नया ढाबा ||Suvichar|| An emotional heart||Moral story||Bed time stories||Hindi Kahaniya ||Hindi story||


लोगो की सोच की वजह से हमारे घर की स्थिति ख़राब हो गई. मेरे पति भी उनकी छोटी सोच कीं बातों से प्रभावित हो गये. पढिये यह Moral story Emotional heart touching story.
नया ढाबा ||Suvichar|| An emotional heart||Moral story||Bed time stories||Hindi Kahaniya ||Hindi story||

मेरा नाम राखी है. आज में आपको अपनी कहानी सुनाने वाली हूं.मेरे पति राजेश नें अपनी ज़िन्दगी में बहुत मेहनत कीं वो ज्यादा पढ़े लिखें नहीं थे इसलिये हमेशा से मेहनत और मजदूरी का काम ही उन्हें मिला और घर चलाने के लिये उन्होंने यही किया. हमारे दो बच्चे है बेटा 10 साल का है और मेरी बड़ी बेटी 16 साल कीं है.

अभी तक मेरे पति नें जैसे तैसे अपना घर चलाया. इस उम्र में भी आज भी हम वही है अगर काम नहीं करेंगे तो खाने को नहीं मिलेगा. घर नहीं चल पायेगा. बेटा और बेटी कीं पढ़ाई पूरी नहीं हो सकेगी.मेरे पति कीं अब ऐसी स्तिथि नहीं थी कीं वो मेहनत और मजदूरी कर सके. उनसे अब यह काम नहीं होता था.अब हम क्या करेंगे कैसे अपनी ज़िन्दगी को आगे बढ़ाये कैसे कमाए मुझे और मेरे पति को यही चिंता खाये रहती थी.

नौकरी नहीं है तो अब क्या फिर मुझे एक दिन बैठे यह ख्याल आया कीं क्यों ना हम एक छोटा सा ढाबा खोल लें शहर के बाहर जहाँ से वाहन और गाड़िया आती जाती है वहाँ टिन का छोटा सा छपरा बना कर चाय और खाने का एक छोटा ढाबा खोल सकते है. मैंने अपने पति से यह कहां.उन्होंने कहां कीं दुकान खोलने के लिये पैसे. मैंने कहां टिन का छपरा लगाना है बस उसके लिये पैसे लगेंगे बाकि सारा खाना बनाने का समान हम घर से लें जा सकते है. थोड़े पैसे मैंने अपने परिचित से मांगे.

ताकि हम अपना छोटा सा ढाबा शुरू कर सके. उनके मन में अभी भी संकोच था वो बार बार मना कर रहें थे.लेकिन मैंने कहां हम एक बार कोशिश करते है और ज्यादा कुछ नहीं लगेगा. कुछ दिनों तक मनाने के बाद वो मान गये और हमने एक छोटा सा ढाबा शुरू कर दिया. पहले दिन में और मेरे पति वहाँ अपने ढाबे पर बैठे थे लेकिन कुछ खास लोग नहीं आये.

ढाबा छोटा और ऊपर से सभी खाने वाले पहले ही अपने ढाबे फिक्स किये होते है कीं उन्हें कहां रुकना और कहां खाना है. हमारा पहला दिन निराशा भरा था. कुछ दिन ऐसे ही गये कोई इक्का दुक्का लोग चाय पिने रुका करते थे. लेकिन इतना नहीं होता था कीं हम उससे अपना घर चला सके. मेरे पति फिर से किसी काम कीं तलाश में लग.

उन्हें एक काम मिल गया जहाँ पैसे कम थे लेकिन कम मजदूरी थी. उन्होंने वो कर लिया. लेकिन मैंने ढाबे पर जाना नहीं छोड़ा. अब में अपने बेटे और बेटी के साथ वहाँ जानें लगी. हमने हिम्मत नहीं हारी और धीरे धीरे कुछ लोग हमारे यहाँ आने लगे.1 महीने में ग्राहक और भी ज्यादा आने लगे. कोशिश करते करते 

अब  हमारे यहाँ रुकने लगे थे. उन्हें घर जैसा खाना मिल रहा था इसलिये हमारा छोटा सा ढाबा चल निकला. मेरे पति जितना कमाते उससे ज्यादा अब ढाबे से कमाई होने लगी.

देखते ही देखते हमने जो छोटा सा ढाबा खोला था. उससे हमारी आर्थिक स्तिथि में बहुत सुधार हो गया. जो कर्जा लिया था वो भी उतर गया. हमें एक नयी उम्मीद मिल गई कीं. सबकुछ अच्छा चल रहा था ढाबे को खोले 6 महीने हो गये थे हमारे चेहरों पर रंगत आ गई थी.

लेकिन फिर ऐसा कुछ हुआ जिसके बारे में मैंने सोचा भी नहीं था. एक दिन घर से जब हम लोग ढाबे के लिये जा रहें थे तब मेरे पति कहते है. ढाबा आज से बंद कोई भी अब वहाँ नहीं जायेगा. यह कहते वक्त वो बड़े ही गुस्से में थे ऐसा गुस्सा मैंने उनके चेहरे पर आज तक नहीं देखा.

मैंने बोला क्या हुआ. क्या बोल रहें इतना अच्छा हमारा ढाबा चल रहा है. आपको क्या हो गया आज. वो बोले मैंने कहां ना कोई भी अब वहाँ नहीं जायेगा ना तू ना तेरी बेटी. मैंने बोला आप शांत हो जाईये आपकी तबियत ठीक नहीं है. आप आराम करें हम लोग इस बारे में बात करते है. वो और ज्यादा गुस्सा हो गये कहां कीं कोई बात नहीं होंगी.

