राजा ने राज्य में सभी चार पैर वाले पशुओं पर प्रतिबन्ध लगा दिया। जो भी इनका प्रयोग करते पाया गया उसे भी मृत्यु दी जायेगी ऐसी राजा नें घोंसणा करवा दी थी।
राजा और साधु।। अनमोल वचन।। प्रेरक कहानी।।Inspirational stories।। Motivational stories in hindi।।
राजा विजयभान एक बड़े सम्राज्य का राजा था। राजा को बड़ी मन्नतो के बाद अपनी रानी से एक पुत्र की प्राप्ति हुई थी।
राजा अपने राजकुमार से अत्यधिक प्रेम करते थे। उसकी हर जिद और इच्छा की पूर्ति करते थे। राजकुमार को घुड़सवारी में बड़ा आनंद आता था।
लेकिन राजा को यह पता नहीं था की उनके जीवन में ऐसा कुछ होने वाला है। उनका एक लौता 10 वर्षीय पुत्र, घुड़सवारी करते वक्त अपने प्राण गवां बैठा।
एक दिन प्रशिक्षक साथ घुड़सवारी करते वक्त एक दुर्घटना में उसके प्राण चले गये। ढलान पर पिसलन वाली जगह पर घोड़ा अपना संतुलन खो बैठा उस पर बैठा नन्हा राजकुमार गिर कर एक पत्थर से टकारा गया।
जिस कारण उसकी जीवन लीला समाप्त हो गई। राजा को इस घटना से गहरा आघात और क्रोध आया, राजा इस घड़ी में जैसे राजधर्म भूल गया।
उसने उस घोड़े और उसके प्रशिक्षक को भी नहीं छोड़ा दोनों को मृत्यु दंड दे दिया। राजा यहाँ तक भी नहीं रुका इसके बाद राजा को सभी चार पैर वाले पशुओं से घृणा हो गई।
उसने राज्य में सभी चार पैर वाले पशुओं पर प्रतिबन्ध लगा दिया। उसके राज्य में अब कोई भी बैल, गाय घोड़ा,गधा इत्यादि कुछ भी नहीं रख सकते थे।
जो भी इनका प्रयोग करते पाया गया उसे भी मृत्यु दी जायेगी ऐसी राजा नें घोंसणा करवा दी थी।
राजा अपनी एक लौती संतान के जानें से बहुत निराश था उसने खुद को राजमहल के में कैद कर लिया था। राज्य में प्रतिबन्ध के कारण प्रजा का बुरा हाल था।
कई कोसो तक उन्हें अब चल कर जाना पड़ रहा था। खेती करने के लिये भी उन्हें बैल ना होने से बहुत असुविधा हो रही थी।
दूध दही का अभाव हो गया बैल गाड़ी घोड़ा और गधा गाड़ी कीं जगह मनुष्य गाड़ी का प्रयोग हो रहा था। पशुओ के ना होने से कई कीं जीविका चली गई थी।
आमदनी का साधन ख़त्म हो गया था।देखते ही देखते 9 माह बीत गये लेकिन राजा उस संताप में था। प्रजा दुखी कई निर्धन हो गये भूख से कई जानें चली गई।
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राज्य कीं प्रजा चिंता में ही डूबी रहती उन्हें कोई रास्ता दिखाई ही नहीं दे रहा था।
तभी एक साधु सन्यासी का उसी राज्य से गुजराना हुआ।राज्य में वो आये तो लोगों नें उनके आगे विनती कीं और उन्हें इस समस्या से निकालने का अनुरोध किया।
उन्हें लोगों कीं पीड़ा दिखाई दी, इसके पीछे प्रतिबन्ध का कारण भी पता चला। साधु नें राजा से मिलने का निर्णय किया।
वो राजमहल गये और राजा से मिलने को कहा. राजा किसी से भेट नहीं कर रहें थे, इसलिये राजा नें यह सन्देश भिजवा दिया कीं आप जाये।
राजा अभी दुखी है। उस साधु नें कहां कीं में उनके पुत्र के विषय में ही उनसे कुछ चर्चा करने आया हूँ। राजा यह सुनकर उनके सामने उपस्थित हुआ।
राजा नें उन्हें प्रमाण कर कहां कीं आप क्या बात करना चाहते है। उन्होंने कहां कीं, हे राजन आपनें गलत ही पशुओ पर प्रतिबन्ध लगा दिया।
आपके पुत्र कीं मृत्यु का कुछ और कारण है। राजा को लगा की यह पहुँचे हुऐ लगते है मन ही मन कुछ समय उसने विचार किया और फिर कहां क्या हमें बताइए ऐसा क्या है जो आप जानते है और में नहीं।
उन्होंने कहां कीं जल..।आप जल पर प्रतिबन्ध लगाइये ना आप जल पीजिये ना आपके राज्य में कोई जल का प्रयोग करेगा और ना ही वर्षा होंगी ऐसा प्रतिबंद लगाना सही है।
राजा बोला आप क्या बोल है आप संयासी होकर एक बाप कीं पीड़ा के साथ खेल रहें है। वो बोलें में सच बोल रहा हूँ।
घोड़ा अपने आप नहीं पीसला.. वहाँ पिसलन थी..क्यों कीं घोड़ा पिसलन से पिसला और वो जल के कारण होती है. वहाँ आप भी जाकर भागेंगे तो गिरेंगे तो फिर घोड़े का क्या दोष।
राजा सोच में पड़ गया।
वो फिर बोले की तुमने उस घोड़े के और उसके प्रशिक्षित के प्राण लें लिये पर तुमने अपने प्राण नहीं लिये क्यों कीं वो घोड़ा और उसके प्रशिक्षण करने वाले को तुम ही यहाँ लाये थे, वो अपने आप यहाँ नहीं आये।
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तो बहुत गहरे में देखा जाये तो असली दोषी तो तुम हो। ना तुम उन्हें यहाँ लाते ना तुम्हारा पुत्र प्राण गवाता।
वो बोले, राजा तुम्हे सबसे पहले अपने आप को दंड देना था। क्या वर्षा पर प्रतिबंध लगा सकते हो। अगर उस घटना की जड़ में जाओगे तो कुछ ओर ही कारण तुम्हारे समक्ष आयेंगे।
तुम राजा हो और राजा का पहला धर्म प्रजा पालन है, एक पिता कीं भाती। तुम्हारी संतान का तुम्हे इतना दुख है, इस वजह से राज्य में कितने लोगों कीं मृत्यु हुई है तुम्हे पता है।
नहीं तुम राजा योग्य नहीं हो।
जन्म और मरण तो प्रकृति का नियम है तुम्हारे पुत्र के साथ हुआ वो एक दुर्घटना थी। लेकिन तुम जो कर रहें हो वो पाप है।
राजा, साधु के वचन सुनकर उनके आगे आगे फूट फूट कर रोया। साधु नें उसे सांत्वना दी और कहां उठो हम सब एक उस परमात्मा कीं व्यवस्था है। इसे उसी तरह रहने दो। परमात्मा नें तुम्हे अवसर दिया है प्रजा कि सेवा का।
पेड़ पर एक पत्ता भी हरा रहता है फिर सुख कर गिर जाता है।हर छोटी बात हमें परमात्मा के नियम से अवगत कराती है। कोई समझना चाहे तो समझ सकता है।
बहुत हुआ राजन अब विलम्ब मत करो अपनी प्रजा का पालन करो अपना धर्म निभाओ एक बाप अपने पुत्र को ना बचा सका लेकिन एक राजा ना जानें कितने दूसरों पुत्रो को खुश रख सकता है।
व्यक्ति को वो जहाँ परमात्मा का नाम लेकर प्रसन्न मन से अपना कर्म करते रहना ही उसका धर्म है। अपना धर्म निभाना है ओर उसके दिये इस अमूल्य जीवन को जीना है।
राजा की आंखे खुल गई। अपने इस कृत के कारण उसके राज्य में जो हानि हुई थी वो उसे पूरा करने में लग गया।
पढिये यह इमोशनल कहानी।
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