यह एक Hindi Suspence story और Family story है. नई बहूँ को ससुराल के तहखाने में से उसकी सास कीं आवाज आती है.. कहानी अंत तक जरूर पढे.
तहखाने का राज||Hindi suspence story|| Emotional heart touching story||Bed time stories|| Hindi Stories|| kahaniyaan||
जिंदगी के लिये जो आप सोचते हो. ऐसा जरुरी नही कीं ज़िन्दगी भी आपके लिये ऐसा ही सोचे. मेरा नाम रिया है.
जवान लड़की अगर घर में हो तो माँ बाप के लिये चिंता का विषय होता है. मेरी उम्र 28 के ऊपर हो गई थी. कई रिश्ते आये लेकिन कहीं बात बनी नहीं.
फिर एक दिन एक रिश्ता आया. वो हमारे शहर से थोड़ी दूर गाँव में रहते थे. लड़के का नाम संजय है लड़का अच्छा था. और उनका खेती का काम था.
लड़के कीं माँ नहीं थी उनके घर में में सिर्फ वो और उनके पिता ही रहते थे. मेरी शादी उनसे होना तय हो गया. उनके बारे में इससे ज्यादा में और कुछ नहीं जानती थी.
शादी कीं तैयारी होने लगी. में भी इस बात से खुश थी कीं मेरे माँ बाप कीं चिंता अब दूर हो रही है. लेकिन मेरी ज़िन्दगी में आगे क्या होगा इसका मुझे पता नहीं था.
शादी कीं तैयारियो में समय निकलता गया और आखिर कार शादी का दिन भी आ गया. शादी वाले दिन जैसे लड़के के चेहरे पर ख़ुशी और उत्साह रहता है
ऐसा कुछ भी मुझे उनके चहरे पर दिखाई नहीं दिया. उन्हें देख कर ऐसा लग रहा था जैसे उनकी शादी उनकी मर्जी के बिना करवाई जा रही हो.
लेकिन में मन में यही सोच रही यही थी जो भी ख्याल मेरे मन में आ रहें है ऐसा कुछ भी ना हो. अपनी ज़िन्दगी में अच्छे होने कीं उम्मीद लिये में बैठी थी.
शादी करके में उनके घर गई. घर गावं में था यह तो मुझे पता था लेकिन यह नहीं पता था कीं उनका घर खेत पर है.
घर के आस पास थोड़ी दूरी तक कोई घर नहीं दिखाई दे रहा था. उनका घर भी बहुत बड़ा था. इतना बड़ा घर और सिर्फ हम 3 लोग.
मुझे घर में जाते ही थोड़ी बेचैनी होने लगी. लेकिन फिर मैंने सोचा कीं नई जगह है ऐसा होना स्वाभाविक है. थोड़े दिनों में शायद मेरी आदत हो जायेगी.
मेरी तरह शायद सभी लड़कियों को होता होगा. इन्ही सब बातों में मेरा मन खोया रहा. लेकिन अभी सबसे बड़ा ख्याल यह था कीं क्या मेरे पति मुझसे शादी करके खुश है या नहीं.
अभी तक मैंने उनसे कोई बात नहीं कीं. और में इसी इंतजार में थी कीं उनसे बात हो. सुहागरात पर में अपने कमरे में थी. सेज़ पर बैठी उनका इंतजार कर रही थी.
मन में कई तरह के ख्याल और सवाल थे. आगे क्या होगा इस बात से में अंजान थी. धीरे धीरे समय बीतता गया और इंतज़र करते करते आधी रात हो गई.
लेकिन अभी तक मेरे पति कमरे में नहीं आये थे. आधी रात के बाद मैंने सोचा कीं शायद किसी काम में होंगे शादी में बहुत काम होते है और सब उन्हें संभालना होता है.
यह सोच कर में वही बिस्तर पर सो गई. सुबह मेरी नींद खुली और में तैयार हो कर बाहर गई तो वो मुझे घर के बारांदे में सोये दिखाई दिये.
शादी कीं पहली रात कोई अपनी पत्नी के कमरे में ना सोकर बाहर क्यों सोयेगा. मेरे ससुर ने मुझे देखा और पूछा कीं बेटा सब ठीक है.
मैंने भी उन्हें कहां सब ठीक है. मेरे ससुर ने तब कहां कीं बेटा में तुम्हे संजय के बारे में कुछ बताना चाहता हूँ. मेरा बेटा मन का बहुत अच्छा है.
