Suspence story || Hindi susupense kahani||कमरे कीं खिड़की|| Emotional story ||Moral story in hindi || hindi kahani||

शादी के बाद जब भी में कमरे में आता. तो मेरी पत्नी कमरे कीं खिड़की खोलकर खड़ी हो जाती. रोज यही होता. आखिर एक दिन मैंने... Hindi kahani. Hindi susupense story.

Suspence story || Hindi susupense kahani||कमरे कीं खिड़की|| Emotional story ||Moral story in hindi||hindi kahani||

मेरा नाम अशोक है में एक मिडिल क्लास फैमिली से हूं मेरी छोटी मोबाइल रिपेरिंग कीं शॉप है मेरे घर वालों नें मेरी शादी एक लड़की से तय कर दी।लड़की हमारे दादा के पास के गाँव कीं थी. लड़की के माता पिता नहीं थे. उसे उसके मामा और मामी नें पाल कर बड़ा किया था. घरवालों को लड़की पसंद आ गई थी.

मैंने शुरुवात में टालने कीं कोशिश कीं मुझे इस बात से थोड़ा ऐतराज था कीं लड़की गाँव कीं है. लेकिन मेरे घरवालों कीं आगे मेरी नहीं चली. मेरी शादी उसी से होना तय हो गई.शादी तय होने पर जब मैंने उससे बात कीं तो मुझे उसका स्वभाव पता चला. वो बहुत कम बोलती थी. जितना में पूछता बस हां या ना में ही जवाब देती.

मैंने कई बार पूछा कीं तुम इतना ही बोलती हो या मेरे सामने शरमा रही हो. फिर उसकी तरफ से वही चुप्पी होती.उसके मामा और मामी भी कहते है कीं हमारी लड़की बहुत सीधी और कम बोलती है. मुझे भी उसकी यह बात धीरे धीरे पसंद आने लगी. हमारी शादी करवा दी गई. शादी  अच्छे से हो गई थी. शादी के बाद सुहागरात का समय आ गया.

में अब अपने जीवन कीं एक नयी शुरुवात करने जा रहा था.जिसके लिये मेरे मन में कई विचार थे. इतने दिनों तक बात करने पर में उसका स्वभाव समझ गया था. इसलिये में जानता था कीं मुझे क्या करना है. मैंने उससे पहले बाते कीं. वो अभी भी बस मेरी बातों का हाँ और ना में ही जवाब दे रही थी.

काफ़ी समय से में उससे बात कर रहा था. मैंने उससे पूछा में उसे पसंद हूं बस वो हां कहती. थोड़ी घबराई हुई लग रही थी. थोड़ी देर बाद उसे पसीना आने लगा मैंने कहां क्या हुआ. तुम ठीक तो हो. वो बोली कुछ नहीं थोड़ी घबराहट हो रही है. मैंने उसे कहां कीं तुम आराम करो बहुत थक गई होंगी शादी कीं दौड़ भाग में ठीक से नींद पूरी नहीं हो पाती है. इस कारण थकावट से ऐसा हो रहा होगा मैंने सोचा.

मैंने उसे यह कहकर कमरे कीं बत्ती बुझा दी. और में भी बिस्तर पर लेट गया. मैंने उसका हाथ पकड़ा वो घबराहट के मारे कापने लगी थी. और पसीना तेज़ हो गया था. वो उठ कर बिस्तर पर बैठ गई. मैंने कमरे कीं बत्ती ऑन कीं. उसकी हालत खराब थी मैंने पूछा क्या हुआ कुछ दवाई लेकर आना है.

उसके इस तरह से बर्तावकरने पर में भी थोड़ा डर गया था.कमरे में एक खिड़की थी जिसको खोलने पर बाहर कीं रोड कीं लाईट हमारे कमरे में आती थी. वो खिड़की के पास हवा लेने को खड़ी हो गई. वो वही ख़डी रही मुझे कहा कीं आप सो जाओ में ठीक हूं. में थोड़ी देर बाद सो गया. सुबह जब में उठा तो वो कमरे में नहीं थी.

