बूढा भिखारी ||Suvichar|| An emotional heart||Moral story||Bed time stories||Hindi Kahaniya ||Hindi story||

में उन बूढ़े भिखारी बाबा को एक साल से जानती थी.वो मुझे कहीं लें जानें कीं ज़िद करने लगे. वो मुझे एक सुनसान जगह पर लें गये. Hindi Moral story.Heart touching story
बूढा भिखारी ||Suvichar|| An emotional heart||Moral story||Bed time stories||Hindi Kahaniya ||Hindi story||

मेरा नाम रचना है.में मेरे पति के साथ एक छोटे से गाँव में रहती हूँ. हमारा गुजारा अच्छे से खेती हो जाता है. में मेरे पति कीं खेती में मदद भी करती हूँ. हमारे दो बच्चे है एक लड़का और लड़की.

हम भले ही अमीर नहीं है लेकिन घर में सुख शांति का होना ही सबसे बड़ी बात है. हमारा गाँव छोटा है तो हमें खेती का समान और चीज़ो के लिये पास के शहर जाना होता है. जो चीज़े पास के शहर में नहीं मिलती तो फिर उसके लिये बड़े शहर जाना होता है.

मेरे पति राजेश सोच रहें है कीं अब वो एक नया टैक्टर लें. मेरा भी अक्सर पास के शहर में आना जाना लगा रहता है. कभी घर के काम से तो कभी खेती और दूसरे कामो कीं वजह से. में औसतन 7 दिन में एक बार शहर चली ही जाती हूँ.

में जब भी शहर जाती हूँ में वहाँ मंदिर के बाहर बूढ़े भिखारी बाबा से मिलती हूँ. करीब एक साल पहले ही वो वहाँ यहाँ आये है. में भी उन्हें एक साल से देख रही हूँ. मुझे याद है जब मैंने उन्हें पहली बार देखा तो वो काफ़ी दुखी थे. मैंने उन्हें पैसे दिये लेकिन उन्होंने नहीं लिये. फिर अगली बार जब में गई तो मैंने उन्हें घर के बनाये पकवान दिये. वो देखकर वो खुश हुऐ और बड़े चाव से खाये.

तब से यह सिलसिला शुरू हो गया मेरा जब शहर जाना होता में उनके लिये जो भी घर में बनाया होता लेकर जाती. वो मुझे मेरे नाम से बुलाते है. इन एक सालो में उन्होंने मुझसे बहुत बाते कीं मेरा घर, गाँव कहां है यह भी उन्हें पता है. मेरे पति नया टैक्टर लेने बड़े शहर गये थे.में घर में में अकेली थी.

वो करीब 3 से 4 दिन के बाद आने वाले थे. वो जिस दिन गये उसी शाम मुझे मेरे घर के बाहर वो बूढ़े बाबा दिखाई दिये. सारा दिन में खेतो पर थी इसलिये मुझे पता नहीं चला. जब में शाम को आयी तो मेरे घर के सामने वाले पेड़ के निचे बैठे थे. उन्हें यहाँ देखकर मुझे अचम्बा हुआ. क्यों कीं 1 साल में कभी भी वो आये नहीं थे. मैंने उनसे पूछा कीं बाबा आप यहाँ कैसे.वो बोले मुझे तुमसे कुछ बात करनी है. इसलिये आया हूँ.

मैंने उस समय उनकी बात को हल्के में लिया. और सबसे पहले उनके लिये कुछ खाने को घर से लें आयी. हालांकि वो इतनी दूर से नहीं आये थे लेकिन एक बुजुर्ग इंसान को थकावट ज्यादा होती है. कुछ खाने के बाद वो फिर बोले के तुम्हे मेरे साथ कहीं चलाना होगा. मैंने पूछा कहां. वो बोले कीं पास है सुबह निकलेंगे तो शाम के पहले आ जायेंगे.

तुम्हारे गाँव से बस का साधन भी मिल जायेगा. मैंने बोला आप कहां जानें को बोल रहें है. बताइए तो. वो बोले कीं में तुम्हे अभी नहीं बता सकता. बस तुम मेरे साथ चलो. मैंने कहां कीं मेरे पति नहीं है. वो बाहर गये है टैक्टर लाने के लिये. वो मुझे बीच में ही टोकते हुऐ कहते है कीं मुझे पता है.