लेकिन इसे छोटी छोटी बातो पर गुस्सा आ जाता है. तुम अभी इसे समझना में तुम्हे बता दू कीं उसमे थोड़ा समय लगेगा. तुम दोनों एक दूसरे को समझना.
बस इसके गुस्से और कम बोलने का बुरा मत मानना. और ज्यादा सवाल मत पूछना ज्यादा सवाल मत पूछना यह बात मुझे कुछ समझ नहीं यह किस और इशारा था
लेकिन मैंने उस समय सिर्फ हाँ कहकर उनकी बात मान ली में उनसे और कहती भी क्या. में सुबह जब घर का काम कर रही थी तब कोने में एक दरवाजे पर बड़ा ताला लगा हुआ था.
घर में ही इतना बड़ा ताला लगा कर रखा है यह बात मुझे अजीब लगी. मेरे पति घर से चले गये थे में पूरा घर देख रही थी साथ ही सफाई भी कर रही थी.
उस दरवाजे के ताले ने मेरे मन अभी भी सवाल उठा रखें थे.मैंनेे मेरे ससुर जी से बोला कीं पापा जी इसकी चाबी दे दीजिये सफाई कर देती हूँ.
वो बोले नहीं रहने दो इसके निचे तहखाने में एक छोटा कमरा है उसमे जानें कीं कोई जरुरत नहीं रहने दो उन्होंने जिस तरह से बोला उनको देख कर ही में डर गई
पता नहीं उन्हें इस बात पर गुस्सा क्यों आ गया.उस समय मैंने सिर्फ हाँ में सर हिला दिया. लेकिन फिर बाद में सोचती रही कीं आखिर वहाँ क्या है.
कुछ देर बाद मेरे ससुर भी घर से चले गये. मैंने पूरा घर देखा लेकिन मैंने मेरी सांस कीं एक भी तस्वीर नहीं देखी. यह बात थोड़ी सोचने लायक थी.
नया घर और भी लगभग सुनसान जगह पर उसमे भी कई सवाल. यह सब मेरे लिये बड़ा अजीब था.रात हो गई और वो और ससुर जी दोनों घर आ गये थे.
खाना खाने के बाद में अपने कमरे में गई. जैसा कीं मैंने कहां मुझे अब इस घर में थोड़ा अजीब सा लग रहा था. घर में बात करने वाला कोई नहीं.
में सोच रही थी कीं आज भी वो बाहर सोयेंगे. लेकिन थोड़ी देर बाद वो कमरे में आ गये. उनके आते ही में डर गई.
वो कमरे आये लेकिन बिना कुछ बोलेऔर मुझे देखें वो बिस्तर पर सो गये. शायद उनके पिता ने उन्हें समझाया होगा.
मैंने थोड़ी कोशिश कीं उनसे बात करने कीं. उन्हें बोला कीं आप को ठंड लगे तो यह कंबल लें लेना. लेकिन उनका कुछ जवाब नहीं आया.
में भी कुछ समय के बाद सो गई. उस दिन के बाद रोज वो कमरे में ही सोते थे लेकिन मेरी तरफ पीठ करके. और बिना कुछ बोले.
यह कैसी शादी थी मेरे पति मेरी तरफ देख भी नहीं रहें थे. मेरे ससुर ने पहले ही समझाया था कीं ज्यादा सवाल नहीं करना इसलिये में कुछ बोलती या पूछती ही नहीं थी.
एक रात मेरी नींद अचानक खुली तो मैंने देखा कीं वो कमरे में नहीं है. मैंने सोचा कीं बाथरूम गये होंगे. लेकिन जब कुछ देर होने के बाद भी वो नहीं आये
तो मैंने कमरे के बाहर जाकर देखा. कमरे के बाहर बारांदे में कहीं भी मुझे वो नहीं दिखाई दिये. में फिर अपने कमरे में जानें लगी
लेकिन मेरे मन में ख्याल आया उस ताले वाले दरवाजे का उस दरवाजे के सामने में गई तो वहाँ अब ताला नहीं था बल्कि वो अंदर से बंद था
में खड़ी खड़ी यह सोच रही थी कहीं वो अंदर तो नहीं. तभी मुझे धीमी धीमी आवाज सुनाई दी यह आवाज किसी औरत कीं थी
और ध्यान से सुनने पर वो बेटा बेटा बोल रही थी. में डर गई और वहाँ से भागते हुऐ सीधे में अपने कमरे में जाकर सो गई.
में बिस्तर पर सोये हुऐ यही सोच रही थी कीं यह सब क्या है. तभी वो कमरे में आ गये.मैंने सोने का नाटक किया. अब उनके आने से मुझे डर लगने लगा था.