वो घर का काम कर रही थी. उसकी तबियत अब अच्छी ही लग रही थी. इसलिये मैंने फिर रात का ज़िक्र नहीं किया. अगली रात फिर में कमरे में गया तो उसने पहले ही खिड़की को खोल रखा था. मैंने उससे पूछा अब ठीक हो. उसने सिर्फ सर  हिला कर जवाब दिया. कमरे में आते ही उसका चेहरा बदलने लगता था.

एक अजीब सी घबराहट उसके चेहरे पर आ जाती थी. उससे कुछ पूछता वो कहीं और ही देखती कुछ ही सोचती रहती. उस रात भी मैंने कहां कीं तुम्हारी तबियत ठीक नहीं लग रही है. तुम आराम करो मैंने फिर कमरे कीं बत्ती बुझाई और और बेड कीं और आया तो उसने खिड़की खोल ली और उसके पास खड़ी हो गई.मैंने अब उसे कुछ नहीं कहा में अपने बेड पर सो गया.

मुझे अब लगने लगा कीं सब कुछ ठीक नहीं है कुछ बात है जो यह छिपा रही है. रात में घबराने वाली लड़की सुबह ठीक लगती थी सुबह उसके चेहरे पर कोई घबराहट नहीं होती. शाम को 8 बजे में खाना खा रहा था अंधेरा हो गया था मम्मी नें उससे कहां कीं छत पर से कपडे लाना भूल गई तू ले आ. वो कपडे लाने सीढ़ियों से छत पर गई. लेकिन करीब आधा घंटा हो गया था. और वो निचे नहीं आयी

मम्मी नें निचे से आवाज भी लगाई लेकिन वो नहीं आयी मेरे खाने के बाद मम्मी नें मुझे कहा की जा तू देख कर आ में सीढ़ियों पर गया तो वो सीढ़ियों पर ही बैठी थी और उसके चहेरे पर वही घबराहट. मैंने सीढ़ियों कीं लाइट ऑन कीं लाइट ऑन होते ही जैसे वो नींद से जग गई हो. मैंने उसे पूछा की तुम यहाँ क्यों बैठी हो वो कुछ नहीं बोल पायी उसके माथे पर रात जैसा ही पसीना था वो वहाँ से चली.

अब में समझ गया था कीं बात क्या है. लेकिन उसकी वजह मुझे नहीं मालूम थी. उस रात में कमरे में गया और जाते ही मैंने सबसे पहले अपने कमरे कीं खिड़की को बंद किया. वो वही कमरे में थी. रोज कीं तरह घबराई सी. पर आज मैंने कुछ और ही सोच रखा था.थोड़ी देर बाद मैंने कमरे कीं बत्ती बंद कीं और में बत्ती बंद करके उसके पास गया मैंने जैसे ही उसे हाथ लगाया वो थोड़ा कांप रही थी रोज कीं तरह पसीना छूटने लगा अब मैंने उसका हाथ और ज़ोर से पकड़ा लेकिन उसका कापना और पसीना बहना चलता रहा.

तब मैंने उसे कहां कीं क्या हुआ. तुम ठीक हो. वो अचानक बोली मेरी तबियत बिगड़ रही है पानी. मैंने बत्ती चालू  करके उसे पानी दिया. रोज रात कीं यही कहानी थी अब मैंने उससे पूछ ही लिया कीं में जानता हूं कीं कुछ बात है जो तुम मुझसे छिपा रही हो. लेकिन क्या बात है मुझे बताओ. मुझे पता है लेकिन में तुम्हारे मुँह से सुनना चाहता हूं और उसकी वजह जानना चाहता हूं.

वो पहले ही कम बोलती थी ऊपर से डरी हुई थी तो वैसे ही उसकी आवाज नहीं निकलती थी. मैंने उससे प्यार से पूछा क्या कुछ हुआ है. कुछ ऐसी बात है जो बता नहीं सकती. वो चूप रही. मैंने गुस्से में कहां कीं ठीक है कल तुम्हारे मामा से बात करता हूं. मामा का नाम लेते ही वो घबरा गई और बोली नहीं मामा जी से मत पूछना. तब उसने बचपन कीं एक ऐसी घटना के बारे में बताया जो इन सब बातों कीं जड़ थी

