बालकनी लव||Emotional story||Love story||Moral story in hindi||nayi kahani||Bed time stories|| कहानियाँ ||

कहानी कीं इस series में आज हम आपके लिये लाये एक बहुत ही खूबसूरत love story. यह कहानी जरूर आपके दिल को छू लेंगी. कहानी का नाम है. बालकनी लव. कहानी को अंत तक जरूर पढ़े. यह कहानी एक beutiful  love story के साथ Moral story भी है. 

बालकनी लव||Emotional story||Love story||Moral story in hindi||nayi kahani||Bed time stories|| कहानियाँ ||

मेरा नाम सुरेश है. में एक बड़े शहर में नोकरी करता हूं. घर कीं हालत ठीक ना होने के कारण हमेशा से मुझ पर घर कीं जिम्मेदारी रही.

इसलिये प्यार और लड़की कभी मेरी ज़िन्दगी में आयी ही नहीं. लेकिन अब 1 महीने से मुझे प्यार क्या होता है इसका अहसास हो रहा है.

में जिस फ्लैट में रहता हूं. वो एक सोसाइटी में है और मेरे फ्लैट कीं बालकनी से मुझे रोड के उस पार एक लड़की अपने फ्लैट कीं बालकनी से बैठी देखती ही रहती है.

शुरुवात में मुझे लगा था कीं यह मेरी ग़लतफहमी है लेकिन जब यह बार बार होने लगा तो मुझे यकीन आया कीं शायद मेरी तरह वो भी प्यार कीं तलाश में है.

में अपने ऑफिस से शाम 6 बजे आता और आते ही सबसे पहले बालकनी में जाता. मेरे आने के ठीक 5 या 10 मिनट बाद ही वो आ जाती.

और अपनी बालकनी कीं चेयर पर बैठ कर एक टक मेरी ओर ही देखा करती. हम दोनों कभी एक दूसरे कीं तरह देखते कभी देख कर हॅसते.

हमारे फ्लैट कीं दूरी इतनी थी कीं हमारी आवाज एक दूसरे तक नहीं पहुंच सकती थी. शुरुवात में मुझे लगा कीं में पागल हूं लेकिन फिर धीरे धीरे मुझे यह अच्छा लगने लगा.

हम दोनों करीब 1 घंटे तक ऐसे ही एक दूसरे कीं तरह देखा करते. फिर वो अंदर चली जाती. मैंने ऑफिस से छुट्टी लेकर कोशिश करी कीं

शायद दिन में कहीं वो निचे मुझे दिखाई दे तो में उसके सामने जाकर उससे बात करू.लेकिन ऐसा नहीं हुआ दिन में वो मुझे दिखाई ही नहीं दी.

हमारे मिलने कीं जगह थी बस वो बालकनी और हमारा एक दूसरे को लगातार देखने रहना. मेरे रूम में मेरा एक पार्टनर भी रहता था. मैंने कोशिश कीं थी कीं उसे ना बताऊ लेकिन उसे धीरे धीरे पता चल ही गया.

अब वो मुझे तरह तरह कीं राय देता रहता है. वो मुझे कहता है कीं लड़की को अहसास तो करा कीं तू उससे बात आगे बढ़ाना चाहता है.

इस तरह दोनों कब तक बालकनी से एक दूसरे को देखा करोगे. उसने मुझे राय दी कीं में एक दूरबीन से उसे देखूँ. तो उसका चहेरा भी साफ दिखाई देगा

और उसे भी क्लियर हो जायेगा कीं तू उसे पसंद करता है. उसने मुझे दूरबीन लाकर भी दे दी लेकिन मेरी हिम्मत नहीं हुई मुझे लगा कीं कोई उसका घरवाला अगर देख लेगा तो

हमारी लव स्टोरी शुरू होने के पहले ही ख़तम हो जायेगी.सिलसिला यूं ही चलता रहा में बालकनी में उसे देख कर ही खुश था.

लेकिन अब में भी चाहता था कीं बात कुछ आगे बड़े. फिर मेरे दोस्त नें एक आईडिया दिया. वो एक सेल्स कम्पनी में काम करता था जो वॉटर प्यूरी फायर बनाती थी.

उसने कहां कीं हम दोनों उस बिल्डिंग में सेल्स के लिये जायेंगे. मेरा मन अभी भी विचलित था. मेरे मन में सवाल थे कीं कहीं उससे से मिलकर मुझे जो अभी खुशी मिल रही है वो भी ख़त्म ना हो जाये.

लेकिन अब मिलना जरुरी हो गया था. उसे भी अहसास होना चाहिये कीं में उसे देखना चाहता हूं. आखिर वो लड़की होकर पहले किसी भी बात कीं पहल तो कर नहीं सकती.

आखिर मैंने अपनी दोस्त कीं बात मान ली और हम दोनों. उसके उसकी बिल्डिंग में जा पहुँचे.उसके फ्लैट के सामने जाकर मेरे पेट में जैसे कई तितलियाँ उड़ने लगी.

सोच रहा था कीं कहीं हमें देखते ही उसके घर में से कोई ना कहकर दरवाजा बंद ना कर दे. जी तो चाह रहा था कीं वो ही दरवाजा खोले.

दरवाजे कीं बेल बजाई दरवाजा कोई अंकल नें खोला था. मेरे दोस्त नें अपनी रटी रटाई बात बोलना शुरू कर दिया. अंकल नें कहां नहीं हमें नहीं चाहिये.


फिर भी वो नहीं माना और कहां कीं अंकल आपको एक बार दिखा देते है. पानी भी पीला देना. अंकल नें बोला हां ठीक है अंदर आ जाओ. अंदर हाल में गये.

सोचा था कीं उनके घर जाते ही वो दिखाई देंगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ बैडरूम के दरवाजे बंद थे. हम लोग अंकल को डेमो देने लगे अंकल अच्छे थे हमारी बात उन्होंने सुनी.

हम लोग जानकर शाम को गये थे और मैंने सोचा था कीं वो बालकनी में जब मुझे देखने जायेगी तो अपने ही घर में मुझे देख कर हैरान हो जायेगी.

अब समय हो गया था और एक बेडरूम का दरवाजा खुला. सामने वो उसे देखकर मेरी तो धड़कने रुक गई. बहुत सुन्दर लग रही थी.

उसकी नज़रे मेरे पर ही. मुस्कान उसके चहेरे पर थी मुझे लगा कीं उसने मुझे पहचान लिया. जैसे ही वो बालकनी कीं और जानें लगी अंकल खड़े होकर उसका हाथ पकड़ने लगे.

उसने कहां मामा आपको रोज बताना पड़ता है. में खुद जा सकती हूं. में हैरान और उसे ही देखता रहा  बालकनी का वो रास्ता छोटा था लेकिन वो धीरे धीरे चल रही थी.

अंकल हमारी और देखकर बोले मेरी भांजी है यह देख नहीं सकती. रोज शाम को इसे बालकनी में खड़े होकर हवा खाना शोर सुनना अच्छा लगता है.

जिद्दी है हाथ नहीं पकड़ने देती. कहती है आप अंधे है क्या जो मेरा हाथ पकड़ रहें है. में उसी कीं और देख रहा था. वो बालकनी में वैसे ही बैठी थी.

उसी तरफ ही देख रही थी वैसे ही मुस्कुराते हुऐ. हम वहाँ से आ गये लेकिन हम दोनों को ही यह सुनकर बहुत बुरा लगा.

मुझे लगा जिससे प्यार कर बैठा उसने तो मुझे देखा ही नहीं. फिर मैंने सोचा क्या फर्क पड़ता है. में अब भी रोज बालकनी में बैठता हूं.

और उसकी तरह एक टक देखता रहता हूं. मुझे बस यही चाहिये था इससे आगे में सोच नहीं रहा था.

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