जैसे तैसे मैंने अपने डर और विचारों पर काबू किया. तहखाने में जो औरत कीं आवाज आ रही थी क्या वो मेरी सांस कीं थी.
मेरी सांस कीं एक भी तस्वीर क्यों नहीं है. क्या वो ज़िंदा है. और अगर है तो उन्हें इस तरह बंद करके क्यों रखा गया है.जब घर में इतने राज हो तो नींद कैसे आ सकती है
रात में ठीक से सो नहीं पायी. बिस्तर पर पड़े पड़े मुझे यह ख्याल आया कीं मुझे उस कमरे में जाकर एक बार जरूर देखना चाहिये.
मेरे ससुर ने भी उस कमरे में जानें से मना किया था. में सुबह जल्दी अपने कमरे से निकल गई वो अभी तक सोये थे.
धीरे धीरे और डरते डरते में उस कमरे तक जा रही थी. सीढ़ियों के दरवाजे पर पहुंच गई थी हमेशा कीं तरह अभी भी वहाँ बड़ा ताला लगा हुआ था.
उसकी चाबी मेरे पति के पास रहती थी. मैंने सोचा कीं में बाहर से आवाज लगाती हूँ शायद कोई जवाब दे लेकिन
फिर मैंने सोचा कीं आवाज लगाने से मेरे पति या ससुर में से कोई जाग जायेगा. मुझे समझ आ गया था कीं उस कमरे में जाना है तो चाबियों के साथ आना होगा.
में वहाँ से चली गई. उस रात के बाद में बड़ी बेचैन हो गई थी लेकिन मेरे पति के स्वभाव में कोई बदलाव नहीं आया था.
उनके लिये ऐसा था जैसा कीं कुछ हुआ ही नहीं हो. सुबह सुबह ही मेरे माँ और पिता अचानक ही मेरे ससुराल आ गये.
वो वहाँ से गुजर रहें थे इसलिये मुझसे मिलने आ गये. मेरी माँ को देखकर मुझे रोना आ गया. जी तो चाहा कीं यह सब जो है वो में उन्हें बता दू लेकिन में बताती भी तो क्या
अभी तो मुझे भी ठीक से नहीं पता कीं यहाँ हो क्या रहा है. मेरी माँ मुझसे पूछती है कीं बेटी सब ठीक है. मैंने कहा ठीक है.
लेकिन उन्हें में कैसे बताऊ कीं यहाँ कुछ भी ठीक नहीं है ना मेरा पति मेरे साथ पति कीं तरह रहता है ना ही इस घर में क्या हो रहा है उसका मुझे पता है.
लेकिन में अभी उन्हें भी चिंता में नहीं डालना चाहती थी. इसलिये मैंने मेरी माँ को कुछ नहीं बताया. उनके जानें के बाद जब मेरे ससुर घर पर थे
तो मैंने उनसे पूछ लिया कीं पिताजी सासु माँ कैसे चल बसी. उन्होंने मेरी तरफ ऐसे देखा जैसे कीं मैंने कोई बहुत गलत बात पूछ ली हो.
बोले बेटा तुमने मुझसे तो यह बात पूछ ली लेकिन भूल कर भी यह बात कभी अपने पति से मत पूछ लेना. समय आने पर में तुम्हे सब बताऊंगा.
अभी इस बात को मत करो. इतना कह कर वो चले गये. अब रात होने से में डरने लगी थी. रात फिर वही होता मेरे पति आधी रात को उसी कमरे में जाते.
और वहाँ से मुझे बहुत धीमी धीमी आवाजे सुनाई देती. उस रात मैंने सोच लिया था कीं आज मी चाबी लेकर ही रहूँगी.
रात जब वो कमरे में आकर थोड़ी देर बाद सोये तो. मैंने धीरे धीरे उनकी जेब से चाबी निकाल ली. सुबह जल्दी ही में उस कमरे कीं और गई.
मन में कई तरह कीं बाते और डर था. में उस दरवाजे के सामने थी जहाँ ताला था और उसकी चाबी मेरे हाथ में थी. मैंने थोड़ी देर खड़े होकर सांस ली और चाबी उस ताले में लगाई.
लेकिन मेरी धड़कने तब रुक गई जब पीछे से मेरे ससुर ने मुझे आवाज लगाई. बहूँ. उनकी आवाज ने मेरी जान ही निकाल दी थी.