उसने कहा कीं में मेरे मामा के यहाँ पली बड़ी हूं. मेरा भाई और हम एक दिन बचपन में खेल रहें थे और खेलते वक्त में हमारे घर में कबाट में छिप गई. मेरे भाई और मामी को यह पता नहीं था. उसी समय जब भाई बाहर दौड़ा मुझे ढ़ूढ़ने के लिये तो तो वो गिर गया. मामी उसे लेकर पास के अस्पताल गई. उसका पैर टूट गया था. उसके पहले वो पैसे लेने अंदर आयी तो कबाट का दरवाजा बाहर से लगा गई. मैंने तब भी कुछ नहीं कहां में छिपी रही बाहर क्या हुआ था इसका मुझे पता नहीं था.

थोड़ी देर बाद जब मुझे घबराहट हुई तो मैंने बाहर आना चाहा लेकिन दरवाजा बाहर से बंद था. मैंने बहुत कोशिश कीं चिल्लाई लेकिन घर में कोई था ही नहीं. में बहुत डर गई उन्हें आने में करीब 3 घंटे लग गये. में उस कबाट में 3 घंटे बंद थी. उसके बाद उनके आने के बाद भी में उन्हें नहीं दिखी तो मामी मुझे ढ़ूढ़ने लगी अब में अंदर पसीने और घबराहट के मारे बेहाल थी. मामी को आवाज पर में फिर से ज़ोर से दरवाजा बजाने लगी.

तो मामी नें मुझे बाहर निकाला में जब बाहर निकली तो काँप रही थी. मुझे लगने लगा था कीं में उस कबाट से बाहर आउंगी या नहीं. आज भी अंधेरा मुझे उस दिन कीं तरह डराता है.कबाट पुराना था इसलिये कहीं कहीं से थोड़ा टूटा था जिससे मुझे सांस लेने में कोई प्रॉब्लम नहीं हो रही थी.बाहर क्या हुआ था इसका मुझे पता नहीं था. में जब बाहर आयी तो मुझे पता चला कीं में इतने समय तक अंदर क्यों बंद थी. उस दिन से मुझे अँधेरे से डर लगता है. मुझे पसीना और घबराहट होने लगती है.

मामी नें यह बात मामा को नहीं बताई थी नहीं तो वो मुझे और भाई दोनों को पीटते मुझे नहीं पता कीं अब यह कब तक मुझे परेशान करेगा. लेकिन मामी को यह पता है. इसलिये वो मेरा ध्यान रखती थी.यह सब सुनने के बाद. मैंने कहां कीं यह बात तुम पहले भी बता सकती थी. मेरी पत्नी बहुत ही सीधी थी और घटना के बाद शायद वो और भी डर गई थी. उसे लग रहा था कीं उसकी यह परेशानी में समझूंगा या नहीं. कहीं में इस बात का मुद्दा ना बना लू कीं शादी के पहले हमें नहीं बताया गया.

इसलिये वो छिपा रही थी.मैंने उसे फिर बड़े प्यार से समझाया कहा की उस समय जो हुआ उससे तुम्हे बाहर निकलना होगा. तुम्हारे अंदर के डर से हम दोनों मिलकर लड़ेंगे. मुझे पता है यह सब बोलना आसान है. करना मुश्किल लेकिन मुझे पता है तुम कर सकती हो. अब इस कमरे कीं बत्ती तब तक बंद नहीं होंगी जब तक तुम उसे बंद ना करो.

चाहे इसके लिये पूरी उम्र ही क्यों ना लग जाये. मैंने पहली बार उसके चहेरे पर वो मुस्कान देखी थी. लग रहा था कीं उसका कोई बोझ उतर गया. अंधरा अब मेरे होते उसे डरा नहीं सकता. में उसका हाथ पकडे रहता हूं. धीरे धीरे में उसके इस डर को निकालने कीं कोशिश कर रहा हूं. और बहुत हद तक में सफल भी हो रहा हूं.

ऐसी कोई भी बात नहीं है जो हल नहीं हो सकती. व्यक्ति को सिर्फ प्यार और विश्वास चाहिये. बड़ी से बड़ी बात को सुलझाया जा सकता है.

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