में जितना कमाता हूं उतने से घर चल जायेगा. तू अब वहाँ नहीं जायेगी.मेरे पति का ऐसा रूप मैंने पहले नहीं देखा था. उस दिन में ढाबे पर नहीं गई. लेकिन जब वो शाम को आये तो भी उनका मुँह उतरा हुआ था. मैंने सही समय देखकर उनसे बात कीं पूछा क्या हुआ आपको ऐसा क्यों बोल रहें है. वो बोलें कीं मेरा मुँह मत खुलवा

में सब जानता हूं कीं तू क्या कर रही है में तेरे साथ इतने दिनों तक वहाँ रहा तब वहाँ कोई नहीं आता था और मेरे जाते ही ढाबा चलने लगा. आखिर ऐसा भी क्या हो गया. मेरे तो होश ही उड़ गये वो क्या बोलना चाहते थे में समझ गई. ऐसी बात वो भी शादी के इतने दिनों बाद उनके मुँह से सुनकर मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था कीं यह मेरे पति है.

में एक दम खामोश हो गई. रात को मेरे आँसू नहीं रुक रहें थे. मेरे मुँह पर अब ढाबे का नाम भी नहीं आया. इस तरह कीं बाते सुनने के बाद मेरा अब कुछ करने का मन ही नहीं किया उस दिन से खामोश हो गई. अब कुछ करने को कहने को बचा भी नहीं था. मैंने सोचा था कीं उनको कोई सफाई नहीं दूंगी.वो अपना काम करते रहें. लेकिन उनकीं कमाई कम थी उससे अच्छे से गुजारा नहीं हो पाता था.कुछ ही दिनों में जो पैसा जमा किया था वो ख़त्म हो गया.

करीब 3 महीने बाद ही उनकी तबियत ख़राब हो गई और वो बिस्तर पर आ गये. काम नहीं कर पा रहें थे. मैं जैसे तैसे उन्हें संभाल रही थी. घर में जब पैसा ख़त्म होने लगा तो कर्जा लेने कीं नौबत फिर से आ गई. में चाहती थी कीं कहीं किसी के घर जाकर खाना बनाने या बर्तन धोने का काम करने लगू. लेकिन उनकी तबियत ख़राब थी और में नहीं चाहती थी मेरी किसी भी बात के कारण वो फिर उसी तरह कीं बातें करें.

एक दिन वो बिस्तर पर थे में उनके लिये खाना बना रही थी तब उन्होंने मुझे बुलाया. बोले में जानता हूं उस दिन कीं बात तुम्हे बहुत परेशान कर रही है लेकिन और तुम्हे लग भी रहा होगा को में तुम्हे यह कैसे बोल सकता हूं. लेकिन वो शब्द और बाते मेरी नहीं थी.मैंने कानो में ऐसी बात आयी थी. अपनी रिश्तेदारी में ऐसी बात हो रही थी.मैंने अपनी बीवी और बेटी को अकेले वहाँ छोड़ दिया. उन्हें देख लोग रुकते है जिससे कमाई हो रही. इस तरह कीं बातें में बर्दाश नहीं कर सकता.

2 रोटी कम खा लेंगे लेकिन यह सब नहीं सुनना था समाज और यहाँ के लोग खासकर आपके परिचित और रिश्तेदार आपको आगे बढ़ता देख. बहुत कुछ कहने लगते है. लेकिन लोग इस हद तक गिरे है मुझे इसका पता नहीं था.और मेरे पति भी उनकी बातो में आ गये.

उस समय में भी होती उनकी जगह तो शायद यही करती. मुझे भी उतना ही बुरा लगता वही फैसला लेती जो उन्होंने लिया.मैंने उन्हें कहां कीं कहां है वो शुभचिंतक जो अब आपकी मदद करने नहीं आएंगे. जाईये आप उनसे पूछ लीजिये. हमारे घर में खाने को नहीं है आपकी तबियत ख़राब है.

आप बताये कौन आया अब हमारी मदद करने. दुनियाँ किसी को खुश नहीं देख सकती. और अगर कोई मेहनत करके आगे बढ़ता है तो सारे प्रयास करके उसे पीछे धकेलने कीं कोशिश करती है. और आप उनकी बातों में आ गये.वो लोग सफल हो गये. सबको बात बनाना है अब अगर हम भूख से मर जायेंगे तो भी उन्हें बातें मिल जायेगी.

वो लोग कुछ समय तक बोलते अगर हमें कोई फर्क नहीं पड़ता तो वो थक कर हार मान लेतें वो पीठ पीछे ही इस तरह कीं बकवास कर सकते है. सामने आने कीं तो उनमें हिम्मत भी नहीं है. उस दिन मेरे पति कीं आँखे खुल गई. उन्होंने कहां कीं तुम सच बोल रही हो में ही पागल था. लोगों को सफाई देने और उनके आगे अच्छा बनने में अपना नुकसान करा लिया.

जब हम गलत नहीं है तो हमें सफाई क्यों देना क्यों डरना मुझे माफ़ कर दो हमें नहीं उन्हें बदलना होंगी अपनी सोच और अगर नहीं बदले तो हमें क्या हमें अपने कर्म करते रहना चाइये. 

क्या अब हम फिर से कुछ कर सकते है. मैंने कहां कभी भी देर नहीं होती है हम अब भी कर सकते है. मेरे पति बोले में भी अब तुम्हारा साथ दूंगा अगर तुम चाहो तो. मैंने हां कहां और फिर एक बार कोशिश कीं थोड़ी मुश्किल हुई लेकिन धीरे धीरे गाड़ी फिर पटरी पर आने लगी.

आपको हमारी यह kahani कैसी लगी. हमें comment कर जरूर बताये. इसी तरह कीं अच्छी कहानियां आप यहाँ पढ़ सकते है. 

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