डिलीवरी बॉय|| Hindi Suspence story|| Emotional heart touching story|| Moral story|| Hindi Kahaniyaa|| Bed time stories||


संजय के घर पर रोज एक डिलीवरी बॉय आता था. यह उसे उसके पड़ोसियों से पता चला था. आखिर क्यों? पढिये यह Hindi kahani. 

डिलीवरी बॉय|| Hindi Suspence story|| Emotional heart touching story|| Moral story|| Hindi Kahaniyaa|| Bed time stories||

मेरा नाम संजय है.मेरी शादी को अभी 4 महीने ही हुये है. मेरी पत्नी स्वाति बहुत सुन्दर है. आमतौर पर जैसा लड़कियों का स्वभाव होता है.


स्वाति बिलकुल उसके विपरित है. मेरी पत्नी बहुत कम बोलती है. उसका स्वभाव ही कुछ ऐसा है. थोड़े अलग स्वभाव कीं है.

अभी शादी को सिर्फ 4 महीने ही हुऐ है तो में कोशिश कर रहा हूँ उसे समझने की.में कई बार चाहा कीं उससे बहुत बाते करू लेकिन फिर में उसे देख कर चूप हो जाता.


फिर मैंने सोचा कीं वो जैसी है उसे वैसी ही रहने देता हूँ बदलने कीं कोशिश नहीं करता हूँ. बस फिर धीरे धीरे उसकी यही बात मुझे अच्छी लगने लगी.


कभी कभी जब में ऑफिस से समय पर नहीं आ पाता तब भी बस वो सिर्फ यही पूछती है आज लेट हो गये. मेरे ऑफिस के काम और बाकि बातो के बारे में वो कभी भी नहीं पूछती थी.


पूछने पर वो कहती थी कीं में ऐसी ही हूँ. मुझसे ज्यादा बातें होती नहीं है. मेरी पत्नी के साथ में बहुत खुश था. हमारी ज़िन्दगी अच्छे से चल रही थी.


लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ कीं जिसने मेरी ज़िन्दगी में हलचल मचा दी. आस पड़ोस में रहने वाले लोगों को उनके घर से ज्यादा पडोसी के घर में क्या हो रहा है


इसकी चिंता रहती है.मेरे पड़ोस में भी मेरा एक दोस्त रहता है. लेकिन वो मेरे साथ काम नहीं करता. क्यों कीं मेरी पत्नी इतना ज्यादा बात नहीं करती


इस कारण वो पड़ोस के लोगों से ज्यादा दोस्ती या मेल मिलाप नहीं बना पाती है. मेरे दोस्त कीं भी शादी हो चुकी है.


वो भी वहाँ अपनी पत्नी के साथ रहता है. एक दिन सुबह जब में ऑफिस में जा रहा था तब उसने मुझे रोक कर कहां. और संजय क्या हाल है.


थोड़ी बहुत बात करने के बाद वो बोला कीं आजकल तेरे घर बहुत समान आ रहा है. रोज एक डिलिवरी बॉय आता है.


उस समय मैंने उसकी बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया मैंने कहां कीं कुछ मंगवाया होगा स्वाति ने. बाहर जाना उसे पसंद नहीं था


तो शायद वो घर पर ही घर कीं चीज़े मंगवाती होगी. में ऑफिस चला गया और उस बात को जैसे में भूल ही गया. घर वापस आ कर मै स्वाति से इसके बारे में बात करना भी भूल गया


सच कहूं तो उस समय मुझे लगा कीं इसके बारे में क्या पूछना. लेकिन जैसा कीं मैंने कहां आप के घर में क्या हो रहा है. यह आप से ज्यादा पड़ोसियों को पता होता है.


मेरा वो दोस्त मुझे 3 दिन बाद फिर रोक कर यही बात करता है. इस बार उसका तरीका पहले से कुछ ज्यादा अलग था.


उसने मुझसे कहां संजय वो डेलिवरी बॉय पहचान का है क्या रोज दोपहर आता है. इस बार मुझे थोड़ा सा अहसास हुआ कीं आखिर वो कहना क्या चाह रहा है.


जब में ऑफिस में काम कर रहा था तो भी में उसी बारे में सोच रहा था. आमतौर पर में अपनी पत्नी को ऑफिस से तब ही कॉल करता हूँ


जब में लेट होने वाला होता हूँ. लेकिन उस दिन मैंने उसे फोन किया वो भी दोपहर के समय. मेरे दो बार फोन करने के बाद भी मेरी पत्नी ने फोन नहीं उठाया.


में अपने काम में लग गया लेकिन मेरे मन में अब कई विचार उठने लगे. में अपना काम करने लगा. करीब 2 घंटे बाद मेरी पत्नी का फोन आया.


बोली कीं फोन कहीं रखा था पता ही नहीं चला कीं आपका फोन आया है. उसने पूछा कीं क्यों फोन किया था. मैंने कहां कुछ नहीं आकर ही बात करता हूँ.