में पीछे नहीं पलटी लेकिन वो मेरे पास आये. मुझे देखकर बोले कीं क्या कर रही हो यहाँ और इस कमरे कीं चाबी तुम्हारे पास कैसे आयी.
में चूप थी तो उन्होंने फिर पूछा कहां से मिली तुम्हे यह चाबी तुमने मेरे कमरे से इसे लिया है. मैंने कहां नहीं यह तो आपके बेटे के पास थी
वो रोज रात यहाँ इस कमरे में आते है. यह सुनकर उन्हें हैरानी हुई वो बोले कीं संजय इस कमरे में फिर जानें लगा वो भी रात में.
मैंने पूछा आखिर ऐसा क्या है जो आप लोग इस कमरे में छिपा रहें हो.यहाँ से रात को बेटा बेटा कीं आवाजे आती है क्या संजय कीं माँ इस कमरे में है.
मेरे ससुर ने यह सब सुनकर कहां कीं गलती मेरी ही ही तुम्हे सब पहले ही बता देना चाहिये था. मुझे नहीं पता था कीं तुम ऐसा कुछ सोचने लगोगी.
उन्होंने मेरे हाथ से चाबी ली और सीढ़ियों का दरवाजा खोला निचे उतर एक कमरे में गये. कमरा खोलते ही. मुझे कमरे का राज पता चल गया.
कमरे में मेरी सांस का सारा समान कपडे तस्वीरे और गहने थे.उसके बाद ससुर जी ने मुझे बताया कीं. संजय कीं माँ दो साल पहले एक एक्सीडेंट में चल बसी.
वो अपने भाई के यहाँ जा रही थी संजय को उस दिन उसने कहां कीं वो उसे उसके भाई के पास लें जाये अगले दिन वापस आ जायेंगे
लेकिन संजय ने मना कर दिया कहां कीं उसे नहीं जाना. मुझे अच्छे से बाइक चलाना नहीं आता है. इसलिये उसने अपने भाई को बुला लिया
लेकिन जाते वक्त उनकी बाइक पीसल कर गिर गई संजय कीं माँ को सर में चोट लगी जिस कारण उसकी मृत्यु हो गई.
संजय अपनी माँ कीं मौत का खुद को जिम्मेदार मानता है उसका मानना है कीं अगर वो उस दिन माँ को लें जाता तो ऐसा कुछ भी नहीं होता.
उस घटना के बाद वो कई दिनों तक बोला नहीं बड़ी मुश्किल से मैंने उसे संभाला है. बात बात पर वो अपनी माँ को याद करके रोने लगता है.
गुस्सा करने लगता है खुद को कोसने लगता है.उसे उसकी माँ कीं याद ना आये इसलिये उसका सारा सामना मैंने यहाँ पर रख दिया.
वो अपनी माँ से बहुत प्यार करता था उसके फोन में कई वीडियो है उसके माँ के साथ. शायद रात में आकर वो यही सब फिर देखने लगा है.
मैंने सोचा कीं उसकी ज़िन्दगी में अगर प्यार आएगा तो शायद कुछ हद वो फिर से खुश हो सकेगा इसलिये मैंने उसकी शादी करवा दी.
उसकी माँ उसे शादी के लिये कहती थी लेकिन वो मना करता था. शादी के वक्त भी वो यही कह रहा था कीं माँ नहीं है तो शादी करके किसे खुश करू.
इसलिये मैंने तुम्हे कहां था उसे गलत मत समझो उसे प्यार कीं जरुरत है. उसे यह विश्वास दिलाना है कीं जो हो गया अब उसे बदला नहीं जा सकता
ना ही उसमे उसकी कोई गलती है. कुछ समय पहले जिस पति से में डर रही थी अब उसके लिये मेरे दिल में प्यार और सहानुभूति जाग गई.
जो अपनी माँ से इतना प्यार करता है. वो कैसे बुरा हो सकता है. मैंने उसी समय अपने ससुर से कहां कीं अब आप बिलकुल भी चिंता मत करें में उन्हें संभाल लुंगी.
सुबह जब वो घर से बाहर जानें लगे तब मैंने उन्हें कहां कीं आप बहुत अच्छे है. उनका कोई जवाब नहीं आया. लेकिन एक हलकी सी मुस्कान जरूर आयी.
माँ कीं जगह तो कोई नहीं लें सकता. लेकिन फिर भी में कोशिश करुँगी कीं वो अपने आप को दोषी समझना बंद कर दे.
धीरे धीरे मुझे उनकी मुस्कान वापस लानी है. और मुझे पता है में ऐसा कर सकती हूँ.