तुमने ही मुझे बताया था कीं 3 से 4 दिन बाहर रहने वाले है. इसलिये में अभी आया हूँ. मुझे उनकी कोई बात समझ नहीं आ रही थी. एक पल के लिये मुझे यह भी लग रहा था कीं शायद इनकी उम्र कीं वजह से आज कुछ इस तरह कीं बात कर रहें है.

मैंने उनसे कहां कीं ठीक है आप अभी आराम कर लें हम सुबह चलते है. वो घर के बाहर वही पेड़ के निचे ही सो गये. मैंने उस समय उनकी बातो को ध्यान नहीं दिया में सोच रही थी कीं शायद वो सुबह होते ही मुझे दिखाई नहीं दे वही शहर के मंदिर वो वापस लौट जाये. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. सुबह जल्दी ही वो मेरे घर का दरवाजा घटघटाने लगे. मैंने दरवाजा खोला. सुबह के 5 बज रहें थे. दरवाजे खालते ही कहने लगे कीं चलो रचना. चलना नहीं है. अब मैंने उनसे पूछा आप क्या बोल रहें है. कहां जाना है.

आज आपको क्या हो गया है. हालांकि कीं में उन्हें पिछले 1 साल से जानती थी लेकिन आज वो कुछ बदली बदली बातें कर रहें थे. वो बोले कीं  तुम्हे मेरे साथ चलना होगा. मैंने कहां जाना आप बताओ. मेरे पति नहीं है वो बोले ज्यादा समय नहीं लगेगा अभी 8 बजे निकलेंगे तो शाम 5 बजे तक वापस आ जायेंगे. मुझे एक पल के लिये कुछ अजीब लगा लेकिन फिर में उन्हें 1 साल से जानती थी लेकिन उनके बारे में कुछ ज्यादा नहीं जानती थी. इसलिये मुझे उनके साथ जानें में थोड़ा संकोच जरूर हो रहा था

लेकिन में इतना जरूर जानती थी कीं उनपे विश्वास किया जा सकता था. उनकी ज़िद को देखते हुऐ में उनके साथ जानें को तैयार हो गई. हमारे गाँव से एक बस जाती थी वो जहाँ जाना चाहते थे वो जगह करीब 40 k. M. दूर थी. बस में बैठने के बाद  हम करीब 11 बजे एक गाँव पहुँचे. वहाँ उतरने के बाद उन्होंने कहां कीं चलो मेरे पीछे आओ. ज्यादा तेज़ वो चल नहीं पा रहें थे लेकिन धीरे धीरे चल कर वो गाँव के बहार हो गये थे. करीब 1 घंटे से हम चले जा रहें थे. अब गाँव के बाहर सुनसान जगह कीं शुरुवात हो गई थी मैंने उन्हें कहां कीं आप कहां लें जा रहें है.

वो बोलें कीं थोड़ी देर और चलो बस आने ही वाला है. उसके बाद भी करीब आधा घंटा चलने के बाद वो एक छोटी सी झोपडी  में पहुँचे. बाहर से देखने पर जर्ज़र थी. उन्होंने उसका दरवाजा खोला उसकी चाबी उनके पास थी. झोपडी में जानें के बाद वहाँ मुझे सिर्फ पत्थर दिखाई दिये. उन्होंने कहां कीं यह बड़ा पत्थर हटाओ. मैंने हटाया और फिर उन्होंने वहाँ खोदना शुरू कर दिया. धीरे धीरे खोदने के बाद उन्होंने वहाँ से एक बड़ा संन्दुक निकाला जिसकी चाबी भी उनके पास थी. उन्होंने वो बड़ा संन्दुक खोला और मुझे दिखाया. वो संन्दुक पैसे और जेवरात से भरा था. मैंने देखते ही पूछा यह क्या है बाबा और किसका है. वो बोले बेटी यह मेरा है और अब यह तुम्हारा है. यह पहली बार था जब उन्होंने मुझे बेटी कहां.

मैंने कहां आप का कहां से आया. उन्होंने कहां कीं में तुम्हे पहले बताता तो तुम मानती नहीं समझती कीं में पागल हूँ. इसलिये में तुम्हे बोल कीं रहा था कीं मेरे साथ चलो.तब उन्होंने पहली बार अपनी कहानी सुनाई. वो बोले कीं बेटी यह मेरा और मेरे बाप दादाओ का कमाया है. यह तो कुछ नहीं मेरे पास अच्छी जमीन भी. मेरे बेटे ने मुझे घर से निकाल दिया. अभी वो मेरे घर और जमीन के साथ जी रहा है. उसे इसके बारे में पता था लेकिन जब उसके बार बार पूछने पर भी मैंने उसे नहीं बताया तो. उसने कहां कीं जब आप मुझे वो नहीं देना चाहते तो तो घर से निकल जाये. उस दिन से में घर से निकल गया. और दूर जाकर मंदिर के बाहर जाकर बैठने लगा. तुम में मुझे मेरी बेटी दिखती है. में अब कितने दिन रहूँगा में चाहता हूँ  यह सब तुम रख लों. उनकी बात सुनकर मुझे बहुत दुख हुआ. कीं उनके साथ यह हुआ है. मैंने कहां कीं इस दुनियाँ में कर्म के फेर से कुछ नहीं बच सकता.

लोभ में इंसान अंधा हो जाता है. मेरा और आपका रिश्ता बिना स्वार्थ का है. मैंने कभी आपसे कुछ चाहा नहीं. और अब भी में इसे नहीं लुंगी. इस पर मेरा हक़ नहीं है. मेरी बात सुनकर उन्हें हैरानी हुई. हमें बस अपना कर्म और कर्तव्य को निभाना चाहिये.आप अपना कर्तव्य निभाये आप पिता है.आपका जो है वो अपने बेटे को दे. में इसे नहीं लें सकती. उनके कर्म उनके साथ होंगे. हमारे हमारे साथ. वो बोले कीं बहुत पैसा है. इतना कीं आसानी से जीवन निकल जायेगा. मैंने कहां कीं पैसा तो आपका है आपके पास ही था आपका आसानी से निकला. क्यों आपको मंदिर के बाहर बैठना पड़ा और इसे यहाँ छुपाकर रखना पड़ा. जो पैसा आपके घर में शांति नहीं ला सका वो मेरे साथ क्या करेगा.हम जो मेहनत से कमा रहें है उससे मेरा जीवन अभी शांति से चल रहा है मुझे माफ़ करें में तो कहती हूँ.छोड़िये ज़िद और आप भी शांति से जिये. दे दे उन्हें पैसा.

वो बोले कीं बेटी मैंने सोचा कीं आज में तुम्हे कुछ धन देकर तुम्हे खुश कर दूंगा उल्टा तुमने मुझे ही कुछ सीखा दिया. जीती रहो बेटी. मेरी बाते सुनकर वो वही बैठ गये.उन्होंने कहां कीं अब तुम चाहो तो जा सकती हो. में कुछ देर यही रहूँगा. में वहाँ से आ गई. मुझे बहुत शांति अनुभव हो रही थी.करीब 7 दिन बाद मेरा शहर फिर जाना हुआ. मुझे बाबा वही बैठे दिखाई दिये. मुझे देखकर बहुत खुश हुऐ पास गई तो बोले कीं में उन्हें वो पैसे दे आया. बहुत शांति का अनुभव कर रहा हूँ.

धन उनके लिये महत्पूर्ण था,तो मेरे लिये भी तो था.वो लेने कीं ज़िद पर अड़े थे.और में ना देने कीं. धन के भूके तो हम दोनों ही थे.जब तुम इतनी युवा होकर इतना धन छोड़ सकती हो तो मेरे तो दिन ही कितने बचे है.तुमने सच में मुझे शांति का अनुभव करा दिया.बाबा अब सच में खुश लग रहें थे.मुझे अच्छा लगा उन्हें ऐसा देखकर.

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