शाम को में घर गया. में चाहता था कीं मेरी पत्नी से सीधा सीधा पूछ लू. लेकिन में वो नहीं कर पाया. मैंने उससे पूछा कीं कुछ शॉपिंग कर रही हो क्या ऑनलाइन


उसने कहां नहीं. में आगे कुछ पूछता लेकिन वो उठ कर वहाँ से किचन में चली गई. शादी को अभी 4 महीने ही हुऐ है. में मेरी पत्नी को समझने कीं कोशिश कर रहा था


कीं यह एक अलग ही बात मेरे ज़हन में अपना घर बनाने लगी.अब मुझे मेरी पत्नी के स्वभाव पर भी शक होने लगा.


मुझे लगने लगा कीं कहीं उसका कम बोलना इसलिये तो नहीं कीं वो मुझे पसंद नहीं करती. शादी अरेंज मैरिज थी कही ऐसा तो नहीं कीं वो मुझसे शादी ही नहीं करना चाहती थी.


जो बाते उसकी मुझे अच्छी लगती उन्ही बातों के लिये अब मेरे मन में सवाल उठने लगे. यह सवाल मेरे ही नहीं बल्कि आस पड़ोस के लोगों के मन में भी होंगे.


मेरा अब ऑफिस के काम में मन नहीं लग रहा था. मैंने सोचा नहीं था कीं मुझे ऐसा कुछ करना पड़ेगा. मैंने फैसला किया कीं में ऑफिस से जल्दी घर जाऊंगा.


उस दिन में मेरी पत्नी को बिना बताये ऑफिस से दोपहर को निकल गया. में सीढ़ियों से अपने फ्लैट कीं ओर जा रहा था. और सोच रहा था


कीं जो में सोच रहा हूँ ऐसा कुछ भी ना हो. में अपने फ्लैट के दरवाजे पर पहुंचने वाला ही था कीं तभी मेरे घर से एक लड़का जो कीं डेलिवरी बॉय ही था


निकला और सीढ़ियों से निचे जानें लगा.लड़का करीब 20 साल का होगा. अब में वही सीढ़ियों पर सोच में पड गया बाकि कीं थोड़ी सी सीढिया मुझसे चढ़ी नहीं जा रही थी.


अब मैंने सोचा था कीं आज हाँ या में नहीं आज पूरी बात होगी.में अपने फ्लैट के दरवाजे पर पहुँचा और बेल बजाई. दरवाजा खुला


लेकिन दरवाजे मेरी पत्नी ने नहीं बल्कि किसी और ने खोला वो भी करीब एक 43 साल कीं महिला ने. अंदर से मेरी पत्नी ने मुझे देखा और कहां कीं


अरे आप आज इतनी जल्दी आ गये आपकीं तबियत तो ठीक है. में अंदर आया और कहां कीं नहीं ठीक है ऐसे ही बस. मैंने मेरी पत्नी से पूछा कीं यह कौन है.


वो बोली कीं यह सुधा दीदी है. इतना कहकर वो तो रुक गई. लेकिन फिर सुधा दीदी ने मुझे कुछ बताया. वो बोली कीं में स्वाति के घर के पास में रहती हूँ.


स्वाति मेरी शादी में छोटी सी थी. लेकिन इतने सालो बाद वही इसने मुझे पहचान लिया और मेरी मदद कीं है. मेरी पत्नी ने उन्हें रोकना चाहा लेकिन


वो नहीं मानी उन्होंने कहां कीं स्वाति मुझे एक दिन अचानक ही मिल गई थी. मेरा हाल उसे मैंने बताया कीं मेरे पति के जानें के बाद हमारी आर्थिक हालत ठीक नहीं है.


मेरा बेटा पढ़ाई में अच्छा था लेकिन डेलिवरी बॉय का काम करने पर मजबूर हो गया है. स्वाति ने उसकी कॉलेज कीं फीस भरी और उसे पढ़ाती भी है.


कभी कभी में भी आ जाती हूँ उसके साथ. सोचा था कीं में आप से मिलु लेकिन मेरा एक छोटा सा टिफिन सेंटर भी है इसलिये घर जाकर खाना बनाना पड़ता है


आप से मिलना नहीं हो पाया कभी. मैंने उन्हें कहां कीं इसने कभी बताया नहीं ऐसा कुछ. वो बोली यह ऐसी है इसके मुँह से कुछ निकलवाना बहुत बड़ा काम है.


ज्यादा बोलती नहीं है. लेकिन इसका दिल में बहुत कुछ रहता है. मुझे जैसे अपने इस स्वभाव के कारण आप घमंड़ी या और र्म आने लगी सकते है.


लेकिन इसको थी अच्छे कीं जनता है वो ही बता सकता है इसका दिल कितना साफ है. उनकी यह बात मुझे सीधे लगी मैंने भी आखिर कुछ और ही सोचा था.


उनके जानें के बाद मैंने स्वाति से बात कीं और कहां कीं तुमने कभी बताया नहीं. वो बाली कीं क्या बताती. जीवन है यह सब तो होता ही रहता है.


हम क्या किसी कीं मदद करेंगे सब करने वाला वो है.मेरी पत्नी को में समझ गया था.


लेकिन अब में कोशिश करता हूँ उससे ज्यादा से ज्यादा बात करने कीं दिन भर क्या किया यह जरूर उससे पूछता हूँ.


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