ ना कुछ लेने। वहाँ किसी ने मेरा पर्स चोरी कर किया, कोई ट्रैन में भीड़ का फायदा उठा कर पर्स चोरी कर के लें गया मुझे कोई अंदाजा नहीं।



कुछ घंटो पहले में खुश था, अब वो सारी खुशी मेरी चली गई। पर्स में पैसो के साथ मेरी कुछ आय डी भी थी। जिसके जानें का भी मुझे दुख था।



मेरी पहली कमाई जिससे मेरा त्यौहार अच्छा होता। सभी के लिये मैंने उन पैसो से कुछ ना कुछ लेने का सोच रखा था। मेरे लिये वो पैसे बहुत थे।



बस में सर पकड़ कर बैठा रहा। मेरा स्टॉप सबसे लास्ट था। और वो भी आ गया था। ट्रैन से सब उतरने लगे में बस वही अपनी सीट पर बैठा रहा। सबको जाते हुये उतरते हुऐ देख रहा था।



में इतना लापरवाह कैसे हो सकता हूँ। यह में सोच रहा था। आखिर मैंने अपने पर्स का ध्यान क्यों नहीं रखा। यही सब सोच कर में अपने आप को बार बार कोस रहा था।



ट्रैन खाली होने के थोड़ी देर बाद तक में वही बैठा रहा। फिर आखिर कार मैंने खुद को संभाला। में अपनी सीट से उठा और दरवाजे की ओर जानें लगा।



आँखे मेरी अब भी यहाँ वहाँ मेरे पर्स को ही खोज रही थी। सोच रहा था की क्या पता यही कही पड़ा होगा मेरा पर्स इसलिये में सब सीट के निचे एक बार फिर देखते हुऐ जा रहा था।



मेरी नजर एक पॉलीथिन पर पड़ी जो सीट के निचे थी।
उसको उठा कर मैंने खोल कर देखा। उसमे एक हैंड बेग निकला। वजन से थोड़ा भारी था। खोल कर मैंने जल्दी से देखा।



मेरी आंखे चमक उठी, उसमे केश था। मैंने फटाफट वो बेग को वापस बंद किया ओर उस बेग को मैंने अपने बड़े बेग डाल दिया। मैंने उसे ठीक से देखा भी नहीं की कितने पैसे उसमे है।



मैंने सिर्फ यही सोचा की जल्दी से यहाँ से निकलूं। क्या पता जिसका बेग छूट गया कहीं वो वापस ना आ जाये। मैंने मन में यही सोचा की शायद यह मेरे लिये ही छुटा है।



भगवान चाहता है की यह मुझे मिलें। इसमें इतना पैसा है की मेरी और मेरे घरवालों की कुछ समस्या तो हल हो ही सकती है।



अब मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। में अब पहले से भी ज्यादा ख़ुश था बस में जल्दी से प्लेटफार्म से निकला और ऑटो करके अपने घर आया।



घर आकर पहले में सबसे मिला फिर कुछ समय सबके साथ बात की। फिर अकेले में जाकर मैंने अपना बेग खोला और उसमे से वो बेग निकाला।



मैंने उसमे रखें पैसे निकाले करीब 2 लाख रूपये उस बेग में थे उसके अलावा एक पर्स मैंने पर्स खोल कर देखना चाहा, लेकिन इतने में ही कोई बाहर से आवाज लगाने लगा जिस कारण मैंने फिर उसे बंद कर दिया।



रक्षाबंधन पर मैंने अपनी बहनों को अच्छे से गिफ्ट दिया। साथ ही मैंने यह भी सोच लिया था की उन पैसो का में क्या करने वाला हूँ।



इस बारे में मैंने घर पर कुछ नहीं कहाँ, सिर्फ मन ही मैंने प्लान बना लिया था। पापा के एक लोन की किश्ते बाकि थी मैंने उसमे से उन्हें बिना बताये 30 हज़ार रूपये किस्त भर दी।



बाकि के पैसो को भी में ऐसे ही इस्तेमाल करने वाला था। में बस 3 दिन की छुट्टी पर आया था। वापस जॉब और पढ़ाई की के लिये लौटने का समय हो गया था।



में वापस ट्रैन में बैठ गया। इस बार मेरे बेग के साथ उसमे वो छोटा बेग भी था जिसमे करीब 1 लाख 60 हज़ार रूपये थे। एक बार मेरा पर्स चोरी होने के बाद अब में ज्यादा सतर्क हो गया हूँ। मुझे नहीं लगता की अब में ऐसी गलती दोबारा करूँगा।



मैंने अपना हाथ बेग से हटाया ही नहीं। प्लेटफार्म पर निचे उतरते हुऐ भी मैं बेग को अपने साथ लेकर गया। करीब आधा सफर हो गया था।



एक प्लेटफॉर्म पर गाड़ी रुकी। मैंने एक लड़के को जो चाय बेच रहा था। बुलाया और बोला की चाय दें। लड़के ने मुझे चाय भर कर दी ओर जैसे ही उसने मेरी तरफ देखा। 



वो बिना पैसे लिये बिना कुछ बोले भागा। मैंने उसे आवाज लगाई की भाई छोटू कहाँ जा रहा है अपने पैसे तो लेकर जा। पर वो भागा ही जा रहा था। 



कुछ मिनट बाद वो दिखाई देना बंद हो गया शायद प्लेटफार्म के बाहर किसी दुकान में गया था। ट्रैन का समय हुआ, हॉर्न बजा। 



धीरे धीरे गाड़ी प्लेटफार्म से निकलने लगी। तभी वो लड़का फिर से दौड़ता हुआ मेरी खिड़की पर आया। बोला भाई अपना पर्स लो।



उसने मेरे हाथ में मेरा पर्स दिया। वो वही रुक गया और ट्रैन ने धीरे धीरे स्पीड पकड़ ली। उसके चेहरे पर जो मुस्कान और संतोष था। वो मेरे कलेजे तक चला गया।



मैंने अपना पर्स देखा उसमे सब वैसा ही था। उतने ही रूपये थे। एक भी कम नहीं हुआ था। उस लड़के से कुछ पूछने का कहने का समय ही नहीं मिला।



उसकी हालत भले ही तंग हो। लेकिन उसको और उसके परिवार को नींद अच्छी आती होगी। अब में यह सोच रहा था की भगवान अब मुझे क्या दिखाना और सिखाना चाहता है।



मैंने एक बेग लिया और उसके पैसे अपने समझें। जबकि एक लड़का मुझसे काफ़ी छोटा मुझे ज़िन्दगी की बड़ी सिख दें गया।



मुझे यह सिखा गया की में बईमान हूँ। यह सारा पैसा बेईमानी का है। भले ही मैंने यह चुराया नहीं लेकिन मैंने यह भी कोशिश नहीं की जानने की यह पैसा किसका है।



एक लड़का मुझे बईमान से ईमानदार बना गया। मैंने अपने कमरे में जाकर सबसे पहले उस बेग में देखा की कहीं कुछ पता एड्रेस मिल जाये।



उसमे एक पर्स था जिसमे एक एड्रेस मुझे मिला। मैंने उस पते उस बेग को भेज दिया साथ ही एक चिट्टी भी लगी जिसमे मैंने लिखा की इसमें जितने पैसे कम है में अपनी सैलरी से वापस कर दूंगा।



इस नोट के साथ मैंने अपना नंबर भी छोड़ा। मुझे नहीं पता था की उनके लिये पैसे के लिये वो मुझे माफ़ करेंगे या नहीं। लेकिन अब में हर बात के लिये तैयार था मुझमें ना जानें कैसे इतनी हिम्मत आ गई।



कुछ दिनों में ही उनका फोन आया। बुजुर्ग थे उन्होंने कहाँ की उनके हाथ से यह पैसा ना जानें कहाँ रह गया था। किसने कब लिया उन्हें भी पता नहीं चला। उन्होंने मुझे बहुत दुआ और आशीर्वाद दिया। 



कहाँ की बचे पैसे वापस नहीं दूँ तो भी चलेगा। लेकिन मुझे वो वापस देना है। पैसा और बेग मिलने की खुशी इस शान्ति के आगे कुछ भी नहीं थी।



यह कुछ अलग ही थी। उस लड़के ने मेरी ज़िन्दगी बदल दी। भगवान मुझे यह सिख देना चाहता